सूतजी कहते हैं-ऋषियो । अजमीढकी नीलिनी नामकी पत्नीके गर्भसे राजा नीलका जन्म हुआ। नीलकी उग्र तपस्याके परिणामस्वरूप सुशान्तिकी उत्पत्ति हुई। सुशान्तिसे पुरुजानुका और पुरुजानुसे पृथुका जन्म हुआ। पृथुका पुत्र भद्राश्च हुआ। अब भद्राश्वके पुत्रोंके विषयमें सुनिये- मुगल, जय, राजा बृहदिषु पराक्रमी जवीनर और पाँचवाँ कपिल-ये पाँचों भुद्राश्वके पुत्र थे। इन पाँचोंके द्वारा शासित जनपद पञ्चाल नामसे प्रसिद्ध हुए। ये सभी पञ्चाल देशोंके रक्षक थे— ऐसा हमलोगोंने सुना है। मुद्रलके पुत्रगण, जो क्षत्रियांशसे युक्त द्विजाति थे, मौद्गल्य नामसे प्रसिद्ध हुए। ये कण्व और मुद्रलके गोत्र में उत्पन्न होनेवाले द्विजाति अङ्गिराके पक्षमें सम्मिलित हो गये। महायशस्वी ब्रह्मिष्ठने मुद्रलके पुत्ररूपमें जन्म लिया। उसका पुत्र इन्द्रसेन और उसका पुत्र विन्ध्याश्व हुआ। विन्ध्याश्वके संयोगसे मेनकाके गर्भसे जुड़वीं संतान उत्पन्न हुई थी—ऐसा सुना जाता है। उनमें एक तो राजर्षि दिवोदास थे और दूसरी यशस्विनी अहल्या थी। अहल्याने शरद्वान् गौतमके पुत्र ऋषिश्रेष्ठ शतानन्दको उत्पन्न किया था। शतानन्दका पुत्र महातपस्वी एवं धनुर्वेदका पारंगत विद्वान् सत्यधृति हुआ। धर्मात्मा सत्यधृतिका वीर्य अमोघ था। एक बार एक अप्सराको देखकर सत्यधृतिका वीर्य (सरोवरमें स्नान करते समय) जलमें स्खलित हो गया। उस वीर्यसे उस सरोवरमें जुड़वीं संतान उत्पन्न हो गयी। वे उसी सरोवरमें पल रहे थे। एक बार महाराज शंतनु शिकारके लिये निकले हुए थे। वे उस सरोवरमें घूमते हुए उन बच्चोंको देखकर कृपा-परवश हो उन्हें उठा लाये इस प्रकार मैंने शरद्वान्के उन पुत्रोंका जो गौतम (गोत्र) नामसे विख्यात हैं, वर्णन कर दिया। अब इसके आगे दिवोदासकी संततिका वर्णन कर रहा हूँ, उसे सुनिये ॥ 1-12 ॥दिवोदासका ज्येष्ठ पुत्र धर्मिष्ठ राजा मित्रयु हुआ। तत्पश्चात् उससे छोटे मैत्रायण और उसके बाद मैत्रेयकी उत्पत्ति हुई। ये सभी पुत्र ( ययातिके भाई) यतिकै पक्षके थे और क्षत्रियांशसे युक्त भार्गव (भृगुवंशी) कहलाते थे। राजा चैद्यवर मैत्रेयके पुत्र कहे जाते हैं। चैद्यवरसे विद्वान् सुदासका जन्म हुआ। वंशके नष्ट हो जानेपर पुनः अजमीढ सुदासके पुत्र रूपमें उत्पन्न हुए। इन्होंका दूसरा नाम सोमक भी है। सोमकका पुत्र जन्तु हुआ। उसके मारे जानेपर महात्मा अजमीढ सोमकके सौ पुत्र हुए। अजमीढकी धूमिनी नामक पक्षी थी, जो पुत्रको वृद्धि करनेवाली थी। जन्तुके मारे जानेसे पुत्रका अभाव हो जानेपर वह सौ वर्षोंतक दुष्कर तपस्यामें संलग्न हो गयी। एक समय भलीभाँति पवित्र किये हुए पदार्थोंको ही भोजन करनेवाली महान् व्रतपरायणा धूमिनी अग्निहोत्रके क्रमसे विधिपूर्वक अग्निमें हवन करके नींदके वशीभूत हो गयी। निरन्तर अग्निहोत्र करनेके कारण उसके शरीरका रंग धूमिल पड़ गया था। उसी समय अजमीढने उसमें गर्भाधान किया। उस गर्भसे धूमिनीने ऋक्ष नामक पुत्रको जन्म दिया, जो अपने सौ भाइयोंमें ज्येष्ठ था तथा जिसके शरीरका रंग धूम वर्णका था। ऋक्षसे संवरणकी और संवरणसे कुरुको उत्पत्ति हुई, जिन्होंने प्रयागका अतिक्रमण कर कुरुक्षेत्रकी तीर्थरूपमें कल्पना की थी। महाराज कुरु अनेकों वर्षोंतक इस कुरुक्षेत्रको अपने हाथों जोतते रहे। उन्हें इस प्रकार जोतते देखकर इन्द्रने भयभीत हो उन्हें वर प्रदान किया। इसी कारण कुरुक्षेत्र पुण्यप्रद और रमणीय क्षेत्र कहा जाता है। उन महाराज कुरुका वंश अत्यन्त विशाल था, जो उन्होंके नामसे (आगे चलकर) कौरव कहलाया 13–22 ॥ कुरुके सुधन्वा, जडु, महातेजस्वी परीक्षित् और शत्रुविनाशक प्रजन—ये चार परम प्रिय पुत्र हुए। सुधन्वाका पुत्र राजा च्यवन हुआ, जो बुद्धिमानोंमें श्रेष्ठ एवं धर्म और अर्थके | तत्त्वका ज्ञाता था। च्यवनका पुत्र कृमि हुआ, जो ऋक्षसे उत्पन्न हुआ था (इन्हीं ) कृमिके पुत्र महापराक्रमी चैद्योपरिचर वसु हुए। वे प्रभावशाली, शूरवीर, इन्द्रके समान विख्यात और (सदा विमानद्वारा) आकाशमें गमन करनेवाले थे। | चैद्योपरिचरके संयोगसे गिरिकाने सात संतानोंको जन्म दिया।| इनमें पहला महारथी मगधराज था, जो बृहद्रथ नामसे विख्यात हुआ। उसके बाद दूसरा प्रत्यश्रवा, तीसरा कुश, चौथा हरिवाहन पांचवीं यजुष और छठा मत्स्य नामसे प्रसिद्ध हुआ। सातवीं संतान काली नामकी कन्या थी। बृहद्रथका पुत्र कुशाग्र नामसे विख्यात हुआ। कुशाग्रका पुत्र पराक्रमी वृषभ हुआ। वृषभका पुत्र राजा पुण्यवान् था। पुण्यवान्से पुण्य और उससे राजा सत्यभूतिका जन्म हुआ। उसका पुत्र धनुष हुआ और उससे सर्वकी उत्पत्ति हुई। सर्वका पुत्र सम्भव हुआ और उससे राजा बृहद्रथका जन्म हुआ। बृहद्रथका पुत्र दो टुकड़ेके रूपमें उत्पन्न हुआ, जिन्हें जरानामकी राक्षसीने जोड़ दिया था। जराद्वारा जोड़ दिये जानेके कारण वह जरासंघ नामसे विख्यात हुआ। महाबली जरासंध अपने समयके समस्त क्षत्रियोंका विजेता था जरासंधका पुत्र प्रतापी सहदेव हुआ। सहदेवका पुत्र लक्ष्मीवान् एवं महातपस्वी सोमवित् हुआ सोमवित् श्रुतश्रवाकी उत्पत्ति हुई। (मगधपर शासन करनेके कारण) ये सभी नरेश मागध नामसे विख्यात |हुए ॥ 23- 33 ll
जहुने सुर नामक भूपालको पुत्ररूपमें जन्म दिया। सुरथका पुत्र वीरवर राजा विदूरथ हुआ। विदूरथका पुत्र सार्वभौम कहा गया है। सार्वभौमसे जयत्सेन उत्पन्न हुआ और उसका पुत्र रुचिर हुआ रुचिरसे भीमका और उससे त्वरितायुका जन्म हुआ त्वरितायुका पुत्र अक्रोधन और उससे देवातिथिकी उत्पत्ति बतलायी जाती है। देवातिथिका एकमात्र पुत्र दक्ष ही था । दक्षसे भीमसेनका जन्म हुआ और उसका पुत्र (पुरुवंशी) दिलीप तथा दिलीपका पुत्र प्रतीप हुआ। प्रतीपके तीन पुत्र कहे जाते हैं, ये तीनों देवापि, शंतनु और बाहीक हैं। बाह्रीकके सात पुत्र थे, जो सभी राजा थे और बाहीक बल्ख) देशके अधीश्वर थे। देवापिको प्रजाओंने दोषी ठहरा दिया था; इसलिये वह राजपाट छोड़कर मुनि | हो गया ।। 34-39 ॥
ऋषियोंने पूछा- सूतजी ! प्रजाओंने राजा देवापिको किस कारण दोषी ठहराया था ? तथा प्रजाओंने उस राजकुमारका कौन-सा दोष प्रकट किया था ? ॥ 40 ॥ सूतजी कहते हैं - ऋषियो ! राजकुमार देवापि कुष्ठ रोगी था इसीलिये प्रजाओंने उसका आदर-सत्कार नहीं किया। अब मैं शंतनुके भविष्यका वर्णन कर रहा हूँ, उसे सुनिये।(देवापिके वन चले जानेपर) शंतनु राजा हुए। ये विद्वान् तो थे ही, साथ ही महान् वैद्य भी थे। इनकी महावैद्यताके प्रति लोग एक श्लोक कहा करते हैं. जिसका आशय यह है कि 'महाराज शंतनु जिस-जिस रोगी अथवा वृद्धको अपने हाथोंसे स्पर्श कर लेते थे, वह पुनः नौजवान हो जाता था। इसी कारण लोग उन्हें शंतनु कहते थे। उस समय प्रजागण उनके इस शंतनुत्व (रोगी और वृद्धको युवा बना देनेवाले) गुणका ही वर्णन करते थे। तदनन्तर प्रभावशाली राजा शंतनुने जहु-नन्दिनी गङ्गाको अपनी पत्नीके रूपमें वरण किया और उनके गर्भसे देवव्रत (भीष्म) नामक कुमारको पैदा किया। दाश कन्या काली सत्यवतीने शंतनुके संयोगसे विचित्रवीर्य नामक पुत्रको जन्म दिया, जो पिताके लिये परम प्रिय, शान्तात्मा और निष्पाप था। महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यासने विचित्रवीर्यके क्षेत्रमें धृतराष्ट्र और पाण्डुको तथा (दासीसे) विदुरको उत्पन्न किया था। धृतराष्ट्रने गान्धारीके गर्भसे सौ पुत्रोंको उत्पन्न किया, उनमें दुर्योधन सबसे श्रेष्ठ था और वह सम्पूर्ण क्षत्रिय वंशका स्वामी था। इसी प्रकार पाण्डुको कुन्ती और माद्री नामकी दो पत्रियाँ हुईं। इन्हीं दोनोंके गर्भसे महाराज पाण्डुकी वंश-वृद्धिके लिये देवताओंद्वारा प्रदान किये गये पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। कुन्तीने धर्मके संयोगसे युधिष्ठिरको, वायुके संयोगसे वृकोदर (भीमसेन) को और इन्द्रके संयोगसे इन्द्रसरीखे पराक्रमी धनञ्जय (अर्जुन) को जन्म दिया। इसी प्रकार माद्रीने अश्विनीकुमारोंके संयोगसे नकुल और सहदेवको पैदा किया ll 41-50 ll
इन पाँचों पाण्डवोंके संयोगसे द्रौपदीके गर्भसे पाँच पुत्र उत्पन्न हुए। उनमें द्रौपदीने युधिष्ठिरके संयोगसे ज्येष्ठ पुत्र प्रतिविन्ध्यको, भीमसेनके संयोगसे श्रुतसेनको और अर्जुनके संयोगसे श्रुतकीर्तिको जन्म दिया था। चौथा पुत्र श्रुतकर्मा सहदेवसे और शतानीक नकुलसे उत्पन्न किया था ये पाँचों द्रौपदेय अर्थात् द्रौपदीके पुत्र कहलाये । इनके अतिरिक्त पाण्डवोंके छः अन्य महारथी पुत्र भी थे। (उनका विवरण इस प्रकार है) भीमसेनके संयोगसे हिडिम्बा नामकी राक्षसीके गर्भसे घटोत्कच नामक पुत्रका जन्म हुआ था। उनकी दूसरी पत्नी काशीने बलवान् भीमसेनके संयोगसे सर्वंग नामक पुत्रको जन्म दिया था। | मद्रराज-कुमारी सहदेव पत्नीने सहदेवके संयोगसे सुहोत्र नामक पुत्रको पैदा किया था। नकुल-पुत्र निरमित्र | चेदिराज कुमारी करेणुमतीके गर्भ से उत्पन्न हुआ था।