मार्कण्डेयजीने कहा- राजन् ! तभीसे ब्रह्मा आदि देवता और तपस्वी ऋषिगण क्रोध-रागसे रहित होकर नर्मदाका सेवन करते हैं ॥ 1 ॥
युधिष्ठिरने पूछा- मुनिश्रेष्ठ ! इस पृथ्वीपर महादेवजीका त्रिशूल किस स्थानपर गिरा था ? उस स्थानका पुण्य यथार्थरूपसे बतलाइये ॥ 2 ॥
मार्कण्डेयजी बोले- वह महान् पुण्यमय तीर्थ शूलभेद नामसे प्रसिद्ध है। वहाँ स्नानकर महादेवजी की पूजा करे, उससे एक हजार गो-दानका फल प्राप्त होता है। नराधिप ! जो मनुष्य उस तीर्थस्थानमें तीन राततक महादेवजीकी पूजा करके निवास करता है, उसका पुनर्जन्मनहीं होता। इसके बाद श्रेष्ठ भीमेश्वर और नारदेश्वर तीर्थकी यात्रा करे आदित्येश तोर्थ महान् पुण्यशाली और पापका नाशक कहा गया है। नन्दिकेशका दर्शन करनेसे जन्म धारण करनेका पर्याप्त फल सुलभ हो जाता है। इसके बाद वरुणेश एवं स्वतन्त्रेश्वरका दर्शन करे। | इस पञ्चायतनका दर्शन करनेसे सभी तीर्थोंका फल प्राप्त हो जाता है। राजेन्द्र इसके बाद कोटितीर्थ नामसे प्रसिद्ध स्थानमें जाना चाहिये। जहाँ युद्ध हुआ था और जहाँ असुरगण मोहित हुए थे, राजन्! जहाँ बलके घमंड में चूर दानवगण मारे गये थे और आये हुए देवगणोंने उनके सिरोंको ग्रहण कर लिया था, जहाँ देवताओं द्वारा हाथमें त्रिशूल धारण किये हुए भगवान् वृषध्वज महादेवकी प्रतिष्ठा की गयी थी, वहाँ करोड़ों दानवोंका संहार हुआ था, अतः वह कोटीश्वर तीर्थके नामसे प्रसिद्ध हुआ। उस तीर्थका दर्शन करनेसे सशरीर स्वर्गारोहण प्राप्त होता है। जबसे इन्द्रने कृपणताके कारण वज्रको कोलसे कीलित कर दिया तबसे साधारण लोगोंके लिये स्वर्गका मार्ग बंद हो गया ॥ 3- 103 ॥
पाण्डुनन्दन। जो स्तुति करनेके पश्चात् अन्तमें इस तीर्थकी प्रदक्षिणा कर बिल्वफल प्रदान करता है तथा दीपकसहित पर्वतप्रतिमा सिरपर धारण करता है, वह सभी कामनाओंसे सम्पन्न होकर राजा होता है और मृत्यु होनेपर रुद्रत्वको प्राप्त करता है। पुनः जब वह स्वर्गस लौटकर जन्म लेता है, तब राजा होता है और राज्यका उपभोग करनेके बाद स्वर्गमें चला जाता है। इसके बाद त्रयोदशी तिथिको मानव बहुनेत्र तीर्थका दर्शन करें। वहाँ मनुष्य स्नानमात्र करनेसे सभी यज्ञोंके फलको प्राप्त कर लेता है। राजेन्द्र ! तदनन्तर मनुष्योंके पापोंका नाश करनेके लिये विख्यात अगस्त्येश्वर नामक श्रेष्ठ एवं परम रमणीय तीर्थकी यात्रा करे। राजन्! उस तीर्थमें स्नान करनेसे मानव ब्रह्मलोकमें पूजित होता है जो जितेन्द्रिय मानव समाहितचित्तसे कार्तिकमासके कृष्णपक्षको चतुर्दशी तिथिमें महादेवजीको घृतसे स्नान कराता है, उसका इक्कीस पीढ़ीतक महेश्वरके पदसे पतन नहीं होता। वहाँ यदि विप्रोंको धेनु, जूता, छाता, भी, कम्बल और भोजनका दान दिया जाय तो वह सभी करोड़गुना हो जाता है। राजेन्द्र तदुपरान्त उत्तम बलाकेश्वरतीर्थमें जाना चाहिये। राजन्! उस तीर्थमें स्नान करनेसे मानव सिंहासनकाअधिपति होता है। नर्मदाके दक्षिण तटपर इन्द्रका प्रसिद्ध तीर्थ है, वहाँ एक रातका उपवास कर विधिविधानसे स्नान करे, स्नान करनेके बाद विधिपूर्वक जनार्दनको अर्चना करे तो उसे एक हजार गौओंके दानका फल प्राप्त होता है और वह विष्णुलोकमें जाता है ॥11- 21 ॥
