गर्गजीने कहा- बह्मन्। जब जंगली पशु-पक्षी ग्रामोंमें प्रवेश करने लगें या ग्रामीण पशु-पक्षी जंगलोंमें चले जायें, जलमें रहनेवाले जीव-जन्तु भूमिपर रेंगने लगे या भूमिके जीव जलमें चले जायें, अमङ्गलदायक श्रृंगाल राजद्वार या नगरद्वारपर निर्भय होकर बोलना आरम्भ कर दें, दिनमें घूमनेवाले रात्रिमें और रात्रिमें घूमनेवाले दिनमें घूमने लगें तथा ग्राममें रहनेवाले जीव ग्रामको छोड़ दें, तब उस ग्रामको शून्यताका निर्देश करना चाहिये। जब ग्रामोंमें पशु आदि जीवगण क्रोधोन्मत्त हो मण्डल बनाकर क्रूर स्वरमें चिल्लाने लगें, तब भी यही फल प्राप्त होता है। सायंकालमें मुर्गा बाँग देने लगे, हेमन्त ऋतुमें कोकिल बोले और सूर्योदयके समय सूर्याभिमुखी हो श्रृंगाली चिल्लाये तो भयका आगमन कहना चाहिये। घरमें कबूतर घुस आये, मस्तकपर मांसभक्षी पक्षी बैठ जाय और घरके भीतर मधुमक्खियाँ छत्ते लगायें तो उस घरके स्वामीकी मृत्यु होती है। यदि दुर्गादिके परकोटे, प्रवेशद्वार, राजभवन, तोरण (सिंहद्वार), बाजार, गली, पताका, ध्वज और अस्त्र-शस्त्रादिपर मांसभक्षी पक्षी बैठ जाय अथवा घरमें बिमवट हो जाय या छत्तेसे मधु चूने लगे तो उस देशका विनाश हो जाता है तथा राजाकी मृत्यु हो जाती है ॥ 18 ॥
चूहे और शलभ अधिक परिमाणमें दिखायी पड़ें तो दुर्भिक्ष पड़ता है। लकड़ीके लुआ, हड्डियाँ सींगवाले जानवर, कुत्ते और बन्दरोंकी अधिकता होनेपर देशमें व्याधियाँ फैलनेका भय रहता है। यदि कौए चोंचमें अन्न लेकर निर्भयतापूर्वक लोगोंपर टूट पड़ते हों तो दुर्भिक्ष और रण छिड़नेकी सम्भावना समझनी चाहिये। यदि श्वेत कौआ मैथुन करते हुए दिखलायी पड़ जाय तो उस देशका राजा मर जाता है अथवा वह देश विनष्ट हो जाता है। जहाँ राजाके द्वार तथा घरपर उल्लू बोलता हो, वहाँ उस घरके || स्वामीकी मृत्यु तथा सम्पत्तिका विनाश जानना चाहिये।इस प्रकार पशु-पक्षीसम्बन्धी उत्पातोंके होनेपर दक्षिणासहित हवन करना चाहिये या पाँच ब्राह्मणोंको 'देवाः कपोता' | इस मन्त्रका जप करना चाहिये। ब्राह्मणोंको विधिपूर्वक सुवर्ण तथा दुपट्टेसहित दो वस्त्रोंसे युक्त गौओंका दान करना चाहिये। ऐसा करनेसे पशुओं एवं पक्षियोंद्वारा | सूचित किया गया पाप शान्त हो जाता है ।॥ 9-14॥