मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। इस वैवस्वत मन्वन्तरके प्राप्त होनेपर धर्मने दक्षकी कन्याओंके गर्भसे जिस उत्तम देव वंशका विस्तार किया, उसका वर्णन सुनिये। नरेश्वर। इस वैवस्वत मन्वन्तरमें धर्मके द्वारा अरुन्धतीके गर्भ से पर्वत आदि एवं महादुरर्गक समान विशालकाय संतान उत्पन्न हुए तथा उन्हीं सर्वव्यापी धर्मसे आठ सोमपायी पुत्र उत्पन्न हुए, जो वसु कहलाते हैं। उनके नाम हैं-धर, ध्रुव, सोम, आप, अनल, अनिल, प्रत्यूष और प्रभास-ये आठ वसु कहे गये हैं। धरका पुत्र द्रविण और ध्रुवका पुत्र काल हुआ। नरेश ! कालके अवयवोंके जितने मूर्तिमान् शरीर हैं, वे सभी कालसे ही उत्पन्न हुए हैं। सोमके प्रभावशाली पुत्रको वर्चा और आपके पुत्रको श्रीमान् कहा जाता है। अनेक जन्म धारण करनेवाला कुमार अनलका पुत्र हुआ । अनिलका पुत्र पुरोजव और प्रत्यूषका पुत्र देवल हुआ। प्रभासका पुत्र विश्वकर्मा हुआ जो देवताओंका बढ़ई है ॥ 1-7 ॥ नागवीथी आदि नव सन्तति अभीष्टको पूर्ण करनेवाली है। लम्बाका पुत्र घोष और भानुके पुत्र भानव (बारह आदित्य) कहे गये हैं, जो ग्रहों, नक्षत्रों एवं अन्य सभी अमित ओजस्वियोंमें बढ़-चढ़कर हैं। सभी मरुदण मरुत्वती के 'पुत्र हैं तथा संकल्पाका पुत्र संकल्प कहा जाता है। मुहूर्ताके पुत्र मुहूर्त और साध्याके पुत्र साध्यगणकहे गये हैं। मन, मनु, प्राण, नरोषा, नोच, वीर्यवान्, चित्तहार्य, अयन, हंस, नारायण, विभु और प्रभु ये बारह साध्य कहे गये हैं। विश्वाके पुत्र विश्वेदेव कहे जाते हैं। क्रतु, दक्ष, वसु, सत्य, कालकाम, मुनि, कुरज, मनुज, बीज और रोचमान—ये दस विश्वेदेव हैं। राजवंश श्रेष्ठ ! मैंने आपसे यहाँतक धर्मके वंशका संक्षेपसे वर्णन कर दिया। राजन् ! अनेक सैकड़ों वर्षोंके बिना इसका विस्तारसे वर्णन करना सम्भव नहीं है ॥8- 14 ॥