ऋषियोंने पूछा- सूतजी अब आप हमलोगों क्रमश: पुराणोंकी संख्याका विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। साथ ही उनके दान और धर्मकी सम्पूर्ण आनुपूर्वी विधि भी यथार्थरूपसे बतलाइये ॥ 1 ॥
सूतजी कहते हैं-ऋषियो ऐसे ही प्रश्नके उत्तरमें उस समय पुराणपुरुष विश्वात्मा मत्स्यभगवान्ने मनुके प्रति पुराणोंके विषयमें जो कुछ कहा था, उसे सुनिये ॥ 2 ॥
मत्स्यभगवान् ने कहा- राजर्षे! ब्रह्माजीने | (सृष्टिनिर्माणके समय) समस्त शास्त्रों में सर्वप्रथम पुराणका ही स्मरण किया था। उसके बाद उनके मुखोंसे वेद दुर्भूत हुए हैं। अनथ उस कल्पान्तरमें सौ करोड़ श्लोकोंमें विस्तृत, पुण्यप्रद और त्रिवर्ग-तीन पुरुषार्थके समुदाय (धर्म, अर्थ, काम) का साधनस्वरूप पुराण एक ही था। सभी लोकोंके जलकर नष्ट हो जानेपर मैंने ही अश्व ( हयग्रीव) - रूपसे व्याकरणादि छहों अङ्गसहित चारों वेद, पुराण, न्यायशास्त्र, मीमांसा और धर्मशास्त्रको ग्रहण करके उनका संकलन किया था। पुनः मैंने ही कल्पके आदिमें एकार्णवके समय मत्स्यरूपसे जलके भीतर स्थित रहकर इस (विषय) का पूर्णरूपसे वर्णन किया था उसे सुनकर ब्रह्माने देवताओं और मुनियोंसे कहा था राजन्! तभी से संस्कारमें समस्त शास्त्रों और पुराणोंका प्रचार हुआ। काल प्रभावसे पुराणकी ओरसे लोगोंकी उदासीनता देखकर प्रत्येक द्वापरयुगमें मैं सदा व्यासरूपसे प्रकट होता हूँ और उस (पुराण) का संक्षेप कर चार लाख श्लोकोंमें बना देता हूँ। वही अठारह भागों में विभक्त होकर इस भूलोकमें प्रकाशित होता है। आज भी यह पुराण इस देवलोक सौ करोड़ श्लोकोंमें ही है।उसका पूरा सारांश मैंने संक्षेपसे इस चार लाख श्लोकोंवाले पुराणमें भर दिया है। अब उन अठारह पुराणोंका यहाँ वर्णन किया जाता है ॥ 3-11 ॥ श्रेष्ठ मुनियो ! अब मैं उनका नाम निर्देशानुसार वर्णन कर रहा है, सुनिये पूर्वकालमें ब्रह्माजीने महर्षि मरीचिके प्रति जितने श्लोकोंका वर्णन किया था, वह प्रथम ब्रह्मपुराण कहा जाता है। उसमें तेरह हजार श्लोक हैं। जो मानव इस पुराणको लिखकर उस पुस्तकका जलधेनु' (दानके लिये जलके घड़े में कल्पित गी) के साथ वैशाखकी पूर्णिमा तिथिके दिन ब्राह्मणको दान कर देता है, वह ब्रह्मलोकमें पूजित होता है। जिस समय यह जगत् स्वर्णमय कमलके रूपमें परिणत था, उस समयका वृत्तान्त जिसमें वर्णन किया गया है, उसे लोग (द्वितीय) पद्मपुराण नामसे अभिहित करते हैं। उस पद्मपुराणकी श्लोक संख्या पचपन हजार बतायी जाती है। स्वर्णनिर्मित कमलसे युक्त उस पुराणका जो मनुष्य तिलके साथ ज्येष्ठमासमें ब्राह्मणको दान करता है, उसे | अश्वमेध यज्ञ के फलकी प्राप्ति होती है। महर्षि पराशरने वाराह कल्पके वृत्तान्तका आश्रय लेकर जिन