नारदजीने पूछा- चन्द्रभाल! जिस व्रतका अनुष्ठान करनेसे मनुष्य प्रत्येक जन्ममें दीर्घायु, नीरोगता, कुलीनता और अभ्युदयसे युक्त हो राजाके कुलमें जन्म पाता है, उस व्रतका सम्यक् प्रकारसे वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥ श्रीभगवान्ने कहा – नारद! तुमने बड़ी उत्तम बात पूछी है। अब मैं तुम्हें वह गोपनीय व्रत बतलाता हूँ, जो अक्षय स्वर्गकी प्राप्ति करानेवाला है तथा जिसे पुराणवेत्ता विद्वान् ही जानते हैं। इस लोकमें 'रोहिणीचन्द्रशयन' नामक व्रत बड़ा ही उत्तम है। इसमें चन्द्रमाके नामोंद्वारा भगवान् नारायणकी प्रतिमाका पूजन करना चाहिये। जब कभी सोमवार के दिन पूर्णिमा तिथि हो अथवा पूर्णिमाको रोहिणीनक्षत्र हो, उस दिन मनुष्य सबेरे पञ्चगव्य और सरसोंके दानोंसे युक्त जलसे स्नान करे तथा विद्वान् पुरुष 'आप्यायस्व0 ' इत्यादि मन्त्रको एक सौ आठ बार जपे । यदि शूद्र भी इस व्रतको करे तो अत्यन्त भक्तिपूर्वक 'सोमाय नमः', 'वरदाय नमः', 'विष्णवे नमः - इन मन्त्रोंका जप करे और पाखण्डियों-विधर्मियोंसे बातचीत न करे। जप करनेके पश्चात् अपने घर आकर फल फूल आदिके द्वारा भगवान् श्रीमधुसूदनकी पूजा करे। साथ ही चन्द्रमाके नामोंका उच्चारण करता रहे। 'सोमाय नमः' से भगवान्के दक्षिण चरण और 'शान्ताय नमः ' से वाम चरणका, 'अनन्तधाम्ने नमः' का उच्चारण करके उनके घुटनों और पिंडलियोंका 'जलोदराय नमः ' से दोनों जाँघोंका और 'अनन्तबाहवे नमः' से जननेन्द्रियका पूजन करे। 'कामसुखप्रदाय नमो नमः' से चन्द्रस्वरूप भगवान्के कटिभागकी सदा अर्चना करनी चाहिये। इसी प्रकार 'अमृतोदराय नमः' से उदरका और 'शशाङ्काय नमः' से नाभिका पूजन करे। 'चन्द्राय नमोऽस्तु' से कण्ठका और 'द्विजानामधिपाय नमः 'से दाँतोंका पूजन करना चाहिये। 'चन्द्रमसे नमः' से | मुँहका पूजन करे 'कुमुदन्तवनप्रियाय नमः' सेओठोंका, 'वनौषधीनां नाथाय नमः' से नासिकाका, 'आनन्दबीजाय नमः 'से दोनों का 'इन्दीवरव्यासकराय नमः' से चन्द्रस्वरूप भगवान् श्रीकृष्णके कमल-सदृश दोनों नेत्रोंका, 'समस्ताध्वरवन्दिताय दैत्यनिपूदनाय नमः' से दोनों कानोंका, 'उदधिप्रियाय नमः 'से चन्द्रमाके ललाटका, सुपुत्राधिपतये नमः' से केशोंका पूजन करे। 'शशाङ्काय नमः' से मस्तकका और 'विश्वेश्वराय नमः' से भगवान् मुरारिके किरोटका पूजन करे। फिर 'रोहिणिनामलक्ष्म्यै सौभाग्यसौख्यामृतसागराव पद्मश्रियै नमः - रोहिणी नाम धारण करनेवाली सौभाग्य और सुखरूप अमृतके समुद्र लक्ष्मीको नमस्कार है- इस मन्त्रका उच्चारण कर सुगन्धित पुष्प, नैवेद्य और धूप आदिके द्वारा इन्दुपत्नी रोहिणीदेवीका पूजन करे ।। 2-136॥
