सूतजी कहते हैं— ऋषियो! युधिष्ठिरको आगे कर वे तपोधन महात्मा ऋषिगण महामुनि मार्कण्डेयसे पूछने लगे 'भगवन्! आप हमलोगोंके अभ्युदय और लोकके कल्याणके लिये उस नर्मदा और कावेरीके संगमका माहात्म्य भलीभांति वर्णन कीजिये। भगवन्! जिसके प्रभावसे सदा पापमें रत एवं दुराचारमें प्रवृत्त रहनेवाले मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो जाते हैं और परमपदको प्राप्त करते हैं, उसे हमलोग जानना चाहते हैं, आप बतानेकी कृपा करें ॥1-3 ॥
मार्कण्डेयजीने कहा- युधिष्ठिरसहित ऋषिगण ! आपलोग सावधान होकर सुनिये। सत्य पराक्रमी एवं शूरवीर महायक्ष कुबेरने इस तीर्थमें आकर सिद्धि प्राप्त की और वे यक्षोंके अधीश्वर बने महाराज! मैं उनका वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये। किसी समय सत्यपराक्रमी यक्षपति कुबेरने जहाँ कावेरी और नर्मदाका लोकप्रसिद्ध संगम है, वहाँ स्नानकर पवित्र हो सौ दिव्य वर्षोंतक घोर तपस्या की। तब संतुष्ट होकर महादेवजीने उन्हें उत्तम वर प्रदान करते हुए कहा- 'महाबलशाली यक्ष ! तुम अपना अभीष्ट वर माँग लो। तुम्हारे मनमें जो यथेष्ट कार्य वर्तमान है, उसे बतलाओ' ।। 4-8 ॥
कुबेर बोले- देव! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं। और यदि मुझे वर देना चाहते हैं तो मैं आजसे सभी यक्षोंका अधीर हो जाऊँ कुबेरका वचन सुनकर महेश्वर परम प्रसन्न हुए और 'ऐसा ही हो'- यों कहकर वे देवाधिदेव वहीं अन्तर्धान हो गये। राजन्! इस प्रकार उस यक्षने वर प्राप्त कर शीघ्र ही फलको भी प्राप्त किया। वह यक्षोंद्वारा पूजित होकर राजाके पदपर अभिषिक्त किया गया। वहीं सभी पापोंको नाश करनेवाला कावेरी संगम है जो मनुष्य उसे नहीं जानते, वे निःसंदेह ठगेगये। इसलिये मनुष्यको सब तरहसे प्रयत्न करके वहाँ स्नान करना चाहिये । राजेन्द्र ! कावेरी और नर्मदा-ये दोनों अतिशय पुण्यशालिनी महानदी हैं। उसमें स्नानकर जो मनुष्य वृषभध्वज शिवकी पूजा करता है, वह अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करके रुद्रलोकमें पूजित होता है। जो मनुष्य वहाँ अग्निमें प्रवेश करता है या जो उपवासपूर्वक निवास करता है, उसे पुनरावृत्तिरहित गति प्राप्त होती है- ऐसा शंकरजीने मुझे बतलाया था। वह पुरुष स्वर्गलोकमें सुन्दरी स्त्रियोंद्वारा सेवित होकर रुद्रके समान साठ करोड़ साठ हजार वर्षोंतक क्रीड़ा करता है एवं रुद्रलोकमें स्थित होकर आनन्दका भोग करता है। तथा जहाँ चाहता है वहाँ चला जाता है। पुनः पुण्य क्षीण होनेपर वह भ्रष्ट होकर उत्तम कुलमें उत्पन्न, भोगवान्, दानशील और धार्मिक राजा होता है। इस संगममें जलका सम्यक् पानकर मनुष्य चान्द्रायण व्रतका फल प्राप्त करता है। जो मानव इसके पवित्र जलको पीते हैं, वे स्वर्गको चले जाते हैं । गङ्गा और यमुनाके संगममें स्नान करनेसे मनुष्यको जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल उसे कावेरीके संगममें स्नान करनेसे मिलता है। राजेन्द्र ! इस तरह कावेरी और नर्मदाके संगममें स्नान करनेसे सभी पापोंका नाश करनेवाला अतिशय पुण्य | और महान् फल प्राप्त होता है ॥ 9-20 ॥