मनुने पूछा- भगवन्! इस भूतलपर कौन ऐसा उपवास या व्रत है, जो मनुष्यके अभीष्ट वस्तुओंके वियोगसे उत्पन्न शोकसमूहसे उद्धार करनेमें समर्थ, धन-सम्पत्तिकी वृद्धि करनेवाला और संसार - भयका नाशक है ॥ 1 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा— राजर्षे! तुमने जिस व्रतके विषयमें प्रश्न किया है, यह समस्त जगत्को प्रिय तथा इतना महत्त्वशाली है कि देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। यद्यपि इन्द्र, असुर और मानव भी उसे नहीं जानते, तथापि तुम जैसे भक्तिमान्के प्रति मैं अवश्य इसका वर्णन करूँगा। उस पुण्यप्रद व्रतका नाम विशोकद्वादशी व्रत है। विद्वान् व्रतीको आश्विनमासमें दशमी तिथिको अल्प आहार करके नियमपूर्वक इस व्रतका आरम्भ करना चाहिये। पुनः एकादशीके दिन व्रती मानव उत्तराभिमुख अथवा पूर्वाभिमुख बैठकर दातून करे, फिर (स्नान आदिसे निवृत्त होकर) निराहार रहकर भगवान् केशव और लक्ष्मीकी विधिपूर्वक भलीभांति पूजा करे और 'दूसरे दिनभोजन करूँगा'- ऐसा नियम लेकर रात्रिमें शयन करे। प्रातः काल उठकर सर्वोषधि और पञ्चगव्य मिले हुए जलसे स्नान करे तथा श्वेत वस्त्र और श्वेत पुष्पोंकी माला धारण करके भगवान् विष्णुकी कमल पुष्पोद्वारा पूजा करे (पूजनकी विधि इस प्रकार है) 'विशोकाय नमः' से दोनों चरणोंका, 'वरदाय नमः' से दोनों जङ्घाओंकर, 'श्रीशाय नमः 'से दोनों जानुओंका 'जलशायिने नमः ' से दोनों करूओंका, 'कन्दर्पाय नमः 'से गुरूप्रदेशका 'माधवाय नमः' से कटिप्रदेशका 'दामोदराय नमः' से उदरका, 'विपुलाय नमः 'से दोनों पार्श्वभागोंका, 'पद्मनाभाय नमः' से नाभिका, 'मन्मथाय नमः' से हृदयका, 'श्रीधराय नमः' से विष्णुके वक्षःस्थलका 'मधुजिते नमः 'से दोनों हाथोंका, 'चक्रिणे नमः 'सेब भुजाका, 'गदिने नमः' से दाहिनी भुजाका, 'वैकुण्ठाय नमः 'से कण्ठका, 'यज्ञमुखाय नमः' से मुखका, 'अशोकनिधये नमः 'से नासिकाका, 'वासुदेवाय नमः 'से दोनों नेत्रोंका, 'वामनाय नमः' से ललाटका, 'हरये नमः' से दोनों भौंहोंका, 'माधवाय नमः' से बालोंका 'विश्वरूपिणे नमः' से किरीटका और 'सर्वात्मने नमः' से सिरका पूजन करना चाहिये ॥ 2 – 11 ॥
इस प्रकार हर्षपूर्वक फल, पुष्पमाला और चन्दन आदिसे भगवान् गोविन्दका पूजन करनेके पश्चात् मण्डल बनाकर वेदीका निर्माण कराये। वह वेदी बीस अंगुल लम्बी चौड़ी, चारों ओरसे चौकोर, उत्तरकी ओर ढालू, चिकनी, सुन्दर और तीन ओर वप्र ( परिधि) से युक्त हो वे वप्र तीन अङ्गुल ऊँचे और दो अङ्गुल चौड़े होने चाहिये। वेदीके ऊपर आठ अङ्गुलकी दीवाल बनायी जाय। तत्पश्चात् बुद्धिमान् व्रती सूपमें नदीको बालुकासे लक्ष्मीकी मूर्ति अङ्कित करे और उस सूपको वेदीपर रखकर 'देव्यै नमः', 'शान्त्यै नमः', 'लक्ष्म्यै नमः', 'श्रियै नमः', 'पुष्ट्यै नमः', 'तुष्ट्यै नमः', 'वृष्ट्यै नमः', 'हृष्टबै नमः' के उच्चारणपूर्वक लक्ष्मीकी अर्चना करे और यों प्रार्थना करे- 'विशोका (लक्ष्मीदेवी) मेरे दुःखोंका नाश करें, विशोका मेरे लिये वरदायिनी हों, विशोका मुझे धन-सम्पत्ति दें और विशोका मुझे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्रदान करें। तदनन्तर श्वेत वस्त्रोंसे सूपको परिवेष्टित कर नाना प्रकारके फलों, वस्त्रों और स्वर्णमय कमलसे लक्ष्मीकी पूजा करे चतुर व्रती सभी रात्रियोंमें कुशोदक पान करे और सारी रात नाच-गान आदिका आयोजनकरावे। तीन पहर रात व्यतीत होनेपर व्रती मनुष्य स्वयं नींद त्यागकर उठ पड़े और अपनी शक्तिके अनुसार शय्यापर सोते हुए तीन या एक द्विज-दम्पतिके पास जाकर वस्त्र, पुष्पमाला और चन्दन आदिसे | 'जलशायिने नमोऽस्तु'- जलशायी भगवान्को नमस्कार है— यों कहकर उनकी पूजा करे। इस प्रकार रातमें गीत-वाद्य आदि कराकर जागरण करे तथा प्रातः काल स्नान कर पुनः द्विज-दम्पतिका पूजन करे और कृपणता छोड़कर अपनी सामर्थ्यके अनुकूल उन्हें भोजन करावे। फिर स्वयं भोजन करके पुराणोंकी कथाएँ सुनते हुए वह दिन व्यतीत करे। प्रत्येक मासमें इसी विधिसे | सारा कार्य सम्पन्न करना चाहिये ॥ 12–233॥
इस प्रकार व्रतकी समाप्तिके अवसरपर गद्दा, चादर, तकिया आदि उपकरणोंसे युक्त एक सुन्दर शय्या गुड- धेनुके साथ दान करके यों प्रार्थना करे- 'देवेश ! जिस प्रकार लक्ष्मी आपका परित्याग करके अन्यत्र नहीं जातीं, उसी प्रकार मुझे सदा सौन्दर्य, नीरोगता और निःशोकता प्राप्त हो। जैसे लक्ष्मी कहीं भी आपसे वियुक्त होकर नहीं प्रकट होतीं, वैसे ही मुझे भी विशोकता और | भगवान् केशवके प्रति उत्तम भक्ति प्राप्त हो।' वैभवकी अभिलाषा रखनेवाले व्रतीको इस मन्त्रके उच्चारणके साथ गुड-धेनुसहित शय्या और लक्ष्मीसहित सूप दान कर देना चाहिये। इस व्रतमें कमल, करवीर ( कनेर), बाण (नीलकुसुम या अगस्त्य वृक्षका पुष्प), ताजा (बिना कुम्हलाया हुआ) कुङ्कुम, केतकी (केवड़ा), सिन्दुवार, मल्लिका, गन्धपाटला, कदम्ब, कुब्जक और | जाती-ये पुष्प सदा प्रशस्त माने गये हैं । ll 24-28 ॥