सम्पूर्ण धर्मोका वर्णन किया है, उनसे युक्त (तृतीय) वैष्णव (विष्णुपुराण) कहा जाता है। विद्वान्लोग उसका प्रमाण तेईस हजार श्लोकोंका बतलाते हैं। जो मानव आषाढमासकी पूर्णिमाको घृतधेनुयुक्त इस पुराणका दान करता है, उसका आत्मा पवित्र हो जाता है और वह वरुण-लोकमें जाता है। श्वेतकल्पके प्रसङ्गवश वायुने | इस मर्त्यलोकमें जिन धर्मोंका वर्णन किया था, उनका संकलन जिसमें हुआ है उसे (चतुर्थ) वायवीय वायु या शिवपुराण) कहते हैं वह शङ्करजीके माहात्म्यसे भी परिपूर्ण है। इस पुराणकी श्लोक संख्या चौबीस हजार बतलायी जाती है। जो मनुष्य श्रावणमासमें श्रावणी पूर्णिमाको गुडधेनु और बैलके साथ इस पुराणका कुटुम्बी ब्राह्मणको दान करता है, वह | पवित्रात्मा होकर शिवलोकमें एक कल्पतक निवास करता है।जिसमें गायत्रीका आश्रय लेकर विस्तारपूर्वक धर्मका वर्णन किया गया है तथा जो वृत्रासुरवधके वृत्तान्तसे संयुक्त है, उसे (पञ्चम) भागवतपुराण' कहा जाता है। इसी प्रकार सारस्वतकल्पमें जो श्रेष्ठ मनुष्य हो गये हैं, लोकमें उनके वृत्तान्तसे सम्बन्धित पुराणको 'भागवतपुराण' कहा जाता है। यह पुराण अठारह हजार श्लोकोंका बतलाया जाता है। जो मनुष्य इसे लिखकर उस पुस्तकका स्वर्णनिर्मित सिंहके साथ भाद्रपदमासकी पूर्णिमा तिथिको दान कर देता है वह परमगति — मोक्षको प्राप्त हो जाता है ॥ 12-22 ॥
जिस पुराणमें बृहत्कल्पका आश्रय लेकर देवर्षि नारदने धर्मोंका उपदेश किया है, उसे (षष्ठ) नारदीय (नारदपुराण) कहा जाता है। उसमें पचीस हजार श्लोक हैं। जो मनुष्य आश्विनमासकी पूर्णिमा तिथिको धेनुके साथ इस पुराणका दान करता है, वह पुनर्जन्मसे रहित परम सिद्धिको प्राप्त हो जाता है। जिस पुराणमें पक्षियोंका आश्रय लेकर एक मुनिके प्रश्न करनेपर धर्मचारी मुनियोंद्वारा धर्म और अधर्मके विचारका जो कुछ व्याख्यान दिया गया है, उन सबका महर्षि मार्कण्डेयने पुनः विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, वह लोकमें (सप्तम) मार्कण्डेयपुराणके नामसे विख्यात है। इसकी श्लोक संख्या नौ हजार है। जो मनुष्य इस पुराणको लिखकर स्वर्णनिर्मित हाथीके सहित कार्तिकी पूर्णिमाको उस पुस्तकका दान करता है, वह पुण्डरीक यज्ञके फलका भागी होता है। जिसमें ईशानकल्पके वृत्तान्तका आश्रय लेकर अग्निने महर्षि वसिष्ठके प्रति उपदेश किया है, उसे (अष्टम) आग्रेय (अग्निपुराण) कहते हैं। इसमें सोलह सहस्र श्लोक हैं। जो मनुष्य इसे लिखकर उस पुस्तकका स्वर्णनिर्मित कमल और तिलधेनुसहित मार्गशीर्षमासकी पूर्णिमा तिथिको विधि-विधानके साथ दान करता है, उसके लिये यह सम्पूर्ण यज्ञोंके फलका प्रदाता हो जाता है।