ऋषियोंने पूछा- सूतजी आपने हम लोगोंके प्रति जिस आदिसर्ग और प्रतिसर्गका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है, उन सर्गोंमें जो जिस वर्गके अधिपति हुए. उनके विषयमें अब हमें बतलाइये ॥ 1 ॥सूतजी कहते हैं-ऋषियो जब महाराज पृ समस्त भूमण्डलके अधिनायक पदपर अभिषिक्त होकर सबके अधिपति हुए, उस समय उन हिरण्यगर्भ ब्रह्माने चन्द्रमाको ओषधि, यज्ञ, व्रत, तप, नक्षत्र, तारा, द्विज, वृक्ष, गुल्म और लतासमूहका अध्यक्ष बनाया। उन्होंने वरुणको जलका, कुबेरको धन और राजाओंका विष्णुको आदित्योंका, अग्रिको वसुओंका अधिपति बनाया। दक्षको प्रजापतियोंका, इन्द्रको महतोका प्रह्लादको दैत्यों और दानवोंका यमराजको पितरोंका, शूलपाणि शिवको पिशाच राक्षस, पशु, भूत, यक्ष और वेतालोंका, हिमालयको पर्वतोंका, समुद्रको छोटी-बड़ी नदियोंका, चित्ररथको गन्धर्व, विद्याधर और किन्नरोंका, प्रबल पराक्रमी वासुकिको नागका तक्षकको, सर्पोंका, ऐरावत नामक गजेन्द्रको दिग्गजोंका, गरुड़को पक्षियोंका, उनै अवको घोड़ोंका सिंहको वन्य जीवोंका, नृषभको गौओंका और पाकको समस्त वनस्पतियोंका अधिनायक नियुक्त किया। फिर ब्रह्माने सर्वारम्भके समय सम्पूर्ण दिशाओंके अधिनायकोंको भी अभिषिक्त किया। उन्होंने शत्रुओंके संहारक सुधर्माको पूर्व दिशाके दिक्पाल पदपर स्थापित किया। इसके बाद सर्वेश्वर शङ्खपदको दक्षिण दिशाका स्वामी बनाया। सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको अपनेमें अन्तर्भूत करनेवाले ब्रह्माने सुकेतुमान्को पश्चिम दिशाका अध्यक्ष बनाया ॥ 2-10 ॥प्रजापति ब्रह्माने देवपुत्र हिरण्यरोमाको उत्तर दिशाका स्वामित्व प्रदान किया। ये दिक्पालगण आज भी शत्रुओंको सन्तप्त करते हुए पृथ्वीकी सब ओरसे रक्षा करते हैं। इन्हीं चारों दिक्पालोंद्वारा पहले-पहल | भूतलपर पृथु नामके नरेश अभिषिक्त हुए थे। चाक्षुष मन्वन्तरकी समाप्तिके बाद पुनः वैवस्वतमन्वन्तरके प्रारम्भ होनेपर सूर्यवंशके चिह्नस्वरूप ये राजा पृथु इस चराचर जगत्के प्रजापति हुए थे ॥ 11-12॥