देवयोनियोंकी उत्पत्ति
मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्! ब्रह्मवेत्ताओंमें श्रेष्ठ महान् तेजस्वी ब्रह्मा उस कमलपर स्थित होकर हाथोंको ऊपर उठाये हुए घोर तपस्यामें संलग्न हो गये। उस समय सम्पूर्ण धर्मोंके निवासस्थान ब्रह्मा अपने तेज और अपनी कान्तिसे प्रज्वलित होते हुए-से अन्धकारका विनाश कर रहे थे और अपनी किरणोंसे प्रकाशित सूर्यको तरह उद्भासित हो रहे थे। तदनन्तर जो जगत्का कल्याण करनेवाले अविनाशी महान् यशस्वी एवं योगके आचार्य हैं, वे महान् तेजस्वी नारायण दूसरा रूप धारण कर | वहाँ आये। साथ ही ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ सांख्याचार्य बुद्धिमान्कपिलजी भी उपस्थित हुए। वे दोनों महात्मा परावरके विशेषज्ञ, महर्षियोंद्वारा पूजित और अपने-अपने मार्गमें तत्पर रहनेवाले थे। वे वहाँ पहुँचकर अमित तेजस्वी ब्रह्माकी प्रशंसा करते हुए बोले- 'सर्वश्रेष्ठ' जगत्के रचयिता, त्रिलोकोद्वारा पूजित, सभी प्राणियोंके नायक ब्रह्मा अपने सुदृढ़ आसनपर विराजमान हैं। उन दोनोंकी वह बात सुनकर पूर्वकथित योगके ज्ञाता ब्रह्माने इन तीन लोकोंकी रचना की, ब्रह्माके विषयमें यह श्रुति प्रसिद्ध है। उस समय ऋषिश्रेष्ठ ब्रह्माने जगत्के कल्याणके लिये एक पुत्र उत्पन्न किया। ब्रह्माका वह मानस पुत्र उत्पन्न होते ही उनके समक्ष चुपचाप खड़ा हो गया और फिर उन अजन्मा अविनाशी ब्रह्मासे इस प्रकार बोला 'आप ऐश्वर्यशाली ऋषि बतलावें कि मैं आपकी कौन सी सहायता करूँ ?' ॥ 1-9 ॥
ब्रह्माने कहा- महामते ! ये जो महर्षि कपिल और नारायणस्वरूप ब्रह्म सामने उपस्थित हैं, ये दोनों तुमसे जिस तत्त्वका वर्णन करें, तुम वैसा ही करो। ब्रह्माके उस अभिप्रायको जानकर वह पुनः उठ खड़ा हुआ और उनके समक्ष जाकर हाथ जोड़कर बोला 'मैं आपलोगोंका आदेश सुनना चाहता हूँ, कहिये क्या करूँ?' ॥ 10-11 ॥
श्रीभगवान् बोले- ब्रह्मन्! जो सत्य और अविनाशी ब्रह्म है, वह अठारह प्रकारका है। जो सत्य है, जो ऋत है, वही परम पद है। तुम उसका अनुस्मरण करो। ऐसी बात सुनते ही वह उत्तर दिशाकी ओर चला गया और वहाँ जाकर उसने अपने ज्ञानके तेजसे ब्रह्मत्वको प्राप्त कर लिया। तत्पश्चात् महामना एवं सामर्थ्यशाली ब्रह्माने मानसिक संकल्पद्वारा 'ध्रुव' नामक दूसरे पुत्रको सृष्टि की। तब उसने भी ब्रह्माके समक्ष खड़ा होकर इस प्रकार कहा- 'पितामह! मैं कौन-सा कार्य करूँ ?' फिर ब्रह्माको आज्ञासे वह ब्रह्मके निकट गया। तदुपरान्त 'भुव' ने भूतलपर आकर ब्रह्मका अभ्यास किया और ब्रह्म एवं महर्षि कपिलके पास आकर परम पदको प्राप्त कर लिया। उस पुत्रके भी चले जानेपर भगवान् ब्रह्माने 'भूर्भुव' नामक तीसरे पुत्रको प्रकट किया, जो सर्वव्यापी और सांख्यशास्त्रमें परम प्रवीण था। यह भी इन्द्रियजयो होकर उन दोनों भाइयोंकी गतिको प्राप्त हो गया। इस प्रकार कल्याणकारी महात्मा ब्रह्माके ये तीनों पुत्र कहे गये हैं।तदनन्तर भगवान् नारायण और यतीश्वर कपिल ब्रह्माके उन तीनों पुत्रोंको साथ लेकर अपने तपद्वारा उपार्जित गतिको प्राप्त हो गये । ll 12-19 ॥