जिसमें अघोर कल्पके वृत्तान्तके प्रसङ्गवश सूर्यके माहात्म्यका आश्रय लेकर ब्रह्माने मनुके प्रति जगत्की स्थिति और प्राणिसमूहके लक्षणका वर्णन किया है तथा जिसमें प्राय: भविष्यकालीन चरितका वर्णन आया है, उसे इस लोकमें (नवम) भविष्यपुराण कहते हैं। उसमें चौदह हजार पाँच सौ श्लोक हैं। जो मनुष्य ईर्ष्या-द्वेषरहित हो पौषमासकी पूर्णिमा तिथिको उसका गुड़से पूर्ण घड़ेसहित दान करता है, उसे अनिष्टोम* नामक यज्ञके फलकी प्राप्ति होती है। जिसमें रथन्तर कल्पके वृत्तान्तका आश्रय लेकर सावर्णि मनुने नारदजीके प्रति भगवान् श्रीकृष्णके श्रेष्ठ माहात्म्यका वर्णन किया है तथा जिसमें ब्रह्मवराहका वृत्तान्त बारम्बार वर्णित हुआ है, उसे (दशम) ब्रह्मवैवर्तपुराण कहते हैं। इसमें अठारह सहस्र श्लोक हैं। जो मनुष्य माघमासमें पूर्णिमा तिथिको शुभ दिनमें इस ब्रह्मवैवर्तपुराणका दान करता है, वह ब्रह्मलोकमें सत्कृत होता है ॥ 23–35 ॥ जिसमें कल्पान्तके समय अग्रिका आश्रय लेकर देवाधिदेव महेश्वरने अग्रिलिङ्गके मध्यमें स्थित रहते हुए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारोंकी प्राप्तिके लिये उपदेश दिया है, उस पुराणको स्वयं ब्रह्माने (एकादश) लैङ्ग (लिङ्ग)-पुराण नामसे अभिहित किया है। उसमें ग्यारह हजार श्लोक हैं। जो मानव फाल्गुनमासकी पूर्णिमा तिथिको तिलधेनुसहित इस पुराणका दान करता है, वह शिवजीकी साम्यताको प्राप्त कर लेता है। मुनिवरो! जिसमें मानवकल्पके प्रसङ्गवश पुनः महावराहके माहात्म्यका आश्रय लेकर भगवान् विष्णुने पृथ्वीके प्रति उपदेश दिया है, उसे भूतलपर (द्वादश) वराहपुराण कहते हैं। उस पुराणकी श्लोक संख्या चौबीस हजार बतलायी जाती है। जो मनुष्य गरुड़की सोनेकी मूर्ति बनवाकर उस मूर्ति तथा तिल-धेनुके साथ इस पुराणका चैत्रमासकी पूर्णिमा तिथिको कुटुम्बी ब्राह्मणको दान करता है, वह वराहभगवान्की कृपासे विष्णुपदको प्राप्त कर लेता है।जिसमें कल्पान्तके समय स्वामिकार्तिकने माहेश्वर धर्मोका आश्रय लेकर शिवजीके सुशोभन चरित्रोंसे युक्त वृत्तान्तका वर्णन किया है, उस (त्रयोदश पुराण) का नाम स्कन्दपुराण है। वह मृत्युलोकमें इक्यासी हजार एक सौ श्लोकोंका बतलाया जाता है। जो मनुष्य उसे लिखकर उस पुस्तकका स्वर्णनिर्मित त्रिशूलके साथ सूर्यके मीन राशिपर आनेपर (प्राय: चैत्रमासमें) दान करता है, वह शिव-पदको प्राप्त कर लेता है। जिसमें ब्रह्माने त्रिविक्रमके माहात्म्यका आश्रय लेकर त्रिवर्गोंका वर्णन किया है, उसे (चतुर्दश) वामनपुराण कहते हैं। इसमें दस हजार श्लोक हैं। यह कूर्मकल्पका अनुगमन करनेवाला तथा मङ्गलप्रद है। जो मानव शरत्कालीन विषुवयोग | (18 सितम्बरके लगभग दिन-रातके बराबर होनेके काल- तुलासंक्रान्ति) में इसका दान करता है, वह विष्णुपदको