मत्स्यभगवान्ने कहा- अब मैं सर्वश्रेष्ठ ब्रह्माण्डदानकी विधि बतला रहा हूँ, जो सभी दानोंमें श्रेष्ठ और महापापोंका विनाश करनेवाला है। पुण्यदिनके आनेपर तुलापुरुष-दानके समान इसमें भी ऋत्विज, मण्डप, पूजनकी सामग्री, भूषण तथा आच्छादन आदिको | एकत्र करना चाहिये। इसी प्रकार लोकपालोंका आवाहन और अधिवासन भी करना चाहिये। इसके पहले बुद्धिमान् पुरुषको अपनी शक्तिके अनुसार बीस पलसे ऊपर एक | हजार पलतक दो कलशोंसे संयुक्त सोनेके ब्रह्माण्डकी रचना करवानी चाहिये। वह ब्रह्माण्ड आठों दिग्गजोंसे संयुक्त, छहों वेदाङ्गोंसे सम्पन्न तथा आठों लोकपालोंसे युक्त हो। उसके मध्यभागमें चतुर्मुख ब्रह्मा तथा शिखरपर शिव, विष्णु और सूर्य स्थित हों, वह उमा तथा लक्ष्मीसेयुक्त हो। उसके गर्भ में वसुगण, आदित्यगण और मरुद्गण होने चाहिये तथा वह बहुमूल्य रत्नोंसे सुशोभित भी हो। उसकी लम्बाई-चौड़ाई एक बीतेसे लेकर सौ अंगुलतक होनी चाहिये। उसे रेशमी वस्त्रसे परिवेष्टित कर एक द्रोण तिलपर स्थापित करना चाहिये। उसके चारों ओर अठारह प्रकारके अन्नोंको रखना चाहिये। उसकी पूर्व दिशामें अनन्तायीको (दक्षिण-पूर्वके) अग्निकोणमें प्रद्युम्नको, दक्षिण दिशामें प्रकृतिको, (दक्षिण-पश्चिमके) नैर्ऋत्यकोणमें संकर्षणको, पश्चिम दिशामें चारों वेदोंकों, (पश्चिम-उत्तर) वायव्यकोणमें अनिरुद्धको उत्तर दिशामें अग्निको, (उत्तर-पूर्वके) ईशानकोणमें सुवर्ण-निर्मित | वासुदेवको स्थापित करना चाहिये। बुद्धिमान् पुरुष इन सभी देवताओंकी स्वर्णमयी प्रतिमा बनवाकर चारों ओर गुडके आसनपर स्थितकर उनकी पूजा करे। फिर जलसे भरे हुए दस कुम्भोको वस्वसे परिवेष्टित कर स्थापित करे ।। 1-10 ॥
तदनन्तर पादुका, जूता, छत्र, चमर, आसन, दर्पण, भक्ष्यभोज्य, अन्न, दीप, ईख, फल, माला और चन्दनसहित सुवर्ण, वस्त्र और कांसदोहनीके साथ दस गौएँ दान करनी चाहिये। हवन एवं अधिवासनके समाप्त होनेपर वेदज्ञ ब्राह्मणोंद्वारा स्नान कराये जानेके बाद यजमान तीन बार प्रदक्षिणा कर इस मन्त्रका उच्चारण करे- 'विश्वेश्वर! आपको नमस्कार है। विश्वधाम! आप जगत्को उत्पन्न करनेवाले हैं, आपको प्रणाम है। भगवन्! आप सप्तर्षिलोक देवता और भूतलके स्वामी हैं, आप गर्भके साथ चारों ओरसे हमारी रक्षा कीजिये । जो दुःखी हैं, वे सुखी हो जायें, चराचर जीवोंके पापपुञ्ज नष्ट हो जायें, आपके दानरूप शस्त्रसे नष्ट हुए पापोंवाले लोगोंके ब्रह्माण्ड-दोष नष्ट हो जायें।' इस प्रकार अमरगणों एवं विश्वको गर्भमें धारण करनेवाले उस ब्रह्माण्डको प्रणाम करनेके बाद उसे दस भागोंमें विभक्त कर ब्राह्मणोंको दान कर दे। उनमेंसे दो भाग गुरुको दे और शेष भागोंको क्रमशः समानरूपसे ब्राह्मणोंको दे।स्वल्प हवनमें एक गुरुको ही एकाग्निकी विधिसे नियुक्त करना चाहिये और अल्प वित्त होनेपर यथोक्त वस्त्र आभूषणादिसे उन्हींकी पूजा करनी चाहिये। इस प्रकार जो मनुष्य इस लोकमें इस ब्रह्माण्डदानकी क्रियाको सम्पन्न करता है, वह पापोंके नष्ट हो जानेसे शुद्ध-शरीर हो अप्सराओंके साथ महान् विमानपर आरूढ़ हो मुरारिके आनन्ददायक पदको प्राप्त करता है। इस प्रकार करनेसे वह अपने सैकड़ों पिता, पितामह, पुत्र, पौत्र, बन्धु प्रियजन, अतिथि और स्त्रीको तार देता है। साथ ही जिसका पापसमूह ब्रह्माण्ड- दानसे चूर्ण हो गया है उस सम्पूर्ण मातृकुलको भी आनन्दित करता है। इसे जो मनुष्य देव मन्दिरों अथवा धार्मिकोंके गृहोंमें पढ़ता अथवा सुनता या ऐसा करनेकी मति ही देता है, वह इन्द्रके भवनमें अप्सराओंके साथ आनन्दका अनुभव करता है । ll 11 - 19 ।।