सूतजी कहते हैं-द्विजवरी। अब मैं शाकद्वीपका निश्चितरूपसे यथार्थ वर्णन कर रहा हूँ। आपलोग मेरे कथनानुसार शाकद्वीपके विषयमें जानकारी प्राप्त करें। शाकद्वीपका विस्तार जम्बूद्वीपके विस्तारसे दुगुना है और चारों ओरसे उसका फैलाव विस्तारसे भी तिगुना है। उस द्वीपसे यह लवणसागर घिरा हुआ है। शाकद्वीपमें अनेकों पुण्यमय जनपद हैं। वहाँ के निवासी लम्बी आयु भोग कर मरते हैं। भला, उन क्षमाशील एवं तेजस्वी जनोंके प्रति दुर्भिक्षको सम्भावना कहाँसे हो सकती है।इस द्वीपमें भी मणियोंसे विभूषित श्वेत रंगके सात पर्वत हैं। शाकद्वीप आदि तीन द्वीपोंमें सात-सात पर्वत हैं, जो चारों दिशाओंमें सीधे फैले हुए हैं। ये ही वहाँ वर्षपर्वत कहलाते हैं। ये रत्नाकराद्रि नामवाले वर्षपर्वत ऊँचे शिखरोंसे युक्त तथा वृक्षोंसे सम्पन्न हैं। ये द्वीप विस्तारके परिमाणको समानतामें चारों दिशाओंमें फैले हुए हैं और एक और क्षीरसागरतक तथा दूसरी ओर लवणसागरतक पहुँच गये हैं। अब मैं शाकद्वीपके सातों दिव्य महापर्वतोंका वर्णन कर रहा हूँ। उनमें पहला पर्वत मेरु कहा जाता है, जो देवो, ऋषियों और गन्धवसे सुसेवित है। वह स्वर्णमय पर्वत पूर्व दिशामें फैला हुआ है। उसका दूसरा नाम 'उदयगिरि' है। वहाँ मेघगण वृष्टि करनेके लिये आते हैं और (जल बरसाकर) चले जाते हैं। उसके पार्श्वभागमें सम्पूर्ण औषधियोंसे सम्पन्न जलधार नामक अत्यन्त विशाल पर्वत है। वह चन्द्र नामसे भी विख्यात है। उसी पर्वतसे इन्द्र नित्य अधिक-से-अधिक जल ग्रहण करते हैं ॥ 1-10॥
वहाँ महान् समृद्धिशाली नारद नामक पर्वत है, जिसे दुर्गशैल भी कहते हैं। पूर्वकालमें ये दोनों नारद और दुर्गशैल पