मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन् महर्षि मरीचिकी कन्या सुरूपा नामसे विख्यात थी। वह महर्षि अङ्गराकी पत्नी थी। उसके दस देव-तुल्य पुत्र थे। उनके नाम है आत्मा, आयु, दमन, दक्ष, सद, प्राण, हविष्मान्, गविष्ठ, ऋत और सत्य ये दस अङ्गिराके पुत्र सोमरसके पान करनेवाले देवता माने गये हैं। सुरूपाने इन सर्वेश्वर ऋषियोंको उत्पन्न किया था बृहस्पति गौतम ऋषिश्रेष्ठ संवर्त, उतथ्य, वामदेव, अजस्य तथा ऋषिज- ये सभी ऋषि गोत्रप्रवर्तक कहे गये हैं। अब इनके गोत्रोंमें उत्पन्न हुए गोत्रप्रवर्तकोंको मैं बतला रहा हूँ सुनिये। उतथ्य, गौतम, तौलेय, अभिजित, सार्धनेमि, सलौगाक्षि, क्षीर, कौष्टिक, राहुकणि सौपुरि, कैराति, सामलोमकि, पौषाजिति, भागवत, चैरीडन, कारोटक, सजीवी, उपबिन्दु सुरैषिण, वाहिनीपति, वैशाली, क्रोष्टा आणायनि, सोम, अि कासोरु, कौशल्य, पार्थिव, रौहिण्यायनि, रेवाग्नि, मूलप, पाण्डु, क्षया, विश्वकर, अरि और पारिकारारि-ये सभी श्रेष्ठ ऋषि गोत्रप्रवर्तक हैं। अब इनके प्रवरोंको सुनिये अ सुवतथ्य तथा महर्षि उशिज इन ऋषियोंके वंशवाले आपसमें विवाह नहीं करते थे । ll 1-11 ॥ आत्रेयायणि, सौवेष्ट्य, अग्निवेश्य, शिलास्थल, बालिशायनि, चैकेपी, वाराहि, बाष्कलि, सौटि, तृणकर्णि प्रावहि, आश्वलायन, वाराहि, बर्हिसादी, शिखाग्रीवि, कारकि, महाकापि, उडुपति, कौचकि, धमित, पुष्पान्वेषि, सोमतन्वि ब्रह्मतन्वि, सालडि, बालडि, देवरारि, देवस्थानि, हारिकर्णि, सरिद्भुवि प्रावेपि, साद्यसुग्रीवि, गोमेदगन्धिक, मत्स्याच्छाद्य, मूलहर, फलाहार, गाङ्गोदधि, कौरुपति, कौरुक्षेत्रि, नायकि, जैत्यद्रौणि, जैहलायनि, आपस्तम्ब, मौञ्जवृष्टि, मार्टपिङ्गलि, महातेजस्वी पैल, शालङ्कायनि, द्वयाख्येय तथा मारुत। नृप। इन ऋषियोंके प्रवर प्रथम अङ्गिरा, दूसरे बृहस्पति तथा तीसरे भरद्वाज कहे गये हैं। इन गोत्रवालोंमें भी परस्पर विवाह कर्म नहीं होते ।। 12- 20 ॥
काण्वायन, कोपचय, वात्स्यतरायण, भ्राष्ट्रकृत् राष्ट्रपिण्डी, लैन्द्राणि, सायकायनि, क्रोष्टाक्षी, बहुवीती, तालकृत, मधुरावह, लावकृत्, गालवित्, गाथी, मार्कटि पौलकायनि, स्कन्दस, चक्री, गार्ग्य, श्यामायनि बलाकि तथा साहरि। इनके भी निम्नलिखित पाँच ऋषि प्रवर कहे गये हैं- महातेजस्वी अङ्गिरा, देवाचार्य बृहस्पति, भरद्वाज, गर्ग तथा ऐश्वर्यशाली महर्षि सैत्य। इनके वंशवालोंमें भी परस्पर विवाह नहीं होता। कपीतर, स्वस्तितर, दाक्षि, शक्ति, पतञ्जलि, भूयसि, जलसन्धि, विन्दु मादि, कुसीदकि ऊर्व, राजकेशी, चौपडि, शंसपि, शालि, कलशीकण्ठ, कारीरय, काट्य, धान्यायनि, भावास्यायनि, भरद्वाज, सौबुधि, लघ्वी तथा देवमति। राजसत्तम। इन ऋषियोंके तीनप्रवर बतलाये गये हैं- अङ्गिरा, दमवाह्य तथा उरुक्षय । इन गोत्रवालोंमें परस्पर विवाह नहीं होता ॥ 21 - 29 ॥
