ऋषियोंने पूछा- सूतजी! आप भगवान् नरसिंहके माहात्म्यका तो विस्तारपूर्वक वर्णन कर चुके, अब पुनः उन्हीं भगवान्के दूसरे माहात्म्यको विस्तारपूर्वक बतलाइये। भला, पूर्वकालमें स्वर्णमय कमलसे यह जगत् कैसे उत्पन्न हुआ था और उस कमलमेंसे वैष्णवी सृष्टि कैसे प्रादुर्भूत हुई थी ? ॥ 1-2 ॥
सूतजी कहते हैं- ऋषियो! भगवान् नरसिंहके माहात्म्यको सुनकर सूर्यपुत्र मनुके नेत्र आश्चर्यसे उत्फुल हो उठे, तब उन्होंने पुनः भगवान् केशवसे प्रश्न किया ॥ 3 ॥
मनुने पूछा- जनार्दन! 'पाद्मकल्प' में जब आप इस जलार्णवके मध्यमें स्थित थे, तब आपकी नाभिसे यह पद्यमय जगत् कैसे उत्पन्न हुआ था ?पूर्वकालमें समुद्रके जलमें शयन करनेवाले भगवान् पद्मनाभके प्रभावसे उस कमलमें ऋषिगणोंसहित देवगण कैसे उत्पन्न हुए थे? योगवेत्ताओंके अधीश्वर ! इस सम्पूर्ण योगका वर्णन कीजिये; क्योंकि भगवान्को कीर्तिका वर्णन सुनते हुए मुझे तृप्ति नहीं हो रही है। (कृपया यह बतलाइये कि ) भगवान् पुरुषोत्तम कितने समयके पश्चात् शयन करते हैं? कितने कालतक सोते हैं? इस कालका उद्भव (निर्धारण) कहाँसे होता है? फिर वे महायशस्वी भगवान् कितने समयके बाद निद्रा त्यागकर उठते हैं? निद्रासे उठकर वे भगवान् किस प्रकार सम्पूर्ण जगत्को सृष्टि करते हैं? महामुने! पूर्वकालमें कौन-कौन से प्रजापति थे? इस विचित्र सनातन लोकका निर्माण किस प्रकार किया गया था ? महाप्रलयके समय जब स्थावरजङ्गम सभी प्राणी नष्ट हो जाते हैं, देवता, राक्षस और मनुष्य जलकर भस्म हो जाते हैं, नागों और राक्षसोंका विनाश हो जाता है, लोकमें अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वीतलका सर्वथा लोप हो जाता है, उस समय पञ्चमहाभूतोंका विपर्यय हो जानेपर केवल घना अन्धकार छाया रहता है, तब उस शून्य एकार्णवके जलमें सर्वव्यापी, पञ्चमहाभूतोंके स्वामी, महातेजस्वी, विशालकाय, सुरेश्वरोंमें श्रेष्ठ एवं योगवेत्ता भगवान् किस प्रकार विधिका सहारा लेकर स्थित रहते हैं? ब्रह्मन् ! यह सारा प्रसङ्ग में परम | भक्तिके साथ सुनना चाहता हूँ। धर्मिष्ठ! आप इस नारायण सम्बन्धी यशका वर्णन कीजिये। भगवन्! हमलोग श्रद्धापूर्वक आपके समक्ष बैठे हैं, अतः आप इसका अवश्य वर्णन कीजिये ॥ 4- 14 ll
मत्स्यभगवान्ने कहा- सूर्यकुलसत्तम। नारायणकी यशोगाथा सुननेमें जो आपकी विशेष स्पृहा है, यह नारायणके वंशजोंके कुलमें उत्पन्न होनेवाले आपके लिये उचित ही है। मैंने पुराणों, वेदों तथा प्रवचनकर्ता श्रेष्ठ महात्मा ब्राह्मणोंके मुखसे जैसा सुना है तथा बृहस्पतिके समान कान्तिमान् पराशरनन्दन गुरुदेव श्रीमान् कृष्णद्वैपायन व्यासजीने तपोबलसे साक्षात्कार करके जैसा मुझे बतलाया है, वही मैं अपनी जानकारीके अनुसार यथाशक्ति आपसे वर्णन कर रहा हूँ, सावधानीपूर्वक श्रवण कीजिये। द्विजवरो! जिसे ऋषियोंमें केवल मैं ही जान सकता हूँ जिसे विश्वके आश्रयस्थान ब्रह्मा भी तत्त्वत्पूर्वक नहीं जानते, नारायणके उस परम तत्त्वको जाननेके लिये दूसरा कौन उत्साह कर सकता है।वही समस्त वेदोंका कर्म है। वहीं महर्षियोंका रहस्य है। सम्पूर्ण यज्ञोंद्वारा पूजनीय वही है। वहीं सर्वज्ञोंका तत्त्व है। अध्यात्मवेत्ताओंके लिये वही चिन्तनीय और कुकर्मियोंके लिये नरकस्वरूप है उसीको अधिदेव देव और अधियज्ञ नामसे अभिहित किया जाता है। वही भूत अधिभूत और परमर्षियोंका परम तत्त्व है ॥ 15-21 ॥
वेदोंद्वारा निर्दिष्ट यज्ञ वही है। विद्वान्लोग उसे तपरूपसे जानते हैं जो कर्ता, कारक, बुद्धि, मन, क्षेत्र प्रणव, पुरुष, शास्ता और अद्वितीय कहा जाता है तथा विभिन्न देवता जिसे पाँच प्रकारका प्राण, अविनाशी ध्रुव, काल, पाक, पक्ता (पचानेवाला), द्रष्टा और स्वाध्याय कहते हैं, वह यही है। इसके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है वे ही भगवान् सम्पूर्ण जगत्के उत्पादक हैं और वे ही संहारक भी हैं। वे ही हम सब लोगोंको उत्पन्न करते हैं और अन्तमें व्याकुल करके नष्ट कर देते हैं। हमलोग उन्हीं आदि पुरुषकी यज्ञद्वारा आराधना करते हैं और निवृत्तिपरायण होकर उन्हींको प्राप्त करने की इच्छा करते हैं। जो वक्ता है, जो वक्तव्य है, जिसके विषयमें मैं आपलोगों से कह रहा हूँ, जो सुना जाता है, जो सुनने योग्य है, जिसके विषयमें अन्य सारी बातें कही जाती हैं, जो कथाएँ प्रचलित हैं, श्रुतियाँ जिसके परायण हैं, जो विश्वस्वरूप और विश्वका स्वामी है, वही नारायण कहा गया है। जो सत्य है, जो अमृत है, जो अक्षर है, जो परात्पर है, जो भूत है और जो भविष्यत् है, जो चर-अचर जगत् है, इसके अतिरिक्त अन्य जो कुछ है, वह सब कुछ सामर्थ्यशाली एवं सर्वश्रेष्ठ पुराणपुरुष ही है । ll 22-28 ll