मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्! भगवान् के योगनिद्राके वशीभूत हो शयन करते समय मधु नामका महान् असुर उत्पन्न हुआ, जो ब्रह्माजीको तपस्याएँ विघ्नस्वरूप था। तत्पश्चात् उसीके साथ रजोगुणसे युक्त कैटभ भी उत्पन्न हुआ। रजोगुण और तमोगुणसे युक्त एवं विघ्नस्वरूप उत्पन्न हुए वे दोनों महाबली तामसी असुर एकार्णवके जलमें सम्पूर्ण जगत्को क्षुब्ध कर रहे थे। वे लाल रंगका दिव्य वस्त्र धारण किये हुए थे, उनकी श्वेत वर्णकी दाढ़ोंके अग्रभाग चमक रहे थे, वे ही किरीट और कुण्डल तथा उज्वल केयूर और कंकणसे विभूषित थे, उनके लाल रंगके विशाल नेत्र खुले हुए थे, उनकी छाती मोटी और भुजाएँ लम्बी थीं, उनका शरीर विशाल पर्वतके समान था, वे चलते हुए पर्वत-जैसा जान पड़ते थे, उनको शरीर कान्ति नूतन मेघ-जैसी थी, उनका मुख सूर्यके समान प्रकाशमान था, वे बिजलीकी तरह चमक रहे थे और हाथमें गदा धारण करनेके कारण अत्यन्त भयानक दीख रहे थे, चलते समय वे पैरोंको इस प्रकार रख रहे थे मानो समुद्रको उछाल रहे हों और शयन करते हुए भगवान् मधुसूदनको कम्पित-सा कर रहे थे। इस प्रकार वहाँ विचरण करते हुए उन दोनोंने कमलपर उद्भासित होते हुए चारों और मुखवाले योगियोंमें श्रेष्ठ ब्रह्माके निकट पहुँचकर उन्हें नारायणकी आज्ञासे मानसिक संकल्पद्वारा समस्त प्रजाओं, सम्पूर्ण देवताओं, असुरों और ऋषियोंकी सृष्टि करते हुए देखा। वे दोनों असुरश्रेष्ठ अपनी कान्तिसे उद्दीप्त, क्रोधसे परिपूर्ण और आसन्नमृत्यु थे, उनके नेत्र क्रोधसे व्याकुल हो रहे थे। उन्होंने ब्रह्मासे पूछा 'श्वेत रंगकी पगड़ी बाँधे, चार भुजाधारी एवं कमलके मध्यमें स्थित तुम कौन हो? तुम मोहवश नियम धारणकर यहाँ शान्तचित्त होकर क्यों बैठे हो ? कमलजन्मा तुम यहाँ आओ और हम दोनोंके साथ युद्ध करो। हम दोनों सामर्थ्यशालियोंके अतिरिक्त तुम इस महासागरमें स्थित नहीं रह सकते। तुम्हें उत्पन्न करनेवाला कौन है? तुम किसके द्वारा इस काममें नियुक्त किये गये हो? तुम्हारी सृष्टि करनेवाला कौन है? तुम्हारा रक्षक कौन है? तुम किस नामसे पुकारे जाते हो ? ll 1-120 llब्रह्माने कहा- जो ध्यानसे परे एवं हजारों नेत्रोंवाला है, उस परम पुरुषको तो लोग अद्वितीय बतलाते हैं, (परंतु तुम दोनों कौन हो ?) अतः मैं तुम दोनोंके नाम और कर्मको जानना चाहता हूँ ॥ 13 ॥
