मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्! अब मैं आपसे महर्षि अत्रिके ही वंशमें उत्पन्न अन्य शाखाका वर्णन कर रहा हूँ। नरेश्वर! महर्षि अत्रिके पुत्र श्रीमान् सोम हुए उनके वंशमें विश्वामित्र उत्पन्न हुए, जिन्होंने अपनी तपस्याके बलसे ब्राह्मणत्वको प्राप्त किया। अब मैं उनके वंशका वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये। वैश्वामित्र (मधुच्छन्दा), देवरात, वैकृति, गालव, वतण्ड, शलंक, अभय, आयतायन, श्यामायन याज्ञवल्क्य, जाबाल, सैन्धवायन, बाभ्रव्य करीष, संत्य संबुत, उलूर औपहाव, पयोद, जनपादप, खरबाच, हलयम, साधित तथा वास्तुकौशिक इन सभी ऋषियोंके वंशमें उत्पन्न होनेवालोंमें विश्वामित्र, देवरात तथा महायशस्वी उद्दाल— ये तीन ऋषि प्रवर माने गये हैं। इनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता। नराधिप। देवश्रवा, सुजातेय, सौमुक, कारुकायण, वैदेहरात तथा कुशिक इन सभी महर्षियोंके वंशमें देवश्रवा, देवरात तथा विश्वामित्र- ये तीनों प्रवर माने गये हैं। इन वंशजोंमें परस्पर विवाह निषिद्ध है। राजन्। धनंजय, कपर्देय, परिकूट तथा पणिनि इनके वंशमें विश्वामित्र धनंजय और माधुच्छन्दस— ये तीन प्रवर माने गये हैं। विश्वमित्र, मधुच्छन्दा और अपमर्पण इन तीन ऋषियोंके वंशजोंमें भी परस्पर विवाह नहीं होते ll १-१२ ॥
कामलायनिज, अश्मरथ्य और वञ्जुलि - इन ऋषियोंके विश्वामित्र, अश्मरध्य और महातपस्वी वञ्जुलि-ये तीनों प्रवर माने गये हैं।इनमें भी परस्पर विवाह निषिद्ध है। विश्वामित्र, लोहित, अष्टक और पूरण इनके विश्वामित्र और पूरण- ये दो प्रवर माने गये हैं। इनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध निषिद्ध है। पूरण, लोहित तथा अष्टक-इन ऋषियोंके विश्वामित्र, लोहित तथा महातपस्वी अष्टक प्रवर माने गये हैं। इनमें अष्टक वंशवालोंका लोहित वंशवालोंके साथ परस्पर विवाह नहीं होता। उदरेणु क्रथक तथा उदावहि- इन सबके ऋणवन्, गतिन तथा विश्वामित्र ये तीन प्रवर माने गये हैं। इनमें परस्पर विवाह निषिद्ध है। उदुम्बर, सैषिरिटि, त्राक्षायणि, शाट्यायनि, करीराशी, शालंकायनि, लावकि तथा ऐश्वर्यशाली मौञ्जायनि— इन ऋषियोंके खिलिखिलि, विद्य तथा विश्वामित्र ये तीन ऋषि प्रवर माने गये हैं। इनमें परस्पर विवाह सम्बन्ध नहीं होता। नरेन्द्र! मैंने आपसे इन कुशिकवंशी महानुभाव द्विजेन्द्रोंका वर्णन कर चुका। इनके नामसंकीर्तनसे मनुष्य समग्र पापोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 13 – 22 ॥