मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। जो परस्पर वैर रखनेवाले, क्रोधी, भयभीत तथा अपमानित है, उनके प्रति भेद-भीतिका प्रयोग करना चाहिये क्योंकि वे भेदद्वारा साध्य माने गये हैं। जो लोग जिस दोष के कारण दूसरेसे भयभीत नहीं होते उन्हें उसी दोपके द्वारा भेदन करना चाहिये। उनके प्रति अपनी ओरसे आशा प्रकट करे और दूसरेसे भयकी आशङ्का दिखलाये। इस प्रकार उन्हें फोड़ ले तथा फूट जानेपर उन्हें अपने वशमें कर ले संगठित लोग भेद-नीतिके बिना इन्द्रद्वारा भी दुःसाध्य होते हैं। इसीलिये नीतिज्ञलोग भेद-भीतिकी ही प्रशंसा करते हैं। इस नीतिको अपने मुखसे तथा दूसरेके मुखसे भेद्य व्यक्तिसे कहे या कहलाये, परंतु अपने विषयमें दूसरेके मुखसे सुनी हुई भेद नीतिको परीक्षा करके ठीक मानना चाहिये। अपने कार्यके उद्देश्यसे सुनिपुण नीतिज्ञोंद्वारा जो तुरंत भेदित किये जाते हैं, वे ही सच्चे अर्थ में भेदित कहे जाते हैं, अर्थवादियों एवं राजाद्वारा किये गये नहीं। जहाँ राजाओंके सम्मुख आन्तरिक (दुर्गक अन्तर्गतका) कोप और बाहरी कोप- दोनों उपस्थित हों, वहाँ आन्तरिक कोप ही महान् है; क्योंकि वह राजाओंके लिये विनाशकारी होता है ॥1-7॥
छोटे राजाओंका क्रोध राजाके लिये बाह्य क्रोध कहा गया है तथा रानी, युवराज, सेनापति, अमात्य, मन्त्री और राजकुमारके द्वारा किया गया क्रोध आन्तरिक कोप कहा गया है। इन सबका कोप राजाओंके लिये भयानक बतलाया गया है। महाभाग । अत्यन्त भीषण बाह्य कोपके उत्पन्न होनेपर भी यदि राजाका अन्तःपुर (दुर्गस्थ महारानी, युवराज, मन्त्री आदि प्रकृति) शुद्ध एवं अनुकूल है तो वह शीघ्र ही विजय-लाभ करता है। यदि राजा इन्द्रके समान हो तो भी वह अन्तः (दुर्गस्थ रानी, युवराज, मन्त्री आदिके) कोपसे नष्ट हो जाता है। इसलिये राजाको प्रयत्नपूर्वक उस आन्तरिक कोपकी रक्षा करनी चाहिये। शत्रुओंको जीतनेकी इच्छवाले राजाको चाहिये कि दूसरेसे भेद नीतिद्वारा क्रोध पैदा कराकरउसकी जातिमें भेद उत्पन्न कर दे और प्रयत्नपूर्वक अपने जाति-भेदकी रक्षा करे। यद्यपि संतप्त भाई-बन्धु राजाकी उन्नति देखकर जलते रहते हैं, तथापि राजाको दान और | सम्मानद्वारा उनको मिलाये रखना चाहिये; क्योंकि जातिगत भेद बड़ा भयंकर होता है। जातिवालोंपर प्रायः लोग अनुग्रहका भाव नहीं रखते और न उनका विश्वास ही करते हैं, इसलिये राजाओंको चाहिये कि जातिमें फूट | डालकर शत्रुको उनसे अलग कर दें। इस भेद नीतिद्वारा भिन्न किये गये शत्रुओंके विशाल समूहको भी संग्रामभूमिमें थोड़ी-सी सुसंगठित सेनासे ही नष्ट किया जा सकता है, अतएव नीतिकुशल लोगोंको सुसंगठित शत्रुओंके प्रति भी भेदनीतिका ही प्रयोग करना चाहिये ॥ 8- 16 ।।