मार्कण्डेयजीने कहा- राजेन्द्र तदनन्तर श्रेष्ठ अङ्कुशेश्वरतीर्थकी यात्रा करे, जहाँ उन देवके दर्शन मात्रसे मनुष्य सभी पापोंसे छुटकारा पा जाता है। राजेन्द्र! तत्पश्चात् श्रेष्ठ नर्मदेश्वरतीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। राजन्! वहाँ स्नानकर मनुष्य स्वर्गलोकमें पूजित होता है। तदुपरान्त अश्वतीर्थमें जाय और वहाँ स्नान करे। ऐसा करनेसे मनुष्य सौभाग्यशाली, दर्शनीय और रूपवान् हो जाता है। इसके बाद प्राचीनकालमें ब्रह्माद्वारा निर्मित पैतामहतीर्थकी यात्रा करे। वहाँ स्नानकर भक्तिपूर्वक पितरोंको पिण्डदान करे तथा तिल और कुशसे युक्त तर्पण करे; क्योंकि उस तीर्थके प्रभावसे वहाँ किया गया यह सब अक्षय हो जाता है। जो सावित्रीतीर्थमें जाकर स्नान करता है, वह अपने सभी पापोंको धोकर ब्रह्मलोकमें पूजित होता है। राजन् तदनन्तर अतिशय रमणीय मनोहर तीर्थकी यात्रा करनी चाहिये। वहाँ स्नानकर मनुष्य पितृलोकमें पूजित होता है। राजेन्द्र तत्पश्चात् श्रेष्ठ मानसतीर्थमें जाय। राजन्! वहाँ स्नानकर मनुष्य रुद्रलोकमें पूजित होता है। राजेन्द्र तदुपरान्त श्रेष्ठ कुजतीर्थकी यात्रा करे। तीनों लोकोंमें प्रसिद्ध यह तीर्थ सभी पापोंका नाशक है। नराधिप। मनुष्य, पशु, पुत्र, धन आदि जिन-जिन वस्तुओंकी कामना करता है, वह सब उसे वहाँ स्नान करनेसे प्राप्त हो जाता है ॥ 1-10॥राजेन्द्र। इसके बाद प्रसिद्ध त्रिदशज्योतितीर्थकी यात्रा करनी चाहिये, जहाँ उत्तम व्रत धारण करनेवाली उन ऋषि-कन्याओंने तपस्या की थीं। उनकी अभिलाषा थी कि अविनाशी एवं सामर्थ्यशाली महेश्वर हम सभीके पति हों तब उनकी तपस्यासे प्रसन्न होकर संहारकारी महादेव, जिनका मुख विकृत और शरीर घृणास्पद था तथा जो उत्तम व्रतमें लीन थे, दण्ड धारणकर उस तीर्थमें आये महाराज! वहाँ शंकरजीने उन कन्याओंका वरण किया। महाराज। वहाँ शंकरजीने ऋषिकन्याओंका वरण किया था, अतः वह स्थान ऋषिकन्या नामसे विख्यात तीर्थ हुआ। यहाँ कन्यादान करना चाहिये। राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य सभी पापोंसे मुक्त हो। जाता है। राजेन्द्र तदनन्तर स्वर्णबिन्दु नामक प्रसिद्ध तीर्थमें जाय राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्यको दुर्गति नहीं देखनी पड़ती। तत्पश्चात् अप्सरेशतीर्थमें जाय और वहाँ स्नान करे। वहाँ स्नान करनेवाला नागलोकमें अप्सराओंके साथ आनन्दका अनुभव करता है। राजेन्द्र तदुपरान्त नरक नामक श्रेष्ठ तीर्थको यात्रा करे। वहाँ स्नानकर महादेवजीको पूजा करे तो नरक नहीं देखना पड़ता ॥ 11-173॥
इसके बाद भारभूतितीर्थको यात्रा करनी चाहिये। इस तीर्थमें आकर मनुष्य उपवासपूर्वक शम्भूके अवतार विरूपाक्षकी अर्चना करके रुद्रलोकमें पूजित होता है। महात्मा शंकरके इस भारभूतितीर्थमें स्नानकर मनुष्य जहाँ-कहाँ भी मरता है तो उसे निश्चय ही गणोंके अध्यक्षकी गति प्राप्त होती है। कार्तिकमासमें यहाँ महेश्वरकी पूजा करनेसे अश्वमेधयज्ञसे दसगुना फल प्राप्त होता है-ऐसा विद्वानोंने कहा है। जो वहाँ घृतपूर्ण सौ दीपक जलाता है, वह सूर्यके समान देदीप्यमान विमानोंसे शंकरजीके निकट चला जाता है जो वहाँ शङ्ख, कुन्द पुष्प एवं चन्द्रमाके समान उज्ज्वल रंगके वृषभका दान करता है, वह वृषयुक्त विमानसे रुद्रलोकको जाता है। नराधिप। उस तीर्थमें जो एक धेनुका दान देता है और यथाशक्ति मधुसंयुक्त खीर एवं विविध भोग्य पदार्थ ब्राह्मणों को खिलाता है,राजेन्द्र ! उसका वह सभी कर्म उस तीर्थके प्रभावसे करोड़गुना हो जाता है। जो लोग नर्मदाका जल पीकर शिवजीकी पूजा करते हैं, उन्हें उस तीर्थके प्रभावसे दुर्गति नहीं देखनी पड़ती। जो इस तीर्थमें आकर प्राणोंका त्याग करता है, वह सभी पापोंसे मुक्त होकर शंकरजीके समीप चला जाता है। नराधिप। उस तीर्थमें जो जलमें प्रवेश ( करके प्राण त्याग) करता है, वह हंसयुक्त विमानसे रुद्रलोकको जाता है तथा जबतक चन्द्रमा, सूर्य हिमालय महासागर और गङ्गा आदि नदियाँ हैं, तबतक स्वर्गमें पूजित होता है। नराधिप। जो पुरुष उस तीर्थमें अनशन करता है, राजेन्द्र ! वह पुनः गर्भमें वास नहीं करता ॥ 18-293 ॥
