युधिष्ठिरने पूछा-ऐश्वर्या ने प्राचीन कल्प में प्रयाग क्षेत्रकी जैसी स्थिति थी तथा देवश्रेष्ठ ब्रह्माने जिस प्रकार इसका वर्णन किया था, वह सब में सुनना चाहता हूँ। मुने! प्रयागकी यात्रा किस प्रकार करनी चाहिये ? वहाँ मनुष्योंको कैसा आचार-व्यवहार करनेका विधान है? वहाँ मरनेवालेको कौन सी गति प्राप्त होती है? वहाँ स्नान करनेसे क्या फल मिलता है? जो लोग सदा प्रयागमें निवास करते हैं, उन्हें किस फलकी प्राप्ति होती है ? यह सब मुझे बतलाइये, क्योंकि इसे जाननेकी मुझे बड़ी उत्कण्ठा है ॥ 1-3 ॥
मार्कण्डेयजीने कहा-वत्स ! पूर्वकालमें प्रयागक्षेत्रमें जो श्रेष्ठ स्थान हैं तथा वहाँकी यात्रासे जो फल प्राप्त होता है, इस विषयमें ऋषियों एवं ब्राह्मणोंके मुखसे मैंने जो कुछ सुना है, वह सब तुम्हें बतला रहा हूँ। प्रयाग के प्रतिष्ठानपुरे (भैंसी) से वासुकिहदतकका भाग, जहाँ कम्बल, अश्वतर और बहुमूलक नामवाले नाग निवास करते हैं, तीनों लोकोंमें प्रजापति क्षेत्रके नामसे विख्यातः है, वहाँ स्नान करनेसे लोग स्वर्गलोकमें जाते हैं और जो वहाँ मृत्युको प्राप्त होते हैं, उनका पुनर्जन्म नहीं होता। ब्रह्मा आदि देवता संगठित होकर (वहाँ रहनेवालोंकी) रक्षा करते हैं। राजन्! इसके अतिरिक्त इस क्षेत्रमें मङ्गलमय एवं समस्त पापोंका विनाश करनेवाले और भी बहुत-से लोर्थ हैं, जिनका वर्णन सैकड़ों वर्षोंमें भी नहीं किया जा सकता, अतः मैं संक्षेपमें प्रयागका वर्णन कर रहा है। यहाँ साठ हजार धनुर्धर वीर गङ्गाकी रक्षा करते हैं तथा सात घोड़ोंसे जुते हुए रथपर चलनेवाले सूर्य | सदा यमुनाकी देखभाल करते रहते हैं। इन्द्र विशेषरूपसे सदा प्रयागकी रक्षामें तत्पर रहते हैं। श्रीहरि देवताओंको साथ लेकर पूरे प्रयाग मण्डलकी रखवाली करते हैं।महेश्वर हाथमें त्रिशूल लेकर सदा वट-वृक्षकी रक्षा करते रहते हैं। देवगण इस सर्वपापहारी मङ्गलमय स्थानकी रक्षामें तत्पर रहते हैं। इसलिये इस लोकमें अधर्मसे घिरा हुआ मनुष्य प्रयागक्षेत्रमें प्रवेश नहीं कर सकता। नरेश्वर! यदि किसीका स्वल्प अथवा उससे भी थोड़ा पाप होगा तो वह सारा का सारा प्रयागका स्मरण करनेसे नष्ट हो जायगा; क्योंकि (ऐसा विधान है कि) प्रयागतीर्थके दर्शन, नाम संकीर्तन अथवा मृत्तिकाका स्पर्श करनेसे मनुष्य पापसे मुक्त हो जाता है ॥4-12॥
राजेन्द्र ! प्रयागक्षेत्रमें पाँच कुण्ड हैं, उन्हींके मध्यमें गङ्गा बहती हैं, इसलिये प्रयागमें प्रवेश करते ही उसी क्षण पाप नष्ट हो जाता है। मनुष्य कितना भी बड़ा पापी क्यों न हो, यदि वह हजारों योजन दूरसे भी गङ्गाका स्मरण करता है तो उसे परम गतिकी प्राप्ति होती है। गङ्गाका नाम लेनेसे मनुष्य पापसे छूट जाता है, दर्शन करनेसे उसे जीवनमें माङ्गलिक अवसर देखनेको मिलते हैं तथा स्नान और जलपान करके तो वह अपनी सात पीढ़ियोंको पावन बना देता है। जो मनुष्य सत्यवादी, क्रोधरहित, अहिंसापरायण, धर्मानुगामी, तत्त्वज्ञ और गौ एवं ब्राह्मणके हितमें तत्पर रहकर गङ्गा और यमुनाके संगममें स्नान करता है, वह पापसे मुक्त हो जाता है तथा जो मनसे चिन्तनमात्र करता है, वह अपने अधिक-से-अधिक मनोरथोंको प्राप्त कर लेता है। इसलिये समस्त देवताओंद्वारा सुरक्षित प्रयाग | क्षेत्रमें जाकर वहाँ एक मासतक ब्रह्मचर्यपूर्वक निवास करते हुए देवों और पितरोंका तर्पण करना चाहिये। वहाँ रहते हुए मनुष्य जहाँ-जहाँ जाता है, वहाँ-वहाँ उसे अभिलषित पदार्थोंकी प्राप्ति होती है। वहाँ सूर्य कन्या महाभागा यमुना देवी, जो तीनों लोकोंमें विख्यात हैं, नदीरूपमें आयी हुई हैं और साक्षात् भगवान् शंकर वहाँ नित्य निवास करते हैं। इसलिये युधिष्ठिर! यह पुण्यप्रद प्रयाग मनुष्योंके लिये दुर्लभ है। राजेन्द्र ! देव, दानव, गन्धर्व, ऋषि, सिद्ध, चारण आदि गङ्गा-जलका स्पर्श कर स्वर्गलोक में विराजमान होते हैं ।। 13–20 ॥