सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! विश्वस्वरूप मत्स्य भगवान्ने धर्म, अर्थ और कामके साधन भूत जिस सम्पूर्ण मत्स्यपुराणका वर्णन किया था, वह सब मैंने आपलोगोंको बतला दिया। उसमें आदिमें मनुका संवाद, ब्रह्माण्डका वर्णन तथा चतुर्मुख ब्रह्माके मुखसे उद्भूत शारीरिक सांख्यका वर्णन है। तत्पश्चात् देवताओं और असुरोंकी उत्पत्ति, मरुद्गणोंकी उत्पत्ति, मदनद्वादशी, लोकपालोंका पूजन, मन्वन्तरोंका उद्देश्य, राजा पृथुका वर्णन, सूर्य और वैवस्वत मनुकी उत्पत्ति, बुधका इलासे संयोग, पितृवंशका वर्णन, श्राद्धके कालका निर्णय, पितृतीर्थोंमें प्रवास, सोमकी उत्पत्ति, सोमवंशका वर्णन, ययातिका चरित्र, कार्तवीर्य अर्जुनका माहात्म्य, वृष्णिवंशका वर्णन, भृगुशाप, विष्णुका दैत्योंको शाप, पुरुपेशका कीर्तन, अग्निवंशका वर्णन, पुराणों का वर्णन, क्रियायोगका विवेचन, नक्षत्रसंहत मार्तण्डशयन, कृष्णाष्टमीव्रत रोहिणीचन्द्रव्रत, तडागविधिका माहात्म्य, पादपोत्सर्ग-विधि, सौभाग्यशयनव्रत, अगस्त्यव्रत, अनन्ततृतीयाव्रत, रसकल्याणिनीव्रत आर्द्रानन्दकरीव्रत, सारस्वतप्रत उपरागाभिषेकव्रत, सप्तमीस्नपनव्रत, भीमद्वादशीव्रत, अनङ्गशयनव्रत, अशून्यशयनव्रत, अङ्गारकव्रत, सप्तमी सप्तकव्रत, विशोकद्वादशीव्रत दस प्रकारके मेरुओंके दानकी विधि, ग्रहशान्ति, ग्रहोंके स्वरूपका कथन, शिवचतुर्दशीव्रत सर्वफलल्यागत तथा सूर्यवार व्रतका निरूपण हुआ है ।। 1-14 ।।उसी प्रकार संक्रान्तिस्नपनव्रत, विभूतिद्वादशीव्रत, साठ व्रतोंका माहात्म्य, स्नानविधिका क्रम, प्रयागका माहात्म्य, समस्त तीर्थोंका वर्णन, ऐलाश्रमव्रत, द्वीप और लोकोंका कथन, सूर्य और चन्द्रमाकी गतिका वर्णन, आदित्यके रथका वर्णन, उसका अन्तरिक्षमें गमन, ध्रुवका माहात्म्य, सुरेन्द्रोंके भुवन, त्रिपुरके प्रति घोषणा, पितरोंके पिण्डदानका माहात्म्य, मन्वन्तरोंका निर्णय, वज्राङ्गकी उत्पत्ति, तारककी उत्पत्ति, तारकासुरकी प्रशंसा, ब्रह्मा और देवताओंकी मन्त्रणा, पार्वतीकी उत्पत्ति, शिवका तपोवन-गमन, कामदेवके शरीरका दाह, रतिका शोक, पार्वतीका तपोवन-गमन, विश्वनाथकी प्रसन्नता, पार्वती और सप्तर्षियोंका संवाद, पार्वतीका विवाहोत्सव, कुमार स्कन्दकी उत्पत्ति, कुमारकी विजय, तारकासुरका भयंकर वध, नरसिंहावतारका वर्णन, पद्मोद्भवका विसर्ग, अन्धकासुरका वध, वाराणसीका माहात्म्य, नर्मदाका माहात्म्य, प्रवरोंका अनुक्रम, पितृगाथाका वर्णन, उभयमुखी दान तथा कृष्णमृगचर्मके दानका वर्णन, सावित्रीका उपाख्यान, राजधर्मका वर्णन, यात्राके निमित्तका कथन, शुभ-अशुभ स्वप्नों और शकुनोंका निरूपण, वामनका माहात्म्य, वराहका माहात्म्य, क्षीरसागरका मन्थन, कालकूटका दमन, देवों और असुरोंका संग्राम, वास्तुविद्या कथन, प्रतिमाओंके लक्षण, देवताओंकी आराधना, प्रासादोंका लक्षण, मण्डपोंका लक्षण, भविष्यत्कालीन राजाओंका वर्णन, महादानोंका कथन, कल्पोंका वर्णन तथा ग्रन्थोंकी अनुक्रमणिकाका कथन हुआ है ।। 15-28 ll
यह पुराण परम पवित्र, आयु प्रदान करनेवाला, कीर्तिवर्धक, परम पावन, कल्याणकारक, बड़े-बड़े पापोंको नष्ट करनेवाला और मङ्गलमय है। इस पुराणसे मनुष्योंको सदैव पुण्य तथा समस्त तीर्थोंमें स्नान करने और सम्पूर्ण धर्माचरणसे उत्पन्न हुए महान् फलोंका लाभ प्राप्त होता है।यह परमोत्तम पुराण सम्पूर्ण दोषोंका नाशक है। इसे मत्स्यरूपधारी श्रीहरिने प्रलयकालमें एकार्णवके जलमें मनुके प्रति कहा था। जो मनुष्य इस पुराणके एक श्लोकके एक चरणका भी पाठ करता है, वह भी पापोंसे मुक्त होकर सुखी हो जाता है तथा कामदेवकी भाँति दिव्य शरीर धारणकर निश्चय ही नारायणके निवासस्थान वैकुण्ठमें चला जाता है। जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस पुण्यप्रद एवं रहस्यमय सम्पूर्ण पुराणको सुनता है, | वह शंकरजीकी कृपासे अश्वमेध यज्ञके अन्तमें होनेवाले अवभृथ स्नानके सदृश प्रभावशाली फलको प्राप्त करता है। द्विजवरो! जो धर्मज्ञ मनुष्य शिव, विष्णु, ब्रह्मा और सूर्यकी अर्चना करके श्रद्धापूर्वक इस पुराणके एक श्लोक, आधे श्लोक अथवा एक चरणको सुनता है अथवा दूसरेको सुनाता है, उसे जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनिये। वह ब्राह्मण हो तो विद्या, क्षत्रिय हो तो पृथ्वी, वैश्य हो तो धन और शूद्र हो तो सुख प्राप्त करता है। सम्पूर्ण पुराण सुननेवाला पापरहित होकर आयुष्मान्, पुत्रवान् और लक्ष्मीवान् हो जाता है तथा उसे शत्रु पराजित नहीं कर सकते ।। 29-36 ॥