मधु-कैटभ बोले- महामते! जगत्में हम दोनोंसे उत्कृष्ट कुछ भी नहीं है। हम दोनोंने तमोगुण और रजोगुणद्वारा विश्वको आच्छादित कर रखा है। रजोगुण और तमोगुणसे व्याप्त होनेके कारण हम दोनों ऋषियोंके लिये अलङ्घनीय हैं। धर्म और शील-स्वभावका आच्छादन करनेवाले हम दोनों समस्त देहधारियोंके लिये अजेय हैं। प्रत्येक युगमें दुष्कर कर्म करनेवाले हम दोनों लोकका वहन करते हैं। अर्थ, काम, यज्ञ, स्वर्गसंकलन - यह सब हम दोनोंके लिये ही हैं। जहाँ जो कुछ प्रसन्नतायुक्त सुख, लक्ष्मी और कीर्ति है तथा प्राणियोंके जो मनोरथ हैं, उनके रूपमें हम दोनोंको जानना चाहिये ।। 14- 17 ॥
ब्रह्माने कहा- पूर्वकालमें मैंने यत्नपूर्वक योगदृष्टिद्वारा योगका उपार्जन किया था, उसी गुणशाली योगको धारण करके मैं सत्त्वगुणसे युक्त हो सका हूँ। जो परात्पर, योगकी बुद्धिसे युक्त, 'योग' नामवाले, सत्त्वगुणस्वरूप, रजोगुण और तमोगुणके रचयिता तथा विश्वको उत्पन्न करनेवाले हैं, जिनसे सात्त्विक, राजसिक और तामसिक प्राणियोंकी उत्पत्ति होती है, वे ही देव तुम दोनोंका विनाश करनेमें समर्थ हैं, अतः वे ही तुम दोनोंका वध करेंगे ll 18-20 ॥
ठीक उसी अवसरपर परब्रह्म श्रीमान् नारायणने शयन करते हुए ही अपनी मायासे अपने बाहुको अनेकों योजनके विस्तारवाला बना लिया तब दीर्घ बाहुवाले भगवान्की उस भुजासे खींचे जाते हुए वे दोनों दैत्य स्थानसे भ्रष्ट होकर दो मोटे पक्षियोंकी भाँति घूमने लगे। इस प्रकार खिंचते हुए वे दोनों असुर अविनाशी | पद्मनाभ हषीकेशके निकट जा पहुंचे और उन्हें नमस्कार कर सामने खड़े हो गये और इस प्रकार बोले- 'देव ! हम दोनों आपको विश्वका उत्पादक, अद्वितीय और पुरुषोत्तम जानते हैं। आप हम दोनोंकी रक्षा करें। हमलोगोंकी ऐसी बुद्धिका कारण किसी प्रयोजनकी सिद्धिके लिये है। आपका दर्शन अमोघ होता है। इसीलिये हम दोनों | आपको अविनाशी मानते हैं। देव! इसी कारण हम दोनोंआपका दर्शन करनेके लिये यहाँ आये हैं। शत्रुसूदन! हम दोनों आपसे अद्भुत वर प्राप्त करना चाहते हैं। युद्धविजयी देव! आप अमोघदर्शन हैं, अर्थात् आपका दर्शन निष्फल नहीं होता। आपको नमस्कार है' ।। 21-26 ॥
श्रीभगवान् ने कहा— श्रेष्ठ असुरो ! तुमलोगोंकी क्या अभिलाषा है ? शीघ्र वर माँगो तुमलोगोंने अपनी आयु तो दे दी है, अब तुमलोग पुनः एकान्तमें कैसे जीवित रहना चाहते हो ? ॥ 27 ॥ मधु-कैटभ बोले- सामर्थ्यशाली देव! जिस स्थानपर कोई भी न मरा हो, वहाँ हम अपनी मृत्यु चाहते हैं। साथ ही महाव्रत ! हमारी वह मृत्यु आपके हाथों होनी चाहिये ॥ 28 ॥ श्रीभगवान्ने कहा- ठीक है, भविष्यकालमें तुम दोनों असुरोंमें श्रेष्ठ होकर उत्पन्न होओगे, इसमें संदेह नहीं है। यह मैं तुम दोनोंसे सत्य कह रहा हूँ। इस प्रकार विश्वमें श्रेष्ठ सनातन सुरवर भगवान्ने उन दोनों महान् असुरोंको वर प्रदान करनेके पश्चात् रजोगुण और तमोगुणके उत्पत्तिस्थानस्वरूप उन दोनों असुरोंको अपनी जाँघपर सुलाकर उनका कचूमर निकाल लिया ॥ 29-30।।