इधर जिस समय वे दोनों मुक्त पुरुष चले गये, उसी समयसे ब्रह्मा पुनः अत्यन्त कठोर परम व्रतके पालनमें संलग्न हो गये। जब सामर्थ्यशाली ब्रह्माको अकेले तपस्या करते हुए आनन्दका अनुभव नहीं हुआ, तब उन्होंने अपने शरीरसे एक ऐसी सुन्दरी भार्याको उत्पन्न किया, जो तपस्या, तेज, ओजस्विता और नियमपालनमें उन्होंके समान थी। वह देवी लोककी सृष्टि करनेमें भी समर्थ थी। उससे युक्त होकर वहाँ तपस्या करते हुए ब्रह्माको संतोषका अनुभव हुआ, तब उन्होंने वेदपूजित शिदा गायत्रीका उच्चारण किया। तत्पश्चात् सर्वव्यापी ब्रह्माने प्रजापतियोंकी सृष्टि करते हुए सागरोंकी तथा गायत्रीसे उत्पन्न होनेवाले अन्य चारों वेदोंकी रचना की। फिर ब्रह्माने अपने हो सदृश पुत्रोंको उत्पन्न किया, जो विश्वमें प्रजापतिके नामसे विख्यात हुए और जिनसे सारी प्रजाएँ उत्पन्न हुई। सर्वप्रथम उन्होंने अपने धर्म नामक पुत्रको प्रकट किया, जो विश्वके ईश्वर, महान् तपस्वी, सम्पूर्ण मन्त्रोंद्वारा अभिरक्षित और परम पावन थे। तदुपरान्त उन्होंने दक्ष, मरीचि, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, वसिष्ठ, गौतम, भृगु, अङ्गिरा और मनुको उत्पन्न किया। * ब्रह्माके पुत्रभूत इन महर्षियोंको अत्यन्त अद्भुत जानना चाहिये। इन्हीं महर्षियोंने तेरह प्रकारके गुणोंसे युक्त धर्मका प्रतिपादन एवं अनुसरण किया ll 20- 28 ॥
राजन्! अदिति, दिति, दनु, काला, अनायु सिंहिका, मुनि, ताम्रा, क्रोधा, सुरसा, विनता और कद्रू ये बारह कन्याएँ दक्ष प्रजापतिकी संतान हैं। कश्यप महर्षि मरीचिके पुत्र थे, जो पिताकी तपस्याके प्रभावसे उत्पन्न हुए थे। उस समय दक्षने कश्यपको अपनी उन बारह कन्याओंको पत्नीरूपमें प्रदान किया था। रविनन्दन ! उसी समय ऋषिवर ब्रह्माने नक्षत्रसंज्ञक रोहिणी आदि सभी पुण्यमयी कन्याओंको चन्द्रमाके हाथोंमें सौंप दिया। लक्ष्मी, मरुत्वती, साध्या, शुभा, विश्वेशा और सरस्वती देवी-ये पूर्वकालमें ब्रह्माद्वारा निर्मित हुई थीं। राजन् ! कर्मपर दृष्टि रखनेवाले ब्रहाने इन पौधों सर्वश्रेष्ठ कन्याओं को मङ्गलकारक सुरश्रेष्ठ धर्मको समर्पित कर दिया।इसी बीच ब्रह्माकी स्वेच्छानुसार रूप धारण करनेवाली एवं हितकारिणी सुन्दरी पत्नी सुरभिका रूप धारण कर ब्रह्माके निकट उपस्थित हुई। तब लोक-सृष्टिके कारणों के जाता लोकपूजित देव श्रेष्ठ ब्रह्माने गौओंको उत्पतिके निमित्त उसके साथ मानसिक समागम किया। उससे धूमकी सी कान्तिवाले विशालकाय पुत्र उत्पन्न हुए। उनका वर्ण रात्रि और संध्या के संयोगा छाये हुए बादलोंके समान था। वे अपने प्रचण्ड तेजसे सबको जला रहे थे और ब्रह्माकी निन्दा करते हुए रोते-से वे इधर-उधर दौड़ रहे थे। इस प्रकार रोने और दौड़नेके कारण वे 'रुद्र' कहे जाते हैं। निर्ऋति, शम्भु, तीसरे अपराजित, मृगव्याध, कपर्दी, दहन, ईश्वर, अहिर्बुध्य, भगवान् कपाली, पिंगल और महातेजस्वी सेनानी- ये ग्यारह रुद्र कहलाते हैं॥ 29-393 ॥
तदनन्तर उसी श्रेष्ठ सुरभिसे यज्ञकी साधनभूता गौएँ, प्रकृष्ट माया, अविनाशी पशुगण, बकरियाँ, हंस, उत्तम अमृत और औषधियाँ उत्पन्न हुई। धर्मके संयोगसे लक्ष्मीने कामको और साध्याने साध्यगणोंको जन्म दिया। भव, प्रभव, ईश, अमुरहन्ता, अरुण, आरुणि विश्वावसु बल, ध्रुव, हविष्य, वितान, विधान, शमित, वत्सर, सम्पूर्ण असुरोंके विनाशक भूति और सुपर्वा - इन देवताओंको लोकनमस्कृता परम सुन्दरी साध्यादेवीने धर्मके संयोगसे जन्म दिया। इसी प्रकार प्रथम वर, दूसरे अविनाशी ध्रुव, तीसरे विश्वावसु, चौथे ऐश्वर्यशाली सोम, पाँचवें