तत्पश्चात् मनुष्योंके सभी पापोंके नाशक ऋषितीर्थकी यात्रा करे, वहाँ स्नानमात्र करनेसे मानव शिवलोकको चला जाता है। वहीं नारदजीका परम रमणीय तीर्थ है. वहाँ स्नानमात्रसे मानव एक हजार गौओंके दानका फल प्राप्त करता है। राजन्! इसके बाद प्राचीनकालमें ब्रह्माद्वारा निर्मित देवतीर्थमें जाय, वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकमें पूजित होता है। तदनन्तर प्राचीनकालमें देवोंद्वारा स्थापित अमरकण्टककी यात्रा करे। वहाँ स्नान करनेमात्रसे मनुष्य रुद्रलोकमें पूजित होता है। राजेन्द्र तत्पश्चात् श्रेष्ठ रावणेश्वर तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ मनुष्य प्रतिदिन देवमन्दिरका दर्शनकर ब्रह्महत्यासे मुक्त हो जाता है। तदुपरान्त ऋणतीर्थमें जाय, वहाँ जानेसे मानव निश्चय ही ऋणोंसे मुक्त हो जाता है। इसके बाद वटेश्वरका दर्शन करके मनुष्यजन्मका पूर्ण फल प्राप्त कर लेता है। राजन्! तदनन्तर सभी व्याधियोंको नाश करनेवाले भीमेश्वरतीर्थको यात्रा करे। उस तीर्थमें स्नान करनेमात्रसे मनुष्य सभी दुःखोंसे छुटकारा पा जाता है। राजेन्द्र तत्पश्चात् श्रेष्ठतम तुरासङ्ग तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ स्नानकर महादेवजीको पूजा करनेसे सिद्धि प्राप्त होती है। इसके बाद सोमतीर्थमें जाय और वहाँ परम श्रेष्ठ चन्द्रमाका दर्शन करे। राजन्! उस तीर्थमें परम भक्तिसे युक्त हो स्नान करनेसे मानव उसी क्षण दिव्य शरीर धारणकर शिवके समान चिरकालपर्यन्त आनन्दका अनुभव करता है और साठ हजार वर्षोंतक रुद्रलोकमें पूजित होता है ॥ 22- 31 ॥
राजेन्द्र ! इसके बाद श्रेष्ठ पिङ्गलेश्वरतीर्थकी यात्रा करे। वहाँ एक दिन-रात उपवास करनेसे त्रिरात्रका फल प्राप्त होता है। राजेन्द्र उस तीर्थमें जो कपिला गौका दान देता है, उस दाताके वंशके कुलवाले उस गौके शरीर में जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार वर्षोंतक रुद्रलोकमें पूजित होते हैं नराधिप उस तीर्थमें जो मानव प्राणकापरित्याग करता है, वह चन्द्र और सूर्यकी स्थितिपर्यन्त अक्षय कालतक आनन्दका अनुभव करता है। जो श्रेष्ठ मानव नर्मदाके तटपर निवास करते हैं, वे मरकर सन्त और पुण्यवान् व्यक्तियोंके समान स्वर्गमें जाते हैं। तदनन्तर कर्कोटकेश्वर नामसे प्रसिद्ध सुरेश्वरको यात्रा करनी चाहिये। वहाँ पुण्यतिथिको गङ्गाका अवतरण होता है, इसमें संदेह नहीं है। तत्पश्चात् नन्दितीर्थमें जाय और वहाँ विधिपूर्वक स्नान करे। इससे उसपर नन्दीश्वर शिव प्रसन्न होते हैं और वह चन्द्रलोकमें पूजित होता है। तत्पश्चात् व्यासके तपोवन दीपेश्वर तीर्थकी यात्रा करे। वहाँ प्राचीनकालमें व्याससे डरकर महानदी पीछेकी | ओर लौटने लगी थी, तब व्यासके हुंकारसे वह दक्षिणकी ओर प्रवाहित हुई, नराधिप। उस तीर्थकी जो प्रदक्षिणा करता है, वह चन्द्र और सूर्यकी स्थितिपर्यन्त अक्षय कालतक आनन्दका उपभोग करता है। उसपर व्यासदेव प्रसन्न होते हैं और उसे अभीष्ट फलकी प्राप्ति होती है। वहाँ वेदीपर सूतसे परिवेष्टित दीपका दान करना चाहिये। ऐसा करनेसे मानव रुद्रकी तरह अक्षय कालतक आनन्दपूर्वक जीवनयापन करता है ॥ 32- 416 ॥
