ऋषियोंने पूछा-नोंमें श्रेष्ठ सूतजी आपने अविमुक्तका माहात्म्य तो भलीभाँति कह दिया, अब नर्मदाके माहात्म्यका वर्णन कीजिये, जहाँ ओंकार, कपिलासंगम और अमरेश पर्वतका पापनाशक माहात्म्य कहा जाता है। प्रलयकालमें भी नर्मदाका नाश क्यों नहीं होता ? एवं भगवान् मार्कण्डेयका भी पूर्व प्रलयके समयमें विनाश क्यों नहीं हुआ ? यद्यपि आपने ये बातें पूर्वमें कही हैं, तथापि इस समय पुनः विस्तारके साथ वर्णन कीजिये ॥ 1-3 ॥
सूतजी कहते हैं- ऋषियो! प्राचीनकालमें धर्मपुत्र बुद्धिमान् महात्मा युधिष्ठिरने वनमें निवास करते समय वनवासी उग्र तपस्वी महामुनि मार्कण्डेयजीसे नर्मदाके माहात्म्यको विस्तृत कथाके विषयमें प्रश्न किया था ॥ 4-5 ॥
युधिष्ठिरने पूछा-द्विजश्रेष्ठ ! आपकी कृपासे मैंने विभिन्न धर्मोको सुना। सुव्रत ! अब मैं पुनः जो सुनना चाहता हूँ, उसे आप बतलाइये? महामुने! यह महापुण्यप्रदायिनी नर्मदा नामसे विख्यात नदी सर्वत्र क्यों प्रसिद्ध हुई इसका रहस्य मुझे बतलाइये ॥ 6-7 ॥
मार्कण्डेयजीने कहा- सभी पापोंका नाश करनेवाली नदियोंमें श्रेष्ठ नर्मदा सभी स्थावरजङ्गम जीवोंका उद्धार करनेवाली है। महाराज! मैंने इस नर्मदा नदीका जो माहात्म्य पुराणमें आपसे सुना है, वह सब कह रहा हूँ। कनखल में गङ्गा और कुरुक्षेत्रमें सरस्वती नदी पुण्यप्रदा कही गयी हैं, किंतु चाहे गाँव हो या वन, नर्मदा तो सभी जगह पुण्यप्रदायिनी है। सरस्वतीका जल तीन दिनोंतक सेवन करनेसे, यमुनाका जल सात दिनोंमें और गङ्गाका जल (स्नान पानादिसे) उसी समय पवित्र कर देता है, परंतु नर्मदाका जल तो दर्शनमात्र से ही पवित्र कर देता है। कलिङ्ग देशकी पश्चिमी सीमापर स्थित अमरकण्टक पर्वतसे त्रिलोकीमें विख्यात, रमणीय, मनोरम एवं पुण्यदायिनी नर्मदा प्रवाहित होती है।महाराज! इसके तटपर देवता, असुर, गन्धर्व और तपस्यामें रत ऋषिगणोंने तपस्या कर परम सिद्धिको प्राप्त किया है। राजन्! यदि नियमनिष्ठ एवं जितेन्द्रिय मनुष्य नर्मदामें स्नानकर एक रात उपवास करके वहाँ निवास करे तो वह अपने सौ पीढ़ियोंको तार देता है। यदि मनुष्य जलेश्वर (जालेश्वर तीर्थ) में स्नानकर पिण्ड दान करता है तो उसके पितर विधिपूर्वक प्रलयकालपर्यन्त तृप्त रहते हैं ॥ 8-15 ॥
अमरकण्टक पर्वतके चारों ओर करोड़ों रुद्र प्रतिष्ठित हैं। जो मनुष्य वहाँ स्नानकर गन्ध, माल्य और चन्दनोंसे शिवजीकी पूजा करता है, उसपर भगवान् रुद्रकोटि प्रसन्न हो जाते हैं- इसमें संदेह नहीं है। पाण्डुनन्दन ! उस पर्वतके पश्चिम भागके अन्तमें साक्षात् महेश्वरदेव विराजमान हैं। जो मनुष्य वहाँ स्नान करके पवित्र हो जितेन्द्रिय, ब्रह्मचारी एवं इन्द्रियोंको वशमें करके विधिपूर्वक पितृकार्य करता है तथा तिल जलसे