मार्कण्डेयजीने कहा- राजन् ! नर्मदाके उत्तर तटपर एक योजन विस्तृत यन्त्रेश्वर नामसे प्रसिद्ध एक श्रेष्ठ तीर्थ है, जो सभी पापोंका नाश करनेवाला है। वहाँ स्नानकर मानव देवताओंके साथ आनन्द मनाता है और इच्छानुसार रूप धारणकर पाँच हजार वर्षोंतक वहाँ क्रीड़ा करता है। वहाँ गर्जन नामक तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ मेघसमूह ऊपर उठते रहते हैं। इस तीर्थके प्रभावसे मेघनादको इन्द्रजित् नाम प्राप्त हुआ था। वहाँसे मेघनाद जाना चाहिये, जहाँ मेघ गर्जनकी-सी ध्वनि होती रहती है। इसी | स्थानपर मेघनाद गण गणके श्रेष्ठ पदको प्राप्त किया था।राजेन्द्र ! इसके बाद आम्रातकेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये। राजन् ! वहाँ स्नानकर मानव एक हजार गौओंके दानका फल प्राप्त करता है। नर्मदाके उत्तर तटपर प्रसिद्ध धारातीर्थ है, उस तीर्थमें स्नानकर मनुष्य यदि पितरों और देवताओंका तर्पण करता है तो उसे मनोऽभिलषित कामनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। राजेन्द्र इसके बाद ब्रह्मावर्त नामसे प्रसिद्ध तीर्थ में जाना चाहिये। युधिष्ठिर वहाँ ब्रह्मा सदा विराजमान रहते हैं। राजेन्द्र उस तीर्थमें स्नानकर मनुष्य ब्रह्मलोकमें पूजित होता है ॥ 1-8 ॥
वहाँ नियमपूर्वक संयत भोजन करता हुआ अङ्गारेश्वर जाना चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त होकर रुद्रलोकको जाता है। राजेन्द्र बहाँसे कपिला नामसे प्रसिद्ध श्रेष्ठ तीर्थमें जाना चाहिये। राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य कपिला गौके दानका फल प्राप्त करता है। इसके बाद देवों और ऋषियोंसे सेवित करंज नामक तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। राजन्! इस तीर्थ में स्नान करनेसे मनुष्यको गोलोककी प्राप्ति होती है। राजेन्द्र तदनन्तर श्रेष्ठ कुण्डलेश्वर नामक तीर्थमें जाना चाहिये, वहाँ उमाके साथ रुद्र सदा निवास करते हैं। राजेन्द्र उस तीर्थमें स्नानकर वह देवताओंद्वारा भी वन्दनीय हो जाता है। राजेन्द्र ! तत्पश्चात् सभी पापोंके नाशक पिप्पलेश तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य रुद्रलोकमें पूजित होता है। राजेन्द्र ! वहाँसे श्रेष्ठ विमलेश्वर तीर्थमें जाना चाहिये, वहाँ महेश्वरद्वारा निर्मित एक देवशिला है। उस स्थानपर प्राणोंका त्याग करनेसे रुद्रलोककी प्राप्ति होती है तदुपरान्त पुष्करिणीतीर्थमें जाकर वहाँ स्नान करे, वहाँ स्नान करनेमात्र से ही मानव इन्द्रका आधा आसन प्राप्त कर लेता है ॥ 9-16 ॥
नदियोंमें श्रेष्ठ नर्मदा रुद्रके शरीरसे निकली है, यह स्थावर और जंगम सभी जीवोंका उद्धार करती है ऐसा सभी देवताओंके अधीश्वर महात्मा शंकरने स्वयं ऋषिगणको और विशेषकर मुझे बताया है। मुनियोंने इस श्रेष्ठ नर्मदा नदीको स्तुति की है। यह नर्मदा संसारके हितकी कामनासे रुद्रके शरीरसे निकली है।यह सभी पापोंका क्षय करनेवाली और सभी देवोंद्वारा नमस्कृत है। देव, गन्धर्व और अप्सराओंने इसकी भलीभाँति स्तुति की है। आदि गङ्गे! तुम्हें नमस्कार है। पुण्यसलिले! तुम्हें प्रणाम है। सागरकी ओर गमनशीले! तुम्हें अभिवादन है। पापोंको नष्ट करनेवाली एवं सुन्दर मुखवाली देवि! तुम्हें नमस्कार है। तुम ऋषिसमूह एवं सिद्धोंसे सेवित हो, तुम्हें प्रणाम है। शंकरके शरीरसे निकली हुई तुम्हें अभिवादन है। तुम धर्मात्मा प्राणियोंको वर देनेवाली हो, तुम्हें नमस्कार है। सभीको पवित्र एवं निष्पाप करनेवाली तुम्हें प्रणाम है। जो श्रद्धासे समन्वित होकर इस स्तोत्रका नित्य पाठ करता है, वह ब्राह्मण हो तो वेदज्ञ और क्षत्रिय हो तो विजयी होता है। वैश्य धनका लाभ करता है और शूद्रको शुभ गतिकी प्राप्ति होती है। अर्थको चाहनेवाला सदा स्मरणमात्रसे ही अर्थ लाभ करता है। साक्षात् महेश्वरदेव नर्मदा नदीका नित्य सेवन करते हैं, इसीलिये इस पवित्र नदीको ब्रह्महत्यारूपी पापका निवारण करनेवाली जानना चाहिये ।। 17- 25 ।।