मनुजीने कहा- सम्पूर्ण धर्मो के ज्ञाता एवं सर्वशास्त्रविशारद भगवन्! अब आप मुझसे राजाओंके
यात्राकालिक विधानका वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा- जिस समय राजा अपनेको किसी भयंकर युद्धसे घिरा हुआ तथा सीमावर्ती शत्रुको पराजित समझ ले, उस समय उसे यात्रा कर देनी चाहिये। साथ ही जब वह यह समझ ले कि हमारे पास बहुसंख्यक योद्धा हैं, हमारी सेना बहुत बड़ी है और मैं अपने दुर्गकी | रक्षा करनेमें समर्थ हूँ उस समय उसके लिये यात्रा करना उचित है। सीमावर्ती राजाके शत्रु बन जानेपर राजाको यात्रा नहीं करनी चाहिये। उस समय वह पार्श्ववर्ती राजासे अधिक सेना प्राप्त कर यात्रा कर सकता है। राजाको चैत्र या मार्गशीर्षकी पूर्णिमाको दिवि जयार्थ यात्रा करनी चाहिये। चैत्र पूर्णिमाको यात्रा करनेवाला ग्रीष्म ऋतुका दर्शन करेगा तथा शरत्कालीन शीत-भवसे रहित रहेगा। ठीक इसी प्रकारका परिवर्तन मार्गशीर्ष | पूर्णिमाको यात्रा करनेसे होता है अथवा शत्रुके आपत्तिमें फँसनेपर यात्रा करे, पर ऐसा समय अत्यन्त दुर्लभ है।जो दिव्य, अन्तरिक्ष एवं पृथ्वीजन्य उत्पातोंसे पीड़ित, हाथ-पैर आदि छ इन्द्रियोंकी पौड़ासे संतप्त तथा ग्रहोंद्वारा पीड़ित हो, ऐसे शत्रु राजापर विजय यात्रा करनी चाहिये। जिस दिशामें जलती हुई उल्का गिरती है, जिस दिशा में भूकम्पादि उत्पात अधिक होते हैं तथा पुच्छल तारा उदित होता है, उसी दिशामें राजाको विजयार्थ यात्रा करनी चाहिये। जो अपनी सेनाके विद्रोहसे युक्त, दुर्भिक्षसे पीड़ित तथा आन्तरिक विद्रोहसे प्रभावित हो, ऐसे शत्रुपर राजाको तुरंत आक्रमण कर देना चाहिये जिसके देशमें डील, मक्खी, कीचड़ और गंदगीकी बहुतायत हो, जो नास्तिक, मर्यादारहित, अमङ्गलवादी, दुश्चरित्र और पराक्रमहीन हो— ऐसे शत्रुको वशमें कर लेना उचित है॥ 2–11 ॥
जिस राजाकी प्रजा या सेनानायक उसका शत्रु हो गया हो अथवा उसके मन्त्री-सेना आदिमें भी परस्पर विद्वेष हो, वह स्वयं किसी विपत्तिमें पड़ गया हो, ऐसे शत्रुपर अपनी सेनाको चढ़ाईका आदेश दे देना चाहिये। जिस राजाके सैनिकों के अस्त्र एवं अङ्ग प्रस्फुरित न होते हों तथा उन्हें बुरे स्वप्न दीख पड़ते हों, उनपर धावा बोल देना चाहिये। उत्साह एवं पराक्रमसे संयुक्त तथा अपने में अनुराग करनेवाली, संतुष्ट एवं परिपुष्ट विशाल सेनासे सम्पन्न राजा शत्रुओंपर आक्रमण कर दे। जब शुभ अङ्ग फड़कते हों, दुःस्वप्न न दिखायी पड़ते हों तथा शुभ शकुन दिखायी पड़ रहे हों, उस समय शत्रुकी | राजधानीपर चढ़ाई करनी चाहिये। जन्म-नक्षत्र आदि छः नक्षत्रोंके शुद्ध होनेपर, शुभ ग्रहोंकी स्थिति अनुकूल होनेपर तथा प्रश्न करनेपर शुभदायक उत्तर मिलनेपर राजाको शत्रुओंपर आक्रमण करना चाहिये। इस प्रकार दैवबल तथा पराक्रमसे संयुक्त राजा देश एवं कालके अनुसार शत्रुपर चढ़ाई करे। स्थलपर मगर हाथीके वशमें होता है, किंतु जलमें हाथी नाकके वशमें हो जाता है। इसी प्रकार रात्रिमें काक उल्लूके अधीन हो जाता है, किंतु दिनमें उल्लू काकके वशमें होता है। इसी प्रकार राजाको देश एवं कालका विचारकर शत्रुपर विजय यात्रा करनी चाहिये। ll12-18 ll
राजाको वर्षा ऋतु पैदल और हाथियोंकी सेनाको, हेमन्त और शिशिर ऋतुमें अधिक रथ और घोड़ोंसे सम्पन्न सेनाको ग्रीष्म ऋतुमें गधे और ऊँटोंसे भरी हुई सेनाको तथावसन्त और शरद ऋतु चतुरंगिणी सेनाको यात्रामें लगाना उचित है। जिस राजाके पास पैदल सेना अधिक हो, उसे विषम स्थानपर स्थित शत्रुपर आक्रमण करना चाहिये। राजाको चाहिये कि जो शत्रु अधिक वृक्षोंसे युक्त देश में या कुछ कीचड़वाले स्थानपर स्थित हो, उसपर हाथियों की सेनाके साथ चढ़ाई करे। समतल भूमिमें स्थित शत्रुपर रथ और घोड़ोंकी सेना साथ लेकर चढ़ाई करनी चाहिये। जिस शत्रुओंके पास बहुत बड़ी सेना हो, राजाको चाहिये कि उनका आदर-सत्कार करे, अर्थात् उनके साथ संधि कर ले। वर्षा ऋतुमें अधिक संख्यामें गधे और ऊँटोंकी सेना रखनेवाला राजा यदि शत्रुके बन्धनमें पड़ गया हो तो उस अवस्थामें भी उसे वर्षा ऋतुमें चढ़ाई करनी चाहिये। जिस देशमें बरफ गिरती हो, वहाँ राजा ग्रीष्म ऋतुमें आक्रमण करे। पार्थिव ! हेमन्त और शिशिर ऋतुओंका समय काष्ठ तथा घास आदि साधनोंसे युक्त होनेसे यात्राके लिये बहुत अनुकूल रहता है। धर्मज्ञ! इसी प्रकार शरद् और वसन्त ऋतुओंके काल भी अनुकूल माने गये हैं। राजाको देश-काल और त्रिकालज्ञ ज्योतिषीसे यात्राकी स्थितिको भलीभाँति समझकर उसी प्रकार पुरोहित और मन्त्रियोंके साथ परामर्श कर विजय यात्रा करनी चाहिये ।। 19 - 27 ॥