गर्गजीने कहा- ब्रह्मन् ! जिन ग्रामोंमें दैव-प्रेरित वृक्ष अपने-आप रोते हँसते, प्रचुर परिमाणमें रस बहाते हुए किसी रोग अथवा वायुके बिना डालियाँ गिराते हैं, तीन ही वर्षके वृक्ष असमयमें फलने-फूलने लगते हैं, अन्यत्र कोई-कोई वृक्ष ऋतुकालकी भाँति अपनेको फलों और पुष्पोंसे लदे हुए दिखलाते हैं तथा दुग्ध, तैल, रक्त, मधु और जल बहाते हैं, किसी रोगके बिना ही सहसा सूख जाते हैं अथवा सूखे हुए पुनः अङ्कुरित हो जाते हैं, गिरे हुए उठकर खड़े हो जाते हैं तथा खड़े हुए गिर पड़ते हैं, वहाँ होनेवाला परिणाम और फल में | आपको बतला रहा हूँ, सुनिये ॥ 1-43 ॥ब्रह्मन् ! वृक्षोंके रुदन करनेपर व्याधियाँ फैलती हैं, हँसनेपर देशमें संकटकी वृद्धि होती है, शाखाओंके गिरनेसे संग्राममें योद्धाओंका विनाश होता है, असमयमें फूले हुए वृक्ष बालकोंकी मृत्यु सूचित करते हैं, वृक्षसमूहोंमेंसे किसी-किसीके फलने-फूलनेपर अपने राष्ट्रमें भेद उत्पन्न होता है, गायके दूध गिरनेसे चारों | ओर विनाश उपस्थित होता है, तेलका गिरना दुर्भिक्षका | लक्षण है, मदिराके गिरनेसे वाहनोंका विनाश होता है, रक्त गिरनेपर संग्राम बतलाना चाहिये, मधु चूनेसे व्याधियाँ फैलती हैं, जल गिरनेसे वृष्टि नहीं होती। किसी रोगके बिना वृक्षोंका सूख जाना दुर्भिक्षका लक्षण जानना चाहिये। सूखे हुए वृक्षसे अंकुर फूटनेपर वीर्य (पराक्रम) और अन्नकी हानि होती है। गिरे हुए वृक्षोंके उठनेपर भेदकारी भय होता है तथा एक स्थानसे दूसरे स्थानपर जानेसे देश - भङ्ग होता है, वृक्षोंके अकस्मात् जलने तथा रुदन करनेपर सम्पत्तिका विनाश होता है। ये उपद्रव यदि पूजित वृक्षोंमें होते हैं तो अवश्य ही राजापर विपत्तियाँ आती हैं। वृक्षोंके फलों तथा फूलोंमें विकार होनेपर राजाकी मृत्यु कहनी चाहिये। इसी प्रकार अन्यान्य वृक्षोंमें भी उपद्रवके लक्षणोंके दिखायी पड़नेपर उत्साही ब्राह्मण उस वृक्षको ऊपरसे ढककर चन्दन और पुष्पमालासे भूषित करे और पापकी शान्तिके लिये वृक्षके ऊपर छत्र लगाये। तदनन्तर शिवकी पूजा करे और पशुको 'रुद्रेभ्यः 0 ' इस संकल्पसे निवेदित कर वृक्षोंके नीचे हवन करनेके पश्चात् शिवका जप करे। फिर मधु तथा घृतयुक्त खीरसे ब्राह्मणोंको संतुष्ट कर उन्हें पृथ्वीका दान दे और उस पापकी शान्तिके लिये गीत तथा नृत्यका आयोजन कराकर भगवान् शंकरकी अर्चना करे ॥ 5- 15॥