पितरों और देवताओंका तर्पण करता है, उसके सात पीढ़ीतकके पितर स्वर्गमें आनन्दका भोग करते हैं। साथ ही वह व्यक्ति दिव्य गन्धोंके अनुलेपनसे युक्त तथा दिव्य | अलंकारोंसे विभूषित हो साठ हजार वर्षोंतक अप्सरासमूहोंसे परिव्याप्त एवं सिद्धों और चारणोंसे सेवित स्वर्गलोकमें पूजित होता है। तदनन्तर स्वर्गसे भ्रष्ट होनेपर प्रतिष्ठित कुलमें जन्म ग्रहण करता है। यहाँ वह धनवान्, दानशील और धार्मिक होता है। वह उस तीर्थका पुनः पुनः स्मरण करता है तथा उसको वहाँ जाना प्रिय लगता है। वहाँ जाकर वह सात पीढ़ियोंका उद्धार कर देता है और रुद्रलोकको चला जाता है। राजेन्द्र ! ऐसी ख्याति है कि यह श्रेष्ठ नदी सौ योजनसे अधिक लम्बी और दो योजन चौड़ी है। साठ करोड़ साठ हजार तीर्थ इस अमरकण्टकके चारों ओर वर्तमान हैं ॥ 16-243॥
राजन्! जो मनुष्य ब्रह्मचारी, पवित्र, क्रोधजयी, जितेन्द्रिय, सभी प्रकारकी हिंसाओंसे रहित, सभी प्राणियोंके हितमें तत्पर - इस प्रकार सभी सदाचारोंसे युक्त होकर यहाँ अपने प्राणोंका परित्याग करता है, उसे जो पुण्यफल प्राप्त होता है, उसे आप मुझसे सावधान होकर सुनिये ।|पाण्डुपुत्र! वह एक लाख वर्षोंतक अप्सराओंसे व्याप्त तथा सिद्धों एवं चारणोंसे सेवित स्वर्गमें आनन्दका उपभोग करता है। वह दिव्य चन्दनके लेपसे युक्त एवं दिव्य पुष्पोंसे सुशोभित हो देवलोकमें रहता हुआ देवोंके साथ क्रीड़ा करते हुए आनन्दका अनुभव करता है। तत्पश्चात् स्वर्गसे भ्रष्ट होकर इस लोकमें पराक्रमी राजा होता है उसे अनेक प्रकारके रत्नोंसे अलंकृत ऐसे भवनको प्राप्ति होती है, जो दिव्य होरे, वैदूर्य और मणिमय स्तम्भोंसे विभूषित होता है वह दिव्य चित्रोंसे सुशोभित तथा दासी दाससे समन्वित रहता है। उसका | द्वार मदमत हाथियोंके चिड़ और घोड़ोंकी हिनहिनाहटसे इन्द्रभवनके समान संकुलित रहता है। वह सम्पूर्ण खीजनोंका प्रिय, श्रीसम्पन्न और सभी प्रकारके रोगोंसे रहित होकर राजराजेश्वरके रूपमें क्रीडा और भोगसे समन्वित उस गृहमें निवासकर सौ वर्षोंसे भी अधिक समयतक जीवित रहता है। जो अमरकण्टकमें शरीरका त्याग करता है, उसे इस प्रकारके आनन्दका उपभोग मिलता है। जो अग्नि, विष, जल तथा अनशन करके यहाँ मरता है, उसे आकाशमें वायुके समान स्वच्छन्द गति प्राप्त होती है। नरेश्वर ! जो इस अमरकण्टक पर्वतसे गिरकर देहत्याग करता है, उसके भवनमें एक-से-एक बढ़कर सुन्दरी तीन हजार कन्याएँ स्थित रहती हैं, जो उसकी आज्ञाकी प्रतीक्षा करती रहती हैं। वह दिव्य भोगोंसे परिपूर्ण होकर अक्षय कालतक क्रीडा करता है । ll 25-36 ॥
नृपश्रेष्ठ! अमरकण्टक पर्वतपर शरीरका त्याग करने से जैसा पुण्य होता है, वैसा समुद्रपर्यन्त पृथ्वीपर कहीं भी नहीं होता। इस तीर्थको पर्वतके पश्चिम प्रान्तमें समझना चाहिये। यहीं तीनों लोकोंमें विख्यात जलेश्वर नामक कुण्ड वर्तमान है, वहाँ पिण्डदान एवं संध्योपासन कर्म करनेसे पितरगण दस वर्षोंतक तृप्त बने रहते हैं। नर्मदाके दक्षिण तटपर समीप ही कपिला नामकी महानदी स्थित है। वह सब ओरसे अर्जुन वृक्षोंसे परिव्याप्त है। युधिष्ठिर ! वह महाभागा पुण्यतोया नदी भी तीनों लोकोंमें विख्यात है। यहाँ सौ करोड़से भी अधिक तीर्थ है। राजन्। पुराणमें जैसा वर्णन है, उसके अनुसार वे सभी तीर्थ करोड़गुना फल देनेवाले हैं। उसके तटके जो वृक्ष कालवश गिर जाते हैं,वे भी नर्मदाके जलके स्पर्शसे श्रेष्ठ गतिको प्राप्त हो जाते हैं। दूसरी महाभागा मङ्गलदायिनी विशल्यकरणी नदी है। मनुष्य उस तीर्थमें स्नानकर उसी क्षण दुःखरहित हो जाता है। वहाँ सभी देवगण, किन्नर, महान् सर्पगण, यक्ष, राक्षस, गन्धर्व, तपस्वी ऋषिगण आये और उस अमरकण्टकपर्वतपर मुनियों और तपस्वियोंके साथ स्थित हुए। वहाँ उन लोगोंने सभी पापोंका विनाश करनेवाली महाभागा पुण्यसलिला विशल्या नामसे विख्यात नदीको उत्पन्न किया, जो नर्मदामें मिलती है। राजन्! वहाँ जो मनुष्य ब्रह्मचर्यपूर्वक जितेन्द्रिय होकर स्नानकर उपवासपूर्वक एक रात भी निवास करता है, वह अपनी सौ पीढ़ियोंको तार देता है। नृपश्रेष्ठ! ऐसा सुना जाता है कि पूर्वकालमें लोगोंके हितकी कामनासे महेश्वरने कपिला और विशल्या नामके तीर्थोंका वर्णन किया था। राजन्! वहाँ स्नान करके मनुष्य अश्वमेधके फलको प्राप्त करता है ।। 3749 ।।
नरेश्वर ! इस तीर्थमें जो अनशन करता है, वह सभी पापोंसे रहित होकर रुद्रलोकको प्राप्त करता है। राजेन्द्र ! मैंने स्कन्दपुराणमें नर्मदाका जो फल सुना है, उसके अनुसार वहाँ-वहाँ स्नानकर मनुष्य अश्वमेधके फलको प्राप्त करता है। जो नर्मदाके उत्तर तटपर निवास करते हैं, वे रुद्रलोकमें निवास करते हैं। युधिष्ठिर ! जैसा मुझसे शंकरजीने कहा था, उसके अनुसार सरस्वती, गङ्गा और नर्मदामें स्नान और दानका फल समान होता है। जो अमरकण्टक पर्वतपर प्राणोंका परित्याग करता है, वह सौ करोड़ वर्षोंसे भी अधिक कालतक रुद्रलोकमें पूजित होता है। नर्मदाका लहरियोंके फेनसे अलंकृत, पुण्यमय पवित्र जल सभी पापोंसे मुक्त करनेवाला है, अतः वह सिरसे वन्दना करनेयोग्य है। पुण्यतोया नर्मदा ब्रह्महत्याका नाश करनेवाली है। यहाँ एक दिन-रात उपवास करनेसे मनुष्य ब्रह्महत्यासे छूट जाता है। पाण्डुपुत्र ! नर्मदा इस प्रकार पुण्यमयी और रमणीया है। यह महानदी तीनों लोकोंमें भी पुण्यमयी है। महापुण्यप्रद वटेश्वर, तपोवन और गङ्गाद्वार- इन स्थानोंमें द्विजगण व्रतानुष्ठान करते हैं, परंतु नर्मदा और समुद्रके सङ्गमपर दसगुना अधिक फल सुना जाता है ॥ 50- 58 ॥