प्राप्त कर लेता है। जिसमें कूर्मरूपी भगवान् जनार्दनने रसातलमें इन्द्रद्युम्रकी कथा के प्रसङ्गश इन्द्रके निकट धर्म, अर्थ, काम और मोक्षके माहात्म्यका ऋषियोंके प्रति वर्णन किया है, उसे (पञ्चदश) कूर्मपुराण कहते हैं। यह लक्ष्मीकल्पसे सम्बन्ध रखनेवाला है। इसमें अठारह हजार श्लोक हैं। जो मनुष्य सूर्यके उत्तरायण एवं दक्षिणायनके प्रारम्भकालमें स्वर्णनिर्मित कच्छपसहित कूर्मपुराणका दान करता है, उसे एक हजार गोदान करनेका फल प्राप्त होता है ॥ 36-48 मुनिवरो! जिसमें कल्पके प्रारम्भमें भगवान् जनार्दनने मत्स्य रूप धारण करके मनुके प्रति श्रुतियोंकी प्रवृत्तिके निमित्त नृसिंहावतारके वृत्तान्तका आश्रय लेकर सातों कल्पोंके वृत्तान्तोंका वर्णन किया है, उसे (षोडश मात्स्य) मत्स्यपुराण जानना चाहिये। उसमें चौदह हजार श्लोक हैं।जो मनुष्य विषुवयोग (मेष अथवा तुलाकी संक्रान्ति) में स्वर्णनिर्मित मत्स्य और दुधारू गौके साथ इस पुराणका दान करता है, उसके द्वारा समग्र पृथ्वीका दान सम्पन्न हो जाता है अर्थात् उसे सम्पूर्ण पृथ्वीके दानका फल प्राप्त होता है। जिसमें भगवान् श्रीकृष्णने गरुड कल्पके समय विश्वाण्ड (ब्रह्माण्ड) से गरुडकी उत्पत्तिके वृत्तान्तका आश्रय लेकर उपदेश दिया है, उसे इस लोकमें सप्तदश गारुड (गरुडपुराण) कहते हैं। उसे भूतलपर उन्नीस हजार श्लोकोंका कहा जाता है। जो पुरुष स्वर्णनिर्मित हंसके साथ इस पुराणका दान करता है, उसे मुख्य सिद्धि प्राप्त होती है और वह शिवलोक में निवास करता है। जिसमें ब्रह्माने पुनः ब्रह्माण्डके माहात्म्यका आश्रय लेकर वृत्तान्तोंका वर्णन किया है तथा जिसमें भविष्यकल्पोंका भी विस्तारपूर्वक वर्णन सुना जाता है, उसे ब्रह्माने (अन्तिम - अष्टादश) ब्रह्माण्डपुराण बतलाया है। वह ब्रह्माण्डपुराण बारह हजार दो सौ श्लोकोंवाला है। जो मानव व्यतीपात नामक योगमें पीले रंगके दो ऊनी वस्त्रोंके साथ इस पुराणका दान करता है, उसे एक हजार राजसूय यह फलकी प्राप्ति होती है उसी (ब्रह्माण्डपुराण) को यदि स्वर्णनिर्मित गौके साथ दान किया जाय तो वह ब्रह्मलोक-प्राप्तिरूपी फलका प्रदाता बन जाता है। अद्भुतकर्मा महर्षि वेदव्यासने मेरे पिता रोमहर्षणके प्रति इन चार लाख श्लोकोंका वर्णन किया था। उसीको मेरे पिताने मुझे बतलाया और मैंने आपलोगोंक प्रति निवेदन कर दिया। परमर्षि व्यासजीने मृत्युलोकमें लोकहितके लिये इसका संक्षेप कर दिया है, किंतु देवलोकमें तो यह आज भी सौ करोड़ श्लोकोंसे युक्त ही है ॥ 49-58 ॥