इसके बाद रात्रिके समय भूमिपर शयन करे और सबेरे उठकर स्नानके पश्चात् 'पापविनाशाय नमः' का उच्चारण करके ब्राह्मणको घृत और सुवर्णसहित जलसे भरा कलश दान करे। फिर दिनभर उपवास करनेके पश्चात् गोमूत्र पीकर मांसवर्जित एवं खारे नमकसे रहित अन्नके अट्ठाईस ग्रास, दूध और घीके साथ भोजन करे। तदनन्तर दो घड़ीतक इतिहास, पुराण आदिका श्रवण करे। नारद। चन्द्रस्वरूप भगवान् विष्णुको कदम्ब, नील कमल, केवड़ा, जाती-पुष्प, कमल, शतपत्रिका, बिना कुम्हलाये कुब्जके फूल, सिन्दुवार, चमेली, अन्यान्य श्वेत पुष्प, करवीर पुष्प तथा चम्पा—ये ही फूल चढ़ाने चाहिये। उपर्युक्त फूलोंकी जातियोंमेंसे एक एकको बाण आदि महीनोंमें क्रमशः अर्पण करे। जिस महीनेमें व्रत प्रारम्भ किया जाय, उस समय जो भी पुष्प सुलभ हों, उन्होंके द्वारा श्रीहरिका पूजन करना चाहिये ॥14- 17 ॥ इस प्रकार एक वर्षतक इस व्रतका विधिवत् अनुष्ठान करके समाप्तिके समय व्रतीको चाहिये कि वह दर्पण तथा शयनोपयोगी सामग्रियोंके साथ शय्यादान करे। रोहिणी और चन्द्रमा- दोनोंकी सुवर्णमयी मूर्ति बनवाये उनमें चन्द्रमा छ अङ्गुलके और रोहिणी चार अङ्गुलकी होनी चाहिये।आठ मोतियोंसे युक्त तथा दो श्वेत वस्त्रोंसे आच्छादित उन प्रतिमाओंको अक्षतसे भरे हुए काँसेके पात्रमें रखकर दुग्धपूर्ण कलशके ऊपर स्थापित कर दे और पूर्वाह्नके समय अगहनी चावल, ईख और फलके साथ उसे मन्त्रोच्चारणपूर्वक दान कर दे। फिर जिसका मुख (थुन) सुवर्णसे और खुर चाँदीसे मढ़े गये हों, ऐसी वस्त्र और दोहिनीके साथ दूध देनेवाली घेत रंगकी गौ तथा सुन्दर शङ्ख प्रस्तुत करे। फिर उत्तम गुणोंसे युक्त ब्राह्मण दम्पतिको बुलाकर उन्हें आभूषणोंसे अलङ्कृत करे तथा मनमें यह भावना रखे कि ब्राह्मण-दम्पतिके रूपमें ये रोहिणीसहित चन्द्रमा ही विराजमान हैं। तत्पश्चात् इनकी इस प्रकार प्रार्थना करे- 'श्रीकृष्ण! जिस प्रकार रोहिणी देवी चन्द्रस्वरूप आपकी शय्याको छोड़कर अन्यत्र नहीं जाती हैं, उसी तरह मेरा भी इन विभूतियोंसे कभी विछोह न हो। चन्द्रदेव! आप ही सबको परम आनन्द और मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं। आपकी कृपासे मुझे भोग और | मोक्ष- दोनों प्राप्त हों तथा आपमें मेरी सदा अनन्य भक्ति बनी रहे।' (इस प्रकार विनय कर शय्या, प्रतिमा तथा धेनु आदि सब कुछ ब्राह्मणको दान कर दे।) ॥ 18-24 ।।
निष्याप नारद! जो संसारसे भयभीत होकर मोक्ष पानेकी इच्छा रखता है, उसके लिये वही एक व्रत सर्वोत्तम है यह रूप, आरोग्य और आयु प्रदान करनेवाला है। मुने। यही पितरोंको सर्वदा प्रिय है जो पुरुष इसका अनुष्ठान करता है, वह त्रिभुवनका अधिपति होकर इक्कीस सौ कल्पतक चन्द्रलोकमें निवास करता है। उसके बाद विद्युत् होकर मुक्त हो जाता है। अथवा जो स्त्री इस रोहिणीचन्द्रशयन नामक व्रतका अनुष्ठान करती है, वह भी उसी पूर्वोक्त फलको प्राप्त होती है। साथ ही वह आवागमनसे मुक्त हो जाती है। चन्द्रमाके नामकीर्तनद्वारा भगवान् श्रीमधुसूदनकी पूजाका यह प्रसङ्ग जो नित्य पढ़ता अथवा सुनता है, उसे भगवान् उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं तथा वह भगवान् श्रीविष्णु के धाममें जाकर देवसमूहके द्वारा पूजित होता है ।। 25-28 ॥