ऋषियोंने पूछा- सूतजी ! अब आप हमलोगोंको राजभवन आदिके संनिवेशकी और उनके बनाये जानेकी विधि विस्तारपूर्वक बतलाइये। साथ ही वास्तु क्या कहलाता है, इसपर भी प्रकाश डालिये ॥ 1 ॥
सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित् भगवान् शंकर, इन्द्र, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश्वर, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति- ये अठारह वास्तुशास्त्रके उपदेष्टा माने गये हैं। जिसे मत्स्यरूपधारी भगवान्ने संक्षेपमें मनुके प्रति उपदेश किया था,उसी श्रेष्ठ वास्तुशास्त्रको मैं आपलोगों से बतला रहा है। प्राचीन कालमें भयंकर अन्धक- वधके समय विकराल रूपधारी भगवान् शंकरके ललाटसे पृथ्वीपर स्वेदविन्दु गिरे थे। उससे एक भीषण एवं विकराल मुखवाला उत्कट प्राणी उत्पन्न हुआ। वह ऐसा प्रतीत होता था मानो सातों द्वीपोंसहित वसुंधरा तथा आकाशको निगल जायगा। तत्पश्चात् वह पृथ्वीपर गिरे हुए अन्धकोंके रक्तका पान करने लगा। इस प्रकार वह उस युद्धमें पृथ्वीपर गिरे हुए सारे रक्तको पान कर गया। किंतु इतनेपर भी जब वह तृप्त न हुआ, तब भगवान् सदाशिव के सम्मुख अत्यन्त घोर तपस्यामें संलग्न हो गया। भूखसे व्याकुल होनेपर जब वह पुनः त्रिलोकीको भक्षण करनेके लिये उद्यत हुआ, तब उसकी तपस्यासे संतुष्ट होकर भगवान् शंकर उससे बोले- 'निष्पाप ! तुम्हारा कल्याण हो, अब तुम्हारी जो अभिलाषा हो, वह वर माँग लो' ॥ 2- 10॥
तब उस प्राणीने शिवजीसे कहा- 'देवदेवेश! मैं तीनों लोकोंको ग्रस लेनेके लिये समर्थ होना चाहता हूँ।' इसपर त्रिशूलधारी शिवजीने कहा- 'ऐसा ही होगा"। फिर तो वह प्राणी अपने विशाल शरीरसे स्वर्ग, सम्पूर्ण भूमण्डल और आकाशको अवरुद्ध करता हुआ पृथ्वीपर आ गिरा। तब भयभीत हुए देवताओं तथा ब्रह्मा, शिव, दानव, दैत्य और राक्षसोंद्वारा वह स्तम्भित कर दिया गया। उस समय जिसने उसे जहाँपर आक्रान्त कर रखा था, वह वहीं निवास करने लगा। इस प्रकार सभी देवताओंके निवास करनेके कारण वह वास्तु नामसे विख्यात हुआ। तब उस दबे हुए प्राणीने भी सभी देवताओंसे निवेदन किया-'देवगण! आपलोग मुझपर प्रसन्न हों आपलोगोंद्वारा में दबाकर निश्चल बना दिया गया हूँ। भला इस प्रकार अवरुद्ध कर दिये जानेपर नीचे मुख किये हुए मैं किस तरह कबतक स्थित रह सकूँगा।' उसके ऐसा निवेदन करनेपर ब्रह्मा आदि देवताओंने कहा- 'वास्तुके प्रसङ्गमें तथा वैश्वदेवके अन्तमें जो बलि दी जायगी, वह निश्चय ही तुम्हारा आहार होगी। वास्तु शान्तिके लिये जो यज्ञ होगा, वह भी तुम्हें आहारके रूपमें प्राप्त होगा। यज्ञोत्सवमें दो गयो बलि भी तुम्हे आहाररूपमें प्राप्त | होगी। वास्तु पूजा न करनेवाले भी तुम्हारे आहार होंगे।अज्ञानसे किया गया यज्ञ भी तुम्हें आहाररूपमें प्राप्त होगा।' ऐसा कहे जानेपर वह वास्तु नामक प्राणी प्रसन्न हो गया। इसी कारण तबसे शान्तिके लिये वास्तु यज्ञका प्रवर्तन हुआ ॥ 11-19॥