ऋषियो । अब मैं उन उपपुराणोंका वर्णन कर रहा हूँ, जो लोकमें प्रचलित हैं। पद्मपुराणमें जहाँ नृसिंहावतारके वृत्तान्तका वर्णन किया गया है, उसे नारसिंह (नरसिंहपुराण) कहते हैं उसमें अठारह हजार श्लोक है। जिसमें स्वामिकार्तिकने नन्दाके माहात्म्यका वर्णन किया है, उसे लोग नन्दीपुराणके नामसे पुकारते हैं।मुनिवरो। जहाँ भविष्यकी चर्चासहित साम्बका प्रसङ्ग | लेकर कथानकका वर्णन किया गया है, उसे लोकमें साम्बपुराण कहते हैं। इस प्रकार सूर्य महिमाके प्रसङ्गमें होनेसे उसे आदित्यपुराण भी कहा जाता है। द्विजवरो! उपर्युक्त अठारह पुराणोंसे पृथक् जो पुराण बतलाये गये हैं, उन्हें इन्हींसे निकला हुआ समझना चाहिये। पुराणों में बतलाये गये सर्गादि पाँच अङ्ग तथा आख्यान भी कहे गये हैं उनमें-सर्ग (ब्रह्माद्वारा की गयी सृष्टिरचना), प्रतिसर्ग (ब्रह्माके मानस पुत्रोंद्वारा की गयी सृष्टि रचना*), वंश (सूर्य, चन्द्र, अनि आदि), मन्वन्तर (स्वायम्भुव आदि मनुओंका कार्यकाल) और वंश्यानुचरित (पूर्वोक्त वंशोंमें उत्पन्न हुए नरेशोंका जीवन चरित्र) - ये पाँच पुराणोंके लक्षण बतलाये गये हैं। इन पाँच लक्षणोंवाले सभी पुराणोंमें सृष्टि और संहार करनेवाले ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य और रुद्रके तथा भुवनके माहात्म्यका वर्णन किया गया है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका भी इनमें विस्तृत विवेचन किया गया है। इनके विरुद्ध आचरण करनेसे जो फल प्राप्त होता है, उसका भी निरूपण किया गया है ॥ 59-66 ll
सत्त्वगुणप्रधान पुराणोंमें भगवान् विष्णुके माहात्म्यकी तथा रजोगुणप्रधान पुराणोंमें ब्रह्माकी प्रधानता जाननी चाहिये। उसी प्रकार तमोगुणप्रधान पुराणोंमें अग्नि और शिवजीके माहात्म्यका विशेषरूपसे वर्णन किया गया है। संकीर्ण पुराणों (उपपुराणों) में सरस्वती और पितरोंका वृत्तान्त कहा गया है। सत्यवती नन्दन व्यासजीने इन अठारह पुराणोंकी रचना कर इनके कथानकोंसे समन्वित सम्पूर्ण महाभारत नामक इतिहासकी रचना की, जो वेदोंके अर्थसे सम्पन्न है। वह एक लाख श्लोकोंमें वर्णित
है। महर्षि वाल्मीकिने जिस उत्तम रामोपाख्यान रामायणका वर्णन किया है, उसीको पहले सौ करोड़ श्लोकोंमें विस्तार करके ब्रह्माने नारदजीको बतलाया था। नारदजीने उसे लाकर वाल्मीकिजीको प्रदान किया। वाल्मीकिजीने धर्म, अर्थ और कामके साधनस्वरूप उस रामायणका लोकोंमें प्रचार किया। इस प्रकार ये सवा पाँच लाख श्लोक मृत्युलोकमें प्रचलित बतलाये गये हैं।विद्वान्लोग इन पुराणोंको पुरातन कल्पकी कथाएँ मानते हैं। इन पुराणोंका अनुक्रम धन, यश और आयुकी वृद्धि करनेवाला है। जो इसे पढ़ता अथवा सुनता है, वह परम गतिको प्राप्त हो जाता है। यह परम पवित्र और यशका खजाना है। यह पितरोंको परम प्रिय है। यह देवताओं में अमृतके समान प्रतिष्ठित है और नित्य मनुष्योंके पापका | हरण करनेवाला है ॥ 67 – 73 ॥