राजेन्द्र तदनन्तर श्रेष्ठ आपादतीर्थकी यात्रा करे। राजन्! वहाँ स्नान करनेसे मनुष्य इन्द्रके आधे आसनको प्राप्त कर लेता है। तत्पश्चात् सभी पापोंके विनाशक स्त्री तीर्थमें जाय। वहाँ भी स्नानमात्रसे निश्चय ही गाणेश्वरी गति प्राप्त होती है। ऐरण्डी और नर्मदाका संगम लोकप्रसिद्ध तीर्थ है, वह अतिशय पुण्यदायक तथा सभी पापोंका विनाश करनेवाला है। राजेन्द्र ! वहाँ उपवास और नित्य व्रतोंका सम्पादन करते हुए स्नान करनेसे मनुष्य ब्रह्महत्याके पापसे मुक्त हो जाता है। राजेन्द्र तदुपरान्त नर्मदा और समुद्रके संगमपर जाना चाहिये, जो जामदग्न्य नामसे प्रसिद्ध है। इसी तीर्थमें जनार्दनको सिद्धि प्राप्त हुई थी तथा इन्द्र अनेक यज्ञोंका अनुष्ठान कर देवताओंके अधीश्वर हुए। राजेन्द्र ! उस नर्मदा और सागरके सङ्गममें स्नान कर मनुष्य अश्वमेधयज्ञसे तिगुना फल प्राप्त करता है। पश्चिम समुद्रके संधि-स्थानपर स्वर्गद्वारविन तीर्थ है, वहाँ देवता, ऋषि सिद्ध और चारण तीनों संध्याओं विमलेश्वर महादेवको आराधना करते हैं। राजन्! वहाँ स्नानकर मानव लोक पूजित होता है। विमलेश्वरसे बढ़कर तोर्थ न हुआ है और न होगा। उस तीर्थमें उपवास कर जो विमलेश्वरका दर्शन करते हैं, वे सात जन्मोंके पापोंसे मुक्त होकर शिवपुरीमें जाते हैं ।॥ 3039 ॥राजेन्द्र इसके बाद श्रेष्ठ कौशिकीतीर्थको यात्रा करे। राजन्! वहाँ उपवासपूर्वक स्नान करने और नियमित भोजन करके एक रात निवास करनेसे मनुष्य इस तीर्थ के प्रभावसे हत्या के पापसे मुक्त हो जाता है। जो सागरेश्वरका दर्शन करता है, उसे सभी तीर्थोंके अभिषेकका फल प्राप्त हो जाता है वहाँसे एक योजनके भीतर बर्तुस्थानमें शिवजी संस्थित हैं, अतः उनका दर्शन कर लेनेसे सभी तीर्थोका दर्शन हो जाता है— इसमें संशय नहीं है। वह मानव सभी पापोंसे मुक्त होकर जहाँ रुद्र रहते हैं, वहाँ चला जाता है। महाराज! नर्मदा सङ्गमसे लेकर अमरकण्टकके मध्यमें दस करोड तीर्थ बतलाये जाते हैं। वहाँ एक तीर्थसे दूसरे तीर्थके मध्यमें करोड़ों ऋषिगण निवास करते हैं। राजेन्द्र! सभी ध्यानपरायण अग्निहोत्री विद्वानोंद्वारा सेवित यह तीर्थ परम्परा अभीष्ट फल प्रदान करनेवाली है। पाण्डव! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इन तीर्थोका पाठ करता है या श्रवण करता है, उसे सभी तीर्थों में अभिषेक करनेका फल प्राप्त होता है और उसपर नर्मदा सदा प्रसन्न होती है— इसमें संदेह नहीं है। साथ ही उसपर महामुनि मार्कण्डेय एवं रुद्र प्रसन्न होते हैं। (इस तीर्थके प्रभावसे) वन्ध्याको पुत्रकी प्राप्ति होती है, अभागिनी सौभाग्यवती हो जाती है, कन्या पतिको प्राप्त करती है तथा अन्य जो कोई जिस फलको चाहता है, उसे वह सब फल प्राप्त हो जाता है— इसमें अन्यथा विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। ब्राह्मण वेदका ज्ञान प्राप्त करता है, क्षत्रिय विजयी होता है, वैश्य धन प्राप्त करता है और शूद्रको अच्छी गति प्राप्त होती है तथा मूर्ख विद्याको प्राप्त करता है। जो मनुष्य तीनों संध्याओंमें इसका पाठ करता है उसे न तो नरकका दर्शन होता है और न प्रियजनोंका वियोग ही प्राप्त होता है ll 40-51 ll