मनुने पूछा-जनार्दन ! मैंने आपके मुखसे बुधपुत्र राजा पुरुरवाका जीवन चरित्र तो सुना और समस्त पोंका विनाश करनेवाली पुण्यमयी श्राद्धविधिका भी श्रवण किया तथा व्याती हुई गौके दानका, काले मृगचर्मके दानका एवं वृषोत्सर्गका भी फल सुन लिया, परंतु केशव ! बुधपुत्र नरेश्वर पुरूरवाके रूपको सुनकर मुझे महान् कौतूहल उत्पन्न हो गया है, इसीलिये पूछ रहा हूँ। अब आप मुझे यह बतलाइये कि किस कर्मके परिणामस्वरूप राजा पुरूरवाको वैसा सुन्दर रूप और उत्तम सौभाग्य प्राप्त हुआ था? (जिसपर मोहित होकर अप्सराओंमें श्रेष्ठ) उर्वशी त्रिलोकीमें श्रेष्ठ देवताओं और सौन्दर्यशाली गन्धर्वोका त्याग करके सब प्रकारसे राजा पुरूरवाकी सङ्गिनी बनी थी॥ 1-5 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। राजा पुरुरवाको जिस कर्मके फलस्वरूप वैसे सुन्दर रूप और उत्तम सौभाग्यकी प्राप्ति हुई थी, वह बतला रहा हूँ, सुनो। यह राजा पुरूरवा पूर्वजन्ममें भी पुरूरवा नामसे ही विख्यात था। यह चाक्षुष मन्वन्तरमें चाक्षुष मनुके वंशमें उत्पन्न होकर मद्र देश (पंजाबका पश्चिमोत्तर भाग) का अधिपति था (जहाँका राजा शल्य तथा पाण्डुपत्त्री माद्री थी। उस समय इसमें राजाओंके सभी गुण तो विद्यमान थे, पर वह केवल रूपरहित अर्थात् कुरूप था (मत्स्यभगवान्द्वारा आगे कहे जानेवाले प्रसङ्गको ऋषियोंके पूछने पर सूतजीने वर्णन किया है, अतः इसके आगे पुनः वही प्रसङ्ग चलाया गया है।) ॥ 6-8 ॥
ऋषियोंने पूछा- सूतनन्दन! राजा पुरूरवा किस कर्मके फलस्वरूप मद्र देशका स्वामी हुआ तथा किस कर्मके परिणामस्वरूप परम सौन्दर्यशाली हुआ ? यह बतलाइये ॥ 9 ॥
सूतजी कहते हैं-ऋषियो । पूर्वजन्ममें यह राजा पुरूरवा किसी नदीके तटवर्ती ब्राह्मणोंके एक गाँवमें श्रेष्ठ ब्राह्मण था उस समय भी इसका नाम पुरूरवा ही था।अनघ ! वह मद्र देशका स्वामी जो राजा पुरूरवाके नामसे विख्यात था, उस जन्ममें ब्राह्मणरूपसे राज्यप्राप्तिकी कामनासे युक्त होकर सदा द्वादशी तिथिको उपवास कर भगवान् विष्णुका | पूजन किया करता था। एक बार उसने व्रतोपवास करके शरीरमें तेल लगाकर स्नान कर लिया जिस कारण उसे उपवासके फलस्वरूप मद्र देशका निष्कण्टक राज्य तो प्राप्त हुआ, परंतु उपवासी होकर शरीरमें तेल लगानेके कारण वह | कुरूप होकर पैदा हुआ। इसलिये व्रतोपवासी मनुष्यको प्रयत्नपूर्वक शरीरमें तेल लगाकर स्नान करना छोड़ देना चाहिये; क्योंकि | यह सुन्दरताका विनाशक है। इस प्रकार उसके पूर्वजन्मका जो वृत्तान्त था, वह सब मैंने आप लोगोंको बतला दिया। अब उस | भूपालके मद्रेश्वर हो जानेके बादका चरित्र सुनिये। यद्यपि राजा पुरूरवा सभी राज्यगुणोंसे सम्पन्न था, किंतु रूपहीन होनेके कारण उसके प्रति प्रजाओंका अनुराग नहीं ही था। अतः मद्र नरेशने रूपप्राप्तिकी कामनासे तपस्याका निश्चय करके राज्य भार मन्त्रीको सौंपकर हिमालय पर्वतकी ओर प्रस्थान किया। उस समय तपरूप व्यवसाय ही उसका सहायक था। वह | महायशस्वी नरेश तीर्थस्थानोंका दर्शन करनेकी लालसासे पैदल ही चल रहा था। आगे बढ़नेपर उसने अपने देशकी सीमापर ऐरावती (रावी) नामसे विख्यात अत्यन्त मनोहारिणी नदीको देखा। वह नदी हिमालय पर्वतसे निकली हुई थी, अथाह जलके कारण गम्भीर वेगसे प्रवाहित हो रही थी, उसका जल चन्द्रमाके समान शीतल था और वह बर्फकी राशि - सरीखी उज्ज्वल प्रतीत हो रही थी। बर्फसदृश निर्मल यशवाले राजा | पुरूरवाने उस नदीको देखा ॥ 10 - 19 ॥