राजेन्द्र ! तदुपरान्त श्रेष्ठ ऐरण्डी तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये ऐरण्डी नदी पापनाशक के रूपमें तीनों लोकोंमें विख्यात है। उसके सङ्गममें स्नान करनेसे मनुष्य सभी पातकोंसे मुक्त हो जाता है। अथवा यदि मनुष्य आश्विन मासके शुक्लपक्षमें अष्टमी तिथिको स्नान करके पवित्र हो उपवासपूर्वक एक ब्राह्मणको भोजन करा दे तो उसे एक करोड़ ब्राह्मणोंको भोजन करानेका फल प्राप्त होता है। जो ऐरण्डी-संगममें भक्तिभावपूर्वक उसकी मिट्टीको सिरपर धारणकर नर्मदाके जलसे मिश्रित जलमें | अवगाहनकर स्नान करता है, वह सभी पापोंसे छूट जाता है। नराधिप। जो उस तीर्थमें जाकर प्रदक्षिणा करता है, उसने मानो सात द्वीपोंवाली वसुन्धराकी परिक्रमा कर ली। तदनन्तर सुवर्णसलिल नामक तीर्थमें स्नानकर सुवर्णका दान करनेसे मनुष्य सुवर्णमय विमानसे जाकर रुद्रलोकमें पूजित होता है। फिर वह समयानुसार स्वर्गसे च्युत होनेपर पराक्रमी राजा होता है। राजेन्द्र ! तत्पश्चात् इक्षु नदीके सङ्गमपर जाना चाहिये यह दिव्य तीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। वहाँ शिवजी सदा उपस्थितरहते हैं। राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मानव गणाधिपतिका स्थान प्राप्त कर लेता है। तदुपरान्त स्कन्द-तीर्थकी यात्रा करे। यह तीर्थ सभी पापोंका विनाशक है। यहाँ स्नान करनेमात्रसे मानव जन्मभरके किये हुए पापोंसे छूट जाता है। इसके बाद लिङ्गसार तीर्थमें जाय और वहाँ स्नान करे। इससे उसे एक हजार गौओंके दानका फल मिलता है और वह रुद्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर सभी पापोंके विनाशक भङ्गतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। राजेन्द्र ! वहाँ जाकर स्नान करनेसे मानव सात जन्मोंमें किये गये पापोंसे मुक्त 'हो जाता है, इसमें संशय नहीं है ।। 42-53 ॥
तदनन्तर सभी तीर्थोंमें श्रेष्ठ वटेश्वरतीर्थकी यात्रा करे। राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मानव एक हजार गौओंके दानका फल प्राप्त करता है। तत्पश्चात् सभी देवोंद्वारा नमस्कृत सङ्गमेश-तीर्थमें जाय। वहाँ स्नान मात्रसे मनुष्य निश्चित ही इन्द्र- पदको प्राप्त करता है। |इसके बाद सभी पापोंको नष्ट करनेवाले श्रेष्ठ कोटितीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नानकर मनुष्य राज्यकी प्राप्ति करता है— इसमें संदेह नहीं है। उस तीर्थमें आकर जो मनुष्य दान देता है, उसका सब कुछ उस तीर्थके प्रभावसे करोड़गुना हो जाता है। यदि वहाँ कोई स्त्री स्नान करती है तो वह नि:संदेह गौरी अथवा इन्द्र- पत्नी शचीके समान हो जाती है। इसके बाद अङ्गारेश-तीर्थकी यात्रा करके वहाँ स्नान करे। वहाँ स्नानमात्र करनेसे मनुष्य रुद्रलोकमें प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। जो मनुष्य पवित्र एवं संयत-मन होकर अङ्गारक-चतुर्थीके दिन वहाँ स्नान करता है, वह अक्षय कालतक आनन्दका उपभोग करता है। अयोनिसम्भव नामक तीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्यको योनिसंकटका दर्शन नहीं होता। वहीं पाण्डवेश तीर्थ है, उसमें स्नान करना चाहिये। ऐसा करनेसे वह देवताओंसे भी अवध्य होकर अक्षय कालतक आनन्दका अनुभव करता है और मरणोपरान्त विष्णुलोकमें जाकर भोगसे परिपूर्ण हो क्रीड़ा करता है तथा वहाँ उत्तम भोगोंका भोग कर मृत्युलोकमें राजा होता है। इसके बाद उत्तरायण आनेपर कठेश्वर-तीर्थमें जाकर वहाँ स्नान करना चाहिये। ऐसा करनेसे मानव जो इच्छा करता है, वह उसे प्राप्त हो जाता है ॥ 54–633 ॥
