मार्कण्डेयजीने कहा- राजन्! पुनः प्रयोगका ही माहात्म्य श्रवण करो, जिसे सुनकर मनुष्य निस्संदेह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है। गङ्गाके उत्तरी तटपर मानस नामक तीर्थ है, जहाँ तीन राततक निराहार रहकर निवास करनेसे मनुष्य अपनी सारी कामनाओंको प्राप्त कर लेता है। गौ, पृथ्वी और सुवर्ण दान करनेसे मनुष्यको जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही फल उसे मानस तीर्थके स्मरणसे प्राप्त हो जाता है। जो मनुष्य निष्कामभाव से अथवा किसी कामनाको लेकर गङ्गाको धारामें डूबकर मर जाता है, वह स्वर्गमें चला जाता है। उसे नरकका दर्शन नहीं करना पड़ता; वह हंस और सारससे युक्त विमानपर चढ़कर देवलोकको जाता है। यहाँ यह अप्सरासमूहके सुमधुर गान- शब्दोंद्वारा नोंदसे जगाया जाता है। राजेन्द्र ! इस प्रकार वह अनेकों हजार वर्षोंतक स्वर्ग-सुखका उपभोग करता है। पुनः पुण्य कर्मके क्षीण हो जानेपर जब उसका स्वर्गसे पतन हो जाता है, तब वह सुवर्ण, मणि और मोतियोंसे सम्पन्न विशाल कुलमें जन्म लेता है माघमासमें गङ्गा यमुनाके संगमपर छाछ हजार तीर्थ एकत्र होते हैं।इसलिये विधिपूर्वक एक लाख गौओंका दान करनेसे जो फल प्राप्त होता है, वही फल माघ मासमें प्रयाग-तीर्थमें तीन दिनतक स्नान करनेसे मिलता है। जो मनुष्य गङ्गा यमुनाके संगमपर कर्षाग्रि (कंडा जलाकर पञ्चाग्नि) की साधना करता है, वह सभी अङ्गसे सम्पन्न, नीरोग और पाँच कर्मेन्द्रियोंसे स्वस्थ हो जाता है। उस प्राणीके अङ्गोंमें जितने रोमकूप होते हैं, उतने सहस्र वर्षोंतक वह स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है। पुण्य क्षीण हो जानेपर वह स्वर्णसे च्युत होकर भूतलपर जम्बूद्वीपका अधिपति होता है और यहाँ प्रचुर भोगोंका उपभोग करके पुनः प्रयागतीर्थका स्मरण करता तथा वहाँ पहुँचता है ॥ 1-11 ॥
राहुद्वारा चन्द्रमाको ग्रस्त कर लिये जानेपर अर्थात् चन्द्रग्रहणके अवसरपर जो मनुष्य इस लोकप्रसिद्ध संगमके जलमें प्रवेश करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर सोमलोकको प्राप्त होता है और वहाँ चन्द्रमाके साथ आनन्द मनाता है। पुनः साठ हजार वर्षोंतक स्वर्गलोक तथा ऋषियों एवं गन्धर्वोद्वारा सेवित इन्द्रलोकमें प्रतिष्ठित होता है। राजेन्द्र स्वर्गसे च्युत होनेपर वह समृद्ध कुलमें जन्म धारण करता है। राजेन्द्र ! जो मनुष्य प्रयागमें पैरोंको ऊपर और सिरको नीचे कर अग्रिकी ज्वालाका पान करता है, वह एक लाख वर्षोंतक स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता है तथा स्वर्गसे च्युत होनेपर भूतलपर अग्रिहोत्री होता है। यहाँ प्रचुर भोगोंका उपभोग कर वह पुनः प्रयागतीर्थको यात्रा करता है जो मनुष्य प्रयागतीर्थमें अपने शरीरके मांसको काटकर पक्षियोंको खानेके लिये दे देता है, पक्षियोंद्वारा खाये गये। शरीरवाले उस प्राणीको जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनो। वह एक लाख वर्षोंतक सोमलोकमें प्रतिष्ठित होता है। वहाँसे च्युत होनेपर वह इस लोकमें धर्मात्मा, गुणसम्पन्न, सौन्दर्यशाली, विद्वान् और प्रियभाषी राजा होता है तथा यहाँ प्रचुर भोगोंका उपभोग कर पुनः प्रयागतीर्थकी यात्रा करता है। प्रयागके दक्षिण और यमुनाके उत्तर तटपर प्रमोचन नामक तीर्थ है, जो परम श्रेष्ठ कहा जाता है। वहाँ एक रात निवास कर स्नान करनेसे मनुष्य सभी ऋणोंसे मुक्त हो जाता है और सदाके लिये ऋणरहित होकर स्वर्गलोकमें चला जाता है ॥ 12-21 ॥