मत्स्यभगवान्ने कहा- अब मैं मनुष्योंको गोलोक प्रदान करनेवाले अत्युत्तम 'रत्नधेनु' नामक महादानकी विधिका वर्णन कर रहा हूँ। किसी पुण्य दिनके आनेपर यजमान तुलापुरुषदानकी तरह लोक | पालोंका आवाहन करनेके पश्चात् धेनुकी कल्पना करे।पृथ्वीपर कृष्णमृगचर्म बिछाकर उसपर एक द्रोण लवण | रखकर उसके ऊपर विधिपूर्वक संकल्पसहित रत्नमयी धेनुको स्थापित करे। बुद्धिमान् पुरुष उसके मुखमें इक्यासी पद्मराग मणि तथा थूथुनमें इक्यासी पुष्पराग (पुखराज) स्थापित करे। उस गौके ललाटपर सोनेका तिलक लगावे। उसकी दोनों आँखोंमें सौ मुक्ता (मोती), दोनों भौहोंपर सौ प्रवाल (मूंगा) और दोनों कानोंकी जगह दो शुक्तियाँ (सी) लगानी चाहिये उसके सींग सोनेके होने चाहिये। सिरकी जगह सौ हीरोंको स्थापित करना चाहिये। कण्ठ और नेत्र- पलकोंमें सौ गोमेदक, पृष्ठभागमें सौ इन्द्रनील (नीलम), दोनों पार्श्वस्थानों में सौ वैदू (डू)-र्य (बिलौर), उदरपर स्फटिक तथा कटिदेशपर सौ सौगन्धिक (माणिक लाल) मणि रखना चाहिये खुरोंको स्वर्णमय पूँछको मुक्ता (मोतियों) की लड़ियोंसे युक्त और दोनों नाकोको सूर्यकान्त तथा चन्द्रकान्त मणियोंसे बनाकर कर्पूर और चन्दनसे अर्चित करना चाहिये। रोमोंको केसर और नाभिको चाँदीसे बनवाये। गुदामें सौ लाल मणियोंको लगाना चाहिये। अन्य रत्नोंको संधिभागोंपर लगाना चाहिये। जोभको शक्करसे, गोवरको गुड्से और गोमूत्रको धीसे बनवाना चाहिये। दही-दूध प्रत्यक्ष ही रखे। पूँछके अग्रभागपर चमर तथा समीपमें ताँबेकी दोहनी रखनी चाहिये ॥ 1-11 ॥
अपनी आर्थिक शक्तिके अनुसार उसे सोनेसे निर्मित आभूषण और कुण्डल पहनाने चाहिये, उसके ईखके पैर होने चाहिये। इसी प्रकार गौके चतुर्थांशसे बछड़ा बनवाना | चाहिये। उस गौके समीप सभी प्रकारके अन्न, विविध फल, पंचरंगा वितान भी यथास्थान रखना चाहिये। इस प्रकार गौकी रचना, हवन और अधिवासन करनेके बाद ऋत्विजोंको दक्षिणा देनी चाहिये। इसके बाद धेनुको आमन्त्रित करे। उस समय गुड़धेनुकी तरह आवाहन कर | यह कहना चाहिये – 'देवि! चूँकि रुद्र, इन्द्र, सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु ये सभी तुम्हें सम्पूर्ण देवताओंका निवासस्थान मानते हैं तथा समस्त त्रिभुवन तुम्हारे ही शरीरमें व्याप्त हैं, अतः तुम भवसागरसे पीड़ित मेरा उद्धार करो।'इस प्रकार आमन्त्रित करनेके बाद गौकी परिक्रमा कर भक्तिपूर्वक हाथमें जल लेकर उस गौको ब्राह्मण गुरुको | दान करना चाहिये। जो व्यक्ति इस प्रकार पुण्य दिन आनेपर उपवासकर यह दान करता है, उसका शरीर पापोंसे मुक्त हो जाता है और वह भगवान् मुरारिके परमपदको प्राप्त करता है। इस प्रकार सम्पूर्ण विधियोंको जाननेवाला जो पुरुष इस रत्नधेनुका दान करता है, वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त होकर कामदेव सदृश सौन्दर्यशाली हो जाता है तथा अपने बन्धुओं, पुत्रों और पौत्रोंके साथ देदीप्यमान विमानपर सवार हो, शिवके लोक (कैलास या सुमेरुस्थित दिव्य शिवधाम ) को प्राप्त करता है ॥ 12 – 17 ॥