राजन् ! इसके बाद चन्द्रभागा नदीपर जाकर वहाँस्नान करे। वहाँ स्नानमात्रसे मनुष्य चन्द्रलोक में प्रतिष्ठित होता है। राजेन्द्र इसके बाद इन्द्रके प्रसिद्ध तीर्थमें जाय । वह तीर्थ साक्षात् देवराजद्वारा पूजित तथा सम्पूर्ण देवताओं द्वारा वन्दित है। राजन्! वहाँ स्नानकर जो मनुष्य सुवर्णका दान देता है अथवा नीलवर्णवाले वृषभका उत्सर्ग करता है तो वह वृषभके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, उतने हजार वर्षोंतक अपने कुलमें उत्पन्न संततिके साथ शिवपुरमें निवास करता है। इसके बाद स्वर्गसे गिरनेपर वह पराक्रमी राजा होता है। नराधिप। उस तीर्थके प्रभावसे मृत्युलोकमें आकर वह श्वेतवर्णवाले हजारों अश्वोंका स्वामी होता है। राजन्। तदनन्तर ब्रह्मावर्त नामक श्रेष्ठ तीर्थकी यात्रा करे राजन्! उस तीर्थमें स्नानकर देवताओं और पितरोंका विधिवत् तर्पण करना चाहिये। नरेश्वर सूर्यके कन्याराशिमें स्थित होनेपर जो वहाँ एक रात उपवास करके विधिपूर्वक पिण्डदान करता है, उसका वह कर्म अक्षय हो जाता है। राजेन्द्र ! तत्पश्चात् श्रेष्ठ कपिलातीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। राजन्! उस तीर्थमें स्नानकर जो मनुष्य कपिला गौका दान करता है, उसे सम्पूर्ण पृथ्वीका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वह मिल जाता है। नर्मदेश उत्तम तीर्थस्थान है। इसके समान तीर्थ न हुआ है, न होगा। राजन् ! उस तीर्थमें स्नानकर मानव अश्वमेध यज्ञका फल प्राप्त करता है। नर्मदाके दक्षिण तटपर श्रेष्ठ सङ्गमेश्वर तीर्थ है। राजन्! वहाँ स्नान करनेपर मनुष्य सभी यज्ञोंके फलको प्राप्त करता है और वह पृथ्वीपर सभी प्रकारके उद्यमोंसे सम्पन्न, सभी शुभ लक्षणोंसे युक्त तथा सभी प्रकारकी व्याधियोंसे रहित राजा होता है ।। 64-75 ।।
नर्मदाके उत्तर तटपर अत्यन्त मनोहर आदित्यायतन नामक दिव्य तीर्थ है, ऐसा महादेवजीने कहा है। राजेन्द्र ! उस तीर्थमें स्नान करके जो यथाशक्ति दान देता है, | उसका वह दान उस तीर्थके प्रभावसे अक्षय हो जाता है जो दरिद्र, रोगग्रस्त और दुष्कर्मी हैं, वे भी (यहाँ स्नान करनेसे) सभी पापोंसे मुक्त होकर सूर्यलोकको चले जाते हैं। जो मनुष्य माघमासके शुक्लपक्षकी सप्तमी तिथि आनेपर इन्द्रियोंका संयम कर और निराहार | रहकर इस आदित्यायतन तीर्थमें निवास करता है, वहन तो वृद्धावस्था और रोगसे ही ग्रस्त होता है, न गूँगा अंधा अथवा बहरा ही होता है, अपितु भाग्यशाली, रूपवान् और स्त्रियोंका प्रिय होता है। राजेन्द्र इस प्रकार मार्कण्डेयजीने इस महान् पुण्यदायक तीर्थका वर्णन किया था जो उस तीर्थको नहीं जानते, वे नि:संदेह वञ्चित ही हैं। इसके बाद गर्गेश्वर तीर्थमें जाकर वहाँ स्नान करे वहाँ स्नान करनेसे ही मानव स्वर्गलोकको प्राप्त कर लेता है और चौदह इन्द्रोंके कार्यकालतक वह स्वर्गमें आनन्दपूर्वक निवास करता है। राजेन्द्र उसीके समीपमें नागेश्वर नामक तपोवन है। वहाँ स्नानकर मनुष्य नागलोकको प्राप्त करता है और अनेकों नागकन्याओंके साथ अक्षय कालतक क्रीडा करता है। तदनन्तर कुबेरभवनमें जाय, जहाँ कुबेर विराजमान रहते हैं। जहाँ कुबेर सन्तुष्ट हुए थे। वह कालेश्वर नामक उत्तम तीर्थ है। राजेन्द्र ! इस तीर्थमें स्नान करनेसे मनुष्यको सभी सम्पत्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं ॥ 76 - 853 ॥
तत्पश्चात् उससे पश्चिममें स्थित श्रेष्ठ मारुतालय तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। राजेन्द्र ! जो बुद्धिमान् वहाँ स्नान करके पवित्र हो सावधानीपूर्वक यथाशक्ति सुवर्णका दान करता है, वह पुष्पकविमानद्वारा वायुलोकको चला जाता है। युधिष्ठिर। तदुपरान्त माघमासके कृष्णपक्षकी चतुर्दशी तिथिको यवतीर्थमें जाकर स्नान करे और रातमें ही भोजन करे। ऐसा करनेवाले पुरुषको पुनः योनिसंकटका दर्शन नहीं करना पड़ता। इसके बाद अहल्यातीर्थमें जाय और वहाँ स्नान करे। वहाँ स्नानमात्र करनेसे मानव अप्सराओंके साथ आनन्दका उपभोग करता है। उस तीर्थमें अहल्याने तपस्या कर मुक्ति पायी थी। चैत्रमासके शुक्लपक्षको चतुर्दशी तिथि एवं सोमवारको जो मनुष्य वहाँ अहल्याकी पूजा करता है, वह जहाँ-जहाँ जन्म लेता है, वहाँ-वहाँ सभीका प्रिय होता है। वह दूसरे कामदेवके समान स्त्रियोंका प्रियपात्र एवं श्रीसम्पन्न होता है। श्रीरामके प्रसिद्ध तीर्थ अयोध्यामें आकर स्नानमात्र करनेसे मानव सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है। इसके बाद सोमतीर्थ की यात्रा करे और वहाँ स्नान करे। वहाँ स्नानमात्र करनेसे मानव सभी पापोंसे छुटकारा पा जाता है राजेन्द्र चन्द्रग्रहणके अवसरपर स्नान करनेसे यही तीर्थ मनुष्यके सभी पापोंको नष्ट कर देता है। राजन्!महान फल देनेवाला यह सोमतीर्थ तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध है। नराधिप। उस तीर्थमें जो चान्द्रायण व्रत करता है, वह सभी पापोंसे विशुद्ध होकर सोमलोकको चला जाता है। जो अग्निमें प्रवेश कर, जलमें डूबकर या भोजनका परित्याग कर इस सोमतीर्थ में प्राणका त्याग करता है, वह पुनः मृत्युलोकमें जन्म नहीं ग्रहण करता ॥ 86-973 ॥
तदनन्तर शुभतीर्थमें जाय और वहाँ स्नान करे। यहाँ स्नान करनेमासे मनुष्य गोलोकमें पूजित होता है। | राजेन्द्र ! तत्पश्चात् सर्वोत्तम विष्णुतीर्थकी यात्रा करे। विष्णुका यह सर्वश्रेष्ठ स्थान योधनीपुरके नामसे प्रसिद्ध है। यहाँ भगवान् वासुदेवने करोड़ों असुरोंसे युद्ध किया था, इसी कारण यह तीर्थस्थान बन गया। यहाँ जानेसे विष्णु प्रसन्न होते हैं। यहाँ एक दिन-रात उपवास करनेसे यह ब्रह्महत्याके पापको नष्ट कर देता है। राजेन्द्र तदुपरान्त श्रेष्ठ तापसेश्वर तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ व्याधके भयसे डरी हुई मृगी गिर पड़ी थी और जलमें शरीरका परित्याग कर अन्तरिक्षमें चली गयी थी। यह देखकर आश्चर्यचकित हुए व्याधको महान् विस्मय हुआ । इसी