अनुरूपमाय, तदनन्तर छठे यम, सातवें वायु और आठवें वसु निर्ऋति- ये सभी धर्मके पुत्र सुदेवीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। धर्मके संयोगसे विश्वाके गर्भसे विश्वेदेवोंकी उत्पत्ति हुई है ऐसा सुना जाता है। महाबाहु दश, पुष्करस्वन, चाक्षुष मनु, मधु महोरग, विश्रान्तकयपु बाल महायशस्वी विष्कम्भ और सूर्यकी-सी कान्तिवाले अत्यन्त पराक्रमी एवं तेजस्वी गरुड-इन विश्वेदेवोंको | देवमाता विश्वेशाने पुत्ररूपमें जन्म दिया ॥40 - 50 ॥इसी प्रकार मरुत्वतीने मरुत् देवताओंको पुत्ररूपमें उत्पन्न किया। अग्नि, चक्षु, रवि, ज्योति, सावित्र, मित्र, अमर, शरवृष्टि, महाभुज सुकर्ष, विराज, वाच, विश्वावसु मति, अश्वमित्र, चित्ररश्मि, निषधन, ह्यन्त, वाडव, चारित्र, मन्दपन्नग, बृहन्त, बृहद्रूप तथा पूतनानुग— इन मरुद्रणको पूर्वकालमें मरुत्वतीने जन्म दिया था। अदितिने कश्यपके संयोगसे बारह आदित्योंको उत्पन्न किया। उनके नाम हैं- इन्द्र, विष्णु, भग, त्वष्टा, वरुण, अर्यमा, रवि, पूषा, मित्र, धनद, धाता और पर्जन्य ये बारह आदित्य देवताओंमें सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। आदित्यके सरस्वतीके गर्भसे दो श्रेष्ठ पुत्र उत्पन्न हुए, जो तपस्वियोंमें श्रेष्ठ, गुणवानोंमें प्रधान और देवताओंके लिये भी पूजनीय कहे जाते हैं। दनुने दानवोंको और दितिने दैत्योंको उत्पन्न किया। कालाने कालकेय नामक असुरों और राक्षसोंको जन्म दिया। अत्यन्त बलवती व्याधियाँ अनायुपकी संतान है। सिंहिका ग्रहको माता है और मुनि गन्धवकी जननी कही जाती है। भरतकुलोत्पन्न राजन्! ताम्रा पवित्रात्मा अप्सराओंकी माता है। क्रोधासे सभी भूत और पिशाच पैदा हुए। विशाम्पते। क्रोधाने यक्षगणों और राक्षसोंको भी जन्म दिया था ।। 51-61 राजन्! सभी चौपाये जीव तथा गौएँ सुरभीकी संतान है। ताने सुन्दर पंखधारी पक्षियों को पैदा किया। कद्दूदेवीने पृथ्वीको धारण करनेवाले सभी प्रकारके नागोंको उत्पन्न किया परंतप इसी प्राकर विश्वमें लोकसृष्टि वृद्धिको प्राप्त हुई है। राजन् ! यही महात्मा विष्णुका पुष्करसम्बन्धी प्रादुर्भाव है। व्यासद्वारा कहे गये इस पौष्कर प्रादुर्भावका तथा जो पुराणपुरुष, सर्वव्यापी और महर्षियोंद्वारा संस्तुत हैं, उन भगवान् श्रीहरिका वर्णन मैंने तुम्हें आनुपूर्वी सुना दिया। जो मनुष्य सदा पर्वोके समय गौरवपूर्वक इस श्रेष्ठ पुराणको श्रवण करता है, वह वीतराग होकर | लौकिक सुखोंका उपभोग करके परलोकमें स्वर्गफलोंका भोग करता है। जो मनुष्य श्रीकृष्णको नेत्र, मन, वचन और कर्म- इन चारों प्रकारोंसे प्रसन्न करता है। तो श्रीकृष्ण भी उसे उसी प्रकार आनन्दित करते हैं।राजाको राज्यकी, निर्धनको उत्तम धनकी, क्षीणायुको दीर्घायुकी तथा पुत्रार्थीको पुत्रकी प्राप्ति होती है। विष्णुभक्त मनुष्य यज्ञ, वेद, कामनापूर्ति, अनेकविध तप, विविध पुण्य और धनको प्राप्त करता है। नृपश्रेष्ठ ! जो मनुष्य | सबका परित्याग करके श्रीहरिके इस पौष्कर- प्रादुर्भावका पाठ करता है, वह जो-जो कामनाएँ करता है, वह सब कुछ उस लोकेश्वरभगवान्से प्राप्त हो जाता है और उसका कभी अमङ्गल नहीं होता। महाभाग ! इस प्रकार मैंने तुमसे महात्मा विष्णुके पुष्कर या कमलके प्रादुर्भावका वर्णन कर चुका। यह व्यासके वचनों तथा श्रुतियोंका निदर्शन है ।। 62-71 ॥