संकृति, त्रिमार्ष्टि, मनु, सम्बधि, तण्डि, एनातकि (नाचिकेत), तैलक, दक्ष, नारायणि, आर्षिणि, लौसि, गार्ग्य, हरि, गालव तथा अनेह-इन सबके प्रवर अङ्गिरा, संकृति तथा गौरवीति माने गये हैं। इनमें भी परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता। कात्यायन, हरितक, कौत्स, पिङ्ग, हण्डिदास, वात्स्यायनि, माद्रि, मौलि, कुबेरणि, भीमवेग तथा शाश्वदर्भ इन सभीके तीन प्रवर कहे गये हैं। उनके नाम हैं- अङ्गिरा, बृहदश्व तथा जीवनाश्व । इनके वंशवालोंमें भी परस्पर विवाह नहीं होता। बृहदुक्थ तथा वामदेवके भी तीन प्रवर माने गये हैं। उनके नाम है- अङ्गिरा, बृहदुक्थ तथा वामदेव इन वंशवालोंमें परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता। कुत्सगोत्र में उत्पन्न | होनेवालोंके तीन प्रवर हैं- अङ्गिरा, सदस्य तथा पुरुकुत्स । प्राचीन लोग बतलाते हैं कि कुत्सगोत्रवालोंसे कुत्सगोत्रवालाका विवाह नहीं होता। रथीतरके वंशमें उत्पन्न होनेवालोंके भी तीन प्रवर हैं- अङ्गिरा, विरूप तथा रथीतर ये लोग आपसमें विवाह नहीं करते। विष्णुसिद्धि, शिवमति जतॄण, कतृण, महातेजस्वी पुत्र तथा परायण सभी अङ्गिरा, विरूप और वृषपर्व- इन तीन ऋषियोंके प्रवरवाले माने गये हैं। राजन्! इन ऋषियोंके वंशमें परस्पर विवाह कर्म नहीं होता ll 30-40 ॥
महातेजस्वी सात्यमुखि हिरण्यस्तम्ब तथा मुद्रल ये सभी अङ्गिरा, मत्स्यदग्ध तथा महातपस्वी मुगल इन तीन ऋषियोंके प्रवर माने गये हैं। इन तीन ऋषियोंके गोत्रोंमें उत्पन्न होनेवालोंका परस्पर विवाह नहीं होता। हंसजिह्न, देवजिह्न, अग्निजिह्न, विराडप, अपाग्नेय, अश्वयु, परण्यस्त तथा विमोगलये सभी अङ्गिरा, ताण्डि तथा महातपस्वी मौद्गल्य- इन तीनों ऋषियोंके प्रवर माने गये हैं। इनके वंशधरोंमें भी विवाह नहीं होता। अपाण्डु, गुरु, शाकटायन, प्रागाथमा, नारी, मार्कण्ड, मरण, शिव, कटु, मर्कटप, नाडायन तथा श्यामायन- ये सभी अङ्गिरा, अजमीढ तथा महातपस्वी कट्य- इन तीन ऋषियोंके प्रवरवाले माने गये हैं। इनमें भी परस्पर विवाह नहीं होते तित्तिरि, कपिभु और महर्षि गार्ग्य इन सबके अङ्गिरा, तित्तिरि तथा कपिभू नामक तीन प्रवर कहे गये हैं, जिनमें एक-दूसरेका विवाह निषिद्ध है। ऋक्ष भरद्वाज, ऋषिवान् मानव तथा मैत्रवर- ये पाँच आर्षेय कहे गये हैं। इनके अङ्गिरा, भरद्वाज, बृहस्पति, मैत्रवर, ऋषिवान् तथा मानव नामक पाँच प्रवर हैं। इनमें परस्पर विवाह नहीं होता। भारद्वाज, हुत शौङ्ग तथा शैशिरेय- ये सभी द्वयामुष्यायण गोत्रमें उत्पन्न कहे गये हैं। इन सबके अङ्गिरा, भरद्वाज, बृहस्पति, मौद्गल्य तथा शैशिर नामक पाँच प्रवर हैं। इनमें भी परस्पर विवाह नहीं होता। इस प्रकार मैंने आपसे इस अङ्गिरा - वंशमें उत्पन्न होनेवाले गोत्रप्रवर्तक महानुभाव ऋषियोंका वर्णन कर दिया, जिनके नामका उच्चारण करनेसे पुरुष अपने सभी पापोंसे छुटकारा पा लेता है ।। 41-55 ॥