पृथा पुत्र अर्जुनके संयोगसे सुभद्रा के गर्भ से महारथी अभिमन्यु पैदा हुआ था। दुधिष्ठिर पत्नी देवकीने युधिष्ठिरके संयोगसे यौधेय नामक पुत्रको जन्म दिया था। अभिमन्युके पुत्र शत्रुओंकी नगरीको जीतनेवाले परीक्षित हुए। परीक्षित्के पुत्र परम धर्मात्मा जनमेजय (तृतीय) हुए ॥ 51-57॥ जनमेजयने अपने यज्ञमें वाजसनेय (शुक्लयजुर्वेदके आचार्य) ऋषिको ब्रह्माके पदपर नियुक्त किया। यह देखकर वैशम्पायन (कृष्णयजुर्वेदके आचार्य) ने उन्हें शाप देते हुए कहा- 'दुर्बुद्धे ! तुम्हारा यह (नवीन) वचन अर्थात् (संहिता ग्रन्थ) भूतलपर स्थायी नहीं हो सकेगा। जबतक तुम लोकमें जीवित रहोगे, तभीतक यह भी ठहर सकेगा।' तभीसे क्षत्रियजातिकी विजय जानकर बहुत से लोग चारों ओरसे (शुक्लयजुर्वेदके प्रवर्धक ) राजा जनमेजयके पास आकर रहने लगे। परंतु महात्मा वैशम्पायनके शापके कारण उस यज्ञमें बहुत-से यज्ञानुष्ठान करनेवाले क्षत्रिय तथा कुछ याजक भी नष्ट हो गये। तब उस यज्ञमें जब जनमेजय पौर्णमास हविद्वारा ब्रह्माका यजन कर यज्ञशालामें प्रवेश करनेके लिये प्रयत्नशील हुए, उसी समय महर्षि वैशम्पायनने उन्हें भीतर जानेसे रोक दिया। तदनन्तर परीक्षितपुत्र पूरुवंशी जनमेजयने दो अश्वमेध यज्ञोंका अनुष्ठान किया। उनमें उन्होंने अपने द्वारा प्रवर्तित महावाजसनेय (क्याप) विधिका ही प्रयोग किया। वह सारा कार्य वाजसनेय ऋषिकी अध्यक्षतामें ही सम्पन्न हो रहा था। उसी समय ब्राह्मणोंके साथ विवाद हो जानेपर ब्राह्मणोंने उन्हें शाप दे दिया, जिससे वे वनमें चले गये। उन जनमेजयसे पराक्रमी शतानीकका जन्म हुआ। जनमेजयने (वन-गमन करते समय) अपने पुत्र शतानीकको राज्यपर अभिषिक्त कर दिया था। शतानीकद्वारा अश्वमेध यज्ञका अनुष्ठान किये जानेपर उसके फलस्वरूप शतानीकके एक महायशस्वी एवं पराक्रमी अधिसीमकृष्ण नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो इस (पुराणप्रवचनके) समय सिंहासनासीन है। द्विजवरो उसीके राज्यशासन करते समय आपलोगोंने अभी अभी पुष्करक्षेत्रमें तीन वर्षोंतक तथा कुरुक्षेत्र में दृष्टुतीके तटपर दो वर्षोंतक इस दुर्लभ दीर्घ सत्रका अनुष्ठान सम्पन्न किया है ll 58- 67 ॥ ऋषियोंने पूछा- लोमहर्षणके पुत्र सूतजी पूर्वकालमें जो बातें बीत चुकी हैं, उनका वर्णन तो आपने कर दिया। अब हमलोग
