सूतजी कहते हैं-ऋषियों! ऐक्ष्वाकी (माद्री) ने शूर (शूरसेन) नामक एक अद्भुत पुत्रको जन्म दिया, जो आगे चलकर ईदुष (देवमीढुष) नामसे विख्यात हुआ। पुरुषार्थी शूरके सम्पर्कसे भोजाके गर्भसे दस पुत्रों और पाँच सुन्दरी कन्याओंकी उत्पत्ति हुई। पुत्रोंमें सर्वप्रथम महाबाहु वसुदेव उत्पन्न हुए, जिनकी आनकदुन्दुभि नामसे भी प्रसिद्धि हुई। उसके बाद | देवभाग- ( देवमार्ग) का जन्म हुआ। तत्पश्चात् पुनः देवश्रवा, अनाधृष्टि, शिनि, नन्द, सृञ्जय, श्याम, शमीक और संयूप पैदा हुए। कन्याओंके नाम हैं- श्रुतकीर्ति, पृथा, श्रुतादेवी, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी। ये पाँचों शूरवीर पुत्रोंकी माताएँ हुईं। कृतकी पत्नी श्रुतदेवीने सुग्रीव नामक पुत्रको जन्म दिया। केकय देशकी राजमहिषी श्रुतकीर्तिके गर्भसे राजा अनुव्रतने जन्म लिया। चेदि-नरेशकी पत्नी श्रुतश्रवाके गर्भसे एक सुनीथ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो अनेकों प्रकारके धर्मोका | आचरण करनेवाला एवं शत्रुओंका विनाशक था। तत्पश्चात् शूरने अपनी पृथा नाम्नी कन्याको मित्रतावश वृद्ध राजा कुन्तिभोजको पुत्रीरूपमें दे दिया। इसी कारण वसुदेवकी बहन यह पृथा कुन्ती नामसे विख्यात हुई। उसे वसुदेवने पाण्डुको (पत्नीरूपमें) प्रदान किया था। उस अनिन्द्यसुन्दरी पाण्डु-पत्नी कुन्तीने पाण्डुकी वंशवृद्धिके लिये (पतिकी आज्ञासे) महारथी देवपुत्रोंको जन्म दिया था। उनमें धर्मके संयोगसे युधिष्ठिर पैदा हुए, वायुके सम्पर्कसे वृकोदर (भीमसेन) - का जन्म हुआ और इन्द्रके सकाशसे इन्द्रके ही समान पराक्रमी धनञ्जय (अर्जुन) की उत्पत्ति हुई। साथ ही अश्विनीकुमारोंके संयोगसे माद्रवती (माद्री) के गर्भसे रूप, शील एवं सद्गुणोंसे समन्वित नकुल और सहदेव पैदा हुए ऐसा हमलोगोंने सुना है ॥1-10 ॥आनकदुन्दुभि (वसुदेव) के संयोगसे रोहिणी (उनकी चौबीस पत्रियोंमें प्रथम ) ने विश्वविख्यात ज्येष्ठ पुत्र राम ( बलराम) को, तत्पश्चात् प्रिय पुत्र सारण, दुर्दम, दमन, सुभु, पिण्डारक और महाहनुको प्राप्त किया। (उनकी दूसरी पत्नी पौरवीके भी भद्र, सुभदादि पुत्र हुए।) उसी समय रोहिणोके गर्भसे चित्रा और अक्षी नामवाली (अथवा सुन्दर नेत्रोंवाली) दो कन्याएँ भी पैदा हुई। वसुदेवजीके सम्पर्कसे देवकीके गर्भसे सुषेण, कीर्तिमान्, उदार, भद्रसेन, भद्रवास और छठा भद्रविदेह नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे, जिन्हें कंसने मार डाला। फिर उसी समय (देवकीके गर्भसे) आयुष्मान् | लोकनाथ महाबाहु प्रजापति श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए। श्रीकृष्णके बाद उनकी छोटी बहन शुभभाषिणी सुभद्रा पैदा हुई। | तदनन्तर देवकीके गर्भसे महान् तेजस्वी एवं महायशस्वी शूरी नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। ताम्राके गर्भसे शौरिकुलका उद्वहन करनेवाला सहदेव नामक पुत्र पैदा हुआ। देवरक्षिताने उपासङ्गधर नामक पुत्रको और एक सुन्दरी कन्याको, जिसे कंसने मार डाला, उत्पन्न किया। विजय, रोचमान, वर्धमान और देवल- ये सभी महान् आत्मबलसे सम्पन्न पुत्र उपदेवीके गर्भसे पैदा हुए थे। महात्मा अवगाह वृकदेवीके गर्भसे उत्पन्न हुए। | इसी वृकदेवीके गर्भसे नन्दन नामक एक और पुत्र पैदा हुआ था ॥11- 18 ॥
राजन्! देवकीने अपने सातवें पुत्र मदनको तथा संग्राममें अजेय एवं महान् भाग्यशाली गवेषणको जन्म दिया था। इससे पूर्व श्रद्धादेवीके साथ विहारके अवसरपर वनमें विचरण करते हुए शूरनन्दन वसुदेवने एक वैश्य-कन्याके उदरमें गर्भाधान किया, जिससे कौशिक नामक ज्येष्ठ पुत्र उत्पन्न हुआ। वसुदेवजीकी (नवीं) सुतनु और (दसवीं) रथराजी नामकी दो पत्नियाँ और थीं। उनके गर्भसे वसुदेवके पुण्ड्र और कपिल नामक दो पुत्र तथा महान् बल-पराक्रमसे सम्पन्न सौभद्र और भव नामक दो पुत्र और उत्पन्न हुए थे। उनमें जो ज्येष्ठ था,वह जरा नामक निषाद हुआ, जो महान् धनुर्धर था । देवभागका पुत्र उद्धव नामसे प्रसिद्ध था। देवश्रवाके प्रथम पुत्रको पण्डित नामसे पुकारा जाता था। यशस्विनी ऐक्ष्वाकीने अनाधृष्टिके संयोगसे शत्रुसंहारक निधूतसत्त्व | नामक पुत्रको प्राप्त किया। निधूतसत्त्वसे श्राद्धकी उत्पत्ति हुई। संतानहीन करूषपर प्रसन्न होकर श्रीकृष्णने उसे एक सुचन्द्र नामक पुत्र प्रदान किया था, जो महान् भाग्यशाली, पराक्रमी और महाबली था। जाम्बवतीके चारुदेष्ण और साम्ब ये दोनों पुत्र उत्तम लक्षणोंसे युक्त, | पराक्रमी और महान् बलसम्पन्न थे। नन्दनके तन्तिपाल और तन्तिनामक दो पुत्र हुए। शमीकके चारों पुत्र विराज, धनु, श्याम और सृज्ञ्जय अत्यन्त पराक्रमी और महाबली थे। इनमें श्याम तो संतानहीन हो गया और शमीक भोजवंशके आचार-व्यवहारकी निन्दा करता हुआ वनमें चला गया, वहाँ आराधना करके उसने राजर्षिकी पदवी प्राप्त की। जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णके इस जन्म एवं अभ्युदयका नित्य कीर्तन (पाठ) अथवा श्रवण करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है । ll 19 – 29 ॥