युधिष्ठिरने पूछा- महामुने! आपने तो यह सारा महत्त्व प्रयागका ही बतलाया है, इसका क्या कारण है? यह सब मुझे बतलाइये, जिससे मेरा तथा मेरे कुटुम्बका उद्धार हो जाय ॥ 1 ll
मार्कण्डेयजीने कहा- राजन्! इसका कारण सुनो। प्रयागमें इस सारे जगत्का निवास बतलाया जाता है। यहाँ अविनाशी एवं सामर्थ्यशाली ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा सम्पूर्ण देवता वास करते हैं, ब्रह्मा जिन स्थावर जङ्गमरूप प्राणियोंकी सृष्टि करते हैं, उन सभी प्रजाओंका इस लोकमें भगवान् विष्णु पालन करते हैं तथा कल्पान्तमें रुद्र इस सारे जगत्का संहार कर देते हैं, किंतु इस प्रयागतीर्थका कभी विनाश नहीं होता। सम्पूर्ण प्राणियोंका जो ईश्वर है, उसे जो देखता है, वही सचमुच देखनेवाला है इस प्रथमसे जो लोग प्रयागमें निवास करते हैं, वे परमगतिको प्राप्त होते हैं ॥ 25 ॥
युधिष्ठिरने पूछा- मुने! ये लोकश्रेष्ठ देवगण किस कारणवश प्रयागमें निवास करते हैं, इस विषय में जैसा श्रुति वचन हो, उसके अनुसार मुझे यथार्थरूपसे बतलाइये ॥ 6 ॥
मार्कण्डेयजीने कहा- युधिष्ठिर! ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर जिस प्रयोजनसे प्रयागमें निवास करते हैं. वह कारण बतला रहा हूँ, उसके तत्त्वको श्रवण करो। प्रयागका मण्डल पाँच योजनमें फैला हुआ है। यहाँ पापकर्मका निवारण तथा प्राणियोंकी रक्षा करनेके लिये उपर्युक्त देवगण निवास करते हैं। प्रतिष्ठानपुरसे उत्तरकी ओर गुलरूपसे ब्रह्माजी निवास करते हैं। भगवान् विष्णु प्रयागमें वेणीमाधवरूपसे विद्यमान हैं।तथा परमेश्वर शिव अक्षयवटके रूपमें स्थित हैं। इनके अतिरिक्त गन्धर्वोसहित देवगण, सिद्धसमूह तथा यूथ के यूथ परमर्षि पाप-कर्मसे निवारण करनेके निमित्त नित्य प्रयागमण्डलकी रक्षा करते हैं, जिस मण्डलमें अपने पापोंका हवन करके प्राणी नरकका दर्शन नहीं करता, इस प्रकार प्रयागमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, सातों द्वीप, सातों समुद्र और भूतलपर स्थित सभी पर्वत उसकी रक्षा करते हुए प्रलयपर्यन्त स्थित रहते हैं। युधिष्ठिर! इनके अतिरिक्त अन्य जो बहुत-से देवता पृथ्वीका आश्रय लेकर निवास करते हैं, उनके निवासस्थानका निर्माण इन्हीं तीनों देवताओंद्वारा हुआ है। यह प्रयाग प्रजापति ब्रह्माका क्षेत्र है- ऐसी प्रसिद्धि है। युधिष्ठिर ! यह प्रयाग पुण्यप्रद एवं परम पवित्र है। निष्पाप राजेन्द्र ! तुम अपने भाइयोंके साथ अपना राज्य कार्य सँभालो ॥ 7–14 ॥