प्रजाओंके भविष्य के विषयमें सुनना चाहते हैं।यह क्षत्रिय जाति जिन-जिन वंशोंमें स्थित रहेगी और उनमें जो-जो नरेश उत्पन्न होंगे, उनके क्या नाम होंगे तथा उनकी आयुका प्रमाण कितना होगा? कृतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग—इन चारों युगों की कितनी कितनी अवधि | होगी ? प्रत्येक युगमें क्या-क्या दोष होंगे ? तथा उन युगों का विनाश कैसे होगा? सुख और दुःखका प्रमाण क्या होगा? तथा प्रत्येक युगकी प्रजाओंमें क्या-क्या दोष उत्पन्न होंगे? प्रभो! यह सब क्रमशः हमें बतलाइये; क्योंकि हमलोग इसे जानना चाहते हैं ॥ 68-71 ।।
सूतजी कहते हैं-ऋषियो पूर्वकालमें अक्लिष्टकर्म व्यासजीने मुझसे भावी कलियुग तथा आनेवाले सभी मन्वन्तरोंके विषयमें जैसा वर्णन किया था, वही मैं आपलोगोंको बतला रहा हूँ: सुनिये। इसके बाद अब मैं उन्हीं राजाओंका वर्णन करने जा रहा हूँ, जो भविष्य में ऐड (ऐल) और इक्ष्वाकु वंश तथा पौरववंश उत्पन्न होनेवाले हैं। जिन राजाओंमें ये मङ्गलमय ऐड और इक्ष्वाकुवंश स्थित रहेंगे, भविष्यमें होनेवाले उन सभी तथाकथित नरेशोंका मैं वर्णन करूंगा। इनके अतिरिक्त भी जो अन्य नृपतिगण क्षत्रिय, पारशव, शूद्र, बहिश्वर, अंध, शक, पुलिन्द, चूलिक, यवन, कैवर्त, आभीर और शबर जातियोंमें उत्पन्न होंगे तथा दूसरे जो म्लेच्छ-जातियोंमें पैदा होंगे, उन सभी नरेशोंका पर्याय क्रमसे नामनिर्देशानुसार वर्णन कर रहा हूँ। इन सबमें सर्वप्रथम राजा अधिसोमकृष्ण हैं, जो सम्प्रति वर्तमान है। इनके वंशमें भविष्य में उत्पन्न होनेवाले राजाओंका वर्णन कर रहा हूँ । अधिसीमकृष्णका पुत्र राजा विवक्षु होगा। गङ्गद्वारा हस्तिनापुर नगरके दुबो (वहा) दिये जानेपर विवक्षु उस नगरका परित्याग कर कौशाम्बी नगरीमें निवास | करेगा। उसके महान् बलपराक्रमसे सम्पन्न आठ पुत्र होंगे। उसका ज्येष्ठ पुत्र भूरि होगा और उसका पुत्र चित्ररथ नामसे विख्यात होगा। चित्ररथसे शुचिद्रव, शुचिद्रवसे वृष्णिमान् और वृष्णिमान्छे परम पवित्र राजा सुषेण उत्पन्न होगा। उस सुषेणसे सुनीथ नामका राजा होगा। राजा सुनीथसे महायशस्वी नृचक्षुकी उत्पत्ति होगी। पुत्र सुखी होगा। सुखीला पुत्र भावी राजा परिष्णव और परिष्णवका पुत्र राजा सुतपा होगा। उसका | पुत्र निस्संदेह मेधावी होगा। मेधावीका पुत्र पुरञ्जय होगा।उसका भावी पुत्र उर्व और उसका पुत्र तिग्मात्मा होगा। तिग्मात्मासे बृहद्रथ और बृहद्रथसे वसुदामाका जन्म होगा। वसुदामासे शतानीक और उससे उदयनकी उत्पत्ति होगी। उदयनसे वीरवर राजा वहीनर उत्पन्न होगा। वहीनरका पुत्र दण्डपाणि होगा। दण्डपाणिसे निरमित्र और निरमित्रसे क्षेमकका जन्म होगा। इस वंशपरम्पराके विषयमें प्राचीनकालिक विप्रोंद्वारा एक श्लोक गाया गया है, जिसका आशय यह है कि 'ब्राह्मण और क्षत्रियोंकी योनिस्वरूप यह वंश, जो देवर्षियोंद्वारा सत्कृत है, कलियुगमें राजा क्षेमकको प्राप्त कर समाप्त हो जायगा।' इस प्रकार पुरु- वंशका तथा |पाण्डुपुत्र परम बुद्धिमान् महात्मा अर्जुनके वंशका वर्णन मैंने यथार्थरूपसे कर दिया । ll72 - 89 ॥