मनुजीने पूछा- धर्मके तत्त्वोंको जाननेवाले भगवन्!
श्रेष्ठ ब्राह्मणको व्याती हुई गौका दान किस विधिसे देना चाहिये और उस दानसे क्या फल प्राप्त होता है ? ॥ 1 ॥ मत्स्यभगवान् बोले- राजन्! जिसके सींग सुवर्णजटित हों, खुर चाँदीसे मढ़े गये हों, जिसकी पूँछ मोतियोंसे सुशोभित हो तथा जिसके निकट काँसेकी दोहनी रखी हो, ऐसी सवत्सा गौका दान श्रेष्ठ ब्राह्मणको देना चाहिये। व्याती हुई गायका दान करनेपर महान् पुण्यफल प्राप्त होता है। जबतक बछड़ा योनिके भीतर रहता है एवं जबतक गर्भको नहीं छोड़ता, तबतक उस गौको वन पर्वतोंसहित पृथ्वी समझना चाहिये। जो व्यक्ति द्रव्यसहित ख्याती हुई गायका दान देता है, उसने मानो सभी समुद्र, गुफा, पर्वत और जंगलोंके साथ चतुर्दिग्व्याप्त पृथ्वीका दान कर दिया, इसमें संदेह नहीं है। नरेश्वर ! उस बछड़ेके तथा गौके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं उतने युगोंतक दाता देवलोकमें पूजित होता है। विपुल दक्षिणा देनेवाला मनुष्य निश्चय ही अपने पिता, पितामह तथा प्रपितामहका नरकसे उद्धार कर देता है। वह जहाँ-कहीं जाता है, वहाँ उसे दही और पायसरूपी कीचड़से युक्त घृत एवं क्षीरकी नदियाँ प्राप्त होती हैं तथा मनोवाञ्छित फल प्रदान करनेवाले वृक्ष प्राप्त होते रहते हैं। राजन्! उसे गोलोक और ब्रह्मलोक सुलभ हो जाते हैं तथा चन्द्रमुखी, तपाये हुए सुवर्णके समान वर्णवाली, स्थूल नितम्बवाली, पतली कमरसे सुशोभित, कमलनयनी स्त्रियाँ निरन्तर उसकी सेवा करती हैं ॥ 29॥