कारण इसका नाम तापेश्वरतीर्थ हुआ। इसके समान दूसरा तीर्थ न हुआ है, न होगा। राजेन्द्र इसके बाद श्रेष्ठ ब्रह्मतीर्थ की यात्रा करनी चाहिये। यह तीर्थ अमोहक नामसे भी प्रसिद्ध है। यहाँ पितरोंका तर्पण तथा पूर्णिमा और अमावस्याको यथाविधि श्राद्ध करना चाहिये। राजन्! वहाँ स्नान कर मनुष्यको पितरोंको पिण्ड देना चाहिये। वहाँ जलमें गजके आकारकी एक शिला प्रतिष्ठित है। उसी शिलापर विशेषतया वैशाखकी पूर्णिमाको पिण्ड देना चाहिये। ऐसा करनेसे जबतक पृथ्वी स्थित रहती है, तबतक पितृगण तृप्त बने रहते हैं। राजेन्द्र तदनन्तर श्रेष्ठ सिद्धेश्वर तीर्थकी यात्रा करे राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य गणपतिके समीप पहुँच जाता है ॥ 98- 108 ll
राजेन्द्र तत्पश्चात् जनार्दन-लिङ्गकी यात्रा करे। राजेन्द्र ! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य विष्णुलोकमें पूजित होता है। नर्मदाके दक्षिण तटपर परम रमणीय कुसुमेश्वर तीर्थ है। वहाँ स्वयं कामदेवने कठोर तपस्या की थी। उसने एकहजार दिव्य वर्षोंतक शंकरकी सर्वभावसे उपासना की थी, किंतु महात्मा शंकरकी समाधिके भङ्ग होनेसे वह भस्म हो गया। इसी प्रकार कुसुमेश्वरमें स्थित श्वेतपर्वा, यम, हुताश और शुक्रपर्वा- ये सभी भी किसी समय जल गये थे। एक हजार दिव्य वर्षोंतक तपस्या करनेपर महेश्वर इनपर प्रसन्न हुए। इस प्रकार प्रसन्न हुए उमासहित रुद्रने इन्हें वर प्रदान किया। तब इन लोगोंको मोक्ष प्रदानकर वे नर्मदाके तटपर प्रतिष्ठित हो गये। तदनन्तर उस तीर्थके प्रभावसे उन लोगोंको पुनः देवत्व प्राप्त हो गया, तब उन्होंने अतिशय भक्तिके साथ देवाधिदेव वृषभध्वजसे कहा- 'महादेव! आपकी कृपासे दिशाओंमें चारों ओर आधा योजन विस्तृत यह क्षेत्र उत्तम तीर्थ हो जाय।' उस तीर्थमें उपवासपूर्वक स्नानकर मनुष्य कामदेवके रूपमें रुद्रलोकमें पूजित होता है ।। 109 - 116 ॥
राजेन्द्र यहाँ वैश्वानर, यम, कामदेव और मरुत्ने तपस्या कर परम सिद्धि प्राप्त की थी। उस तीर्थसे थोड़ी दूरपर अंकोलके समीप स्नान, दान, भोजन तथा पिण्डदान करना चाहिये। यहाँ अग्निमें जलकर, जलमें डूबकर या अनशन करके प्राण त्याग करनेवालेको परलोकमें अपुनर्भवकी गति प्राप्त होती है। जो व्यक्ति त्र्यम्बकतीर्थके जलसे चरु पकाकर अङ्कोलके मूलमें विधिपूर्वक पिण्डदान करता है, उसके पितृगण चन्द्र और सूर्यकी स्थितिपर्यन्त तृप्त रहते हैं। उत्तरायण आनेपर चाहे पुरुष हो या स्त्री जो कोई भी घृतसे स्नान करता है और पवित्र होकर उस आयतनमें निवास करता है तथा प्रातः काल सिद्धेश्वरदेवकी पूजा करता है, वह जिस गतिको प्राप्त करता है, वह सभी यज्ञोंके करनेसे भी नहीं प्राप्त हो सकती। कालगति से पुनः जब वह मृत्युलोकमें जन्म ग्रहण करता है, तब सौभाग्यशाली एवं रूपसे सम्पन्न होकर समुद्रपर्यन्त पृथ्वीका राजा होता है। जो यहाँ आकर महाबली दण्डपाणि क्षेत्रपालका दर्शन नहीं करता और कर्णकुण्डलको नहीं देखता, उसकी यात्रा व्यर्थ हो जाती है। इस प्रकार तीर्थके फलको जानकर सभी देवगण वहाँ उपस्थित होकर कुसुमको वृष्टि करने लगे, इसीसे | यह कुसुमेश्वर नामसे विख्यात हुआ ।। 117- 125 ॥