गजीने कहामुने। अतिवृष्टि और अनावृष्टि- ये दोनों दुर्भिक्षादिजन्य भयका कारण मानी गयी है। वर्षा ऋतुके बिना दिनमें अनन्त वृष्टिका होना अत्यन्त भयानक है। बादलरहित आकाशमें विकृत हुई वृष्टिको राजाकी मृत्युका कारण जानना चाहिये। शीतकालमें गर्मी एवं ग्रीष्ममें सर्दी पड़नेसे राजाओंपर शत्रुपक्षसे भय होता है। जिस स्थानपर आकाशसे रक्तकी वर्षा होती है वहाँ शस्त्रभय प्राप्त होता है। अङ्गार और धूलिकी वृष्टि होनेपर वह नगर विनष्ट हो जाता है। मज्जा, हड्डी, तेल और मांसकी वृष्टि होनेपर प्रजावर्गमें मृत्युका भय उपस्थित होता है। आकाशसे फल, पुष्प तथा अन्नकी वृष्टि शत्रुपक्षसे अत्यन्त भयका द्योतन करती है। धूलि, जन्तु और उपलोंके गिरनेसे रोगजन्य भय प्राप्त होता है। रुक-रुककर अन्नकी वृष्टि होनेसे फसलके भयकी वृद्धि होती है। सूर्यके बादल एवं धूलिसे रहित रहनेपर जब परछाई नहीं दीखती अथवा विपरीत दिखायी पड़ती है, तब सारे देशको भय प्राप्त होता है। बादलरहित रात्रिमें दक्षिण अथवा उत्तर दिशामें श्वेत रंगका इन्द्रधनुष, उल्कापात, दिशाओंमें दाह, सूर्य तथा चन्द्रमामें मण्डल तथा गन्धर्वनगर दिखायी पड़े तो उस समय देशपर शत्रु पक्षको सेनाका आक्रमण और देशमें विविध उपद्रवोंके संघटित होनेकी सम्भावना कहनी चाहिये। द्विजेन्द्र ऐसे अवसरपर सूर्य, चन्द्रमा, मेघ और वायुके उद्देश्यसे विधिपूर्वक यज्ञ करना चाहिये और इस पापके विनाशके लिये ब्राह्मणोंको धन, गौ तथा सुवर्णकी दक्षिणा देनी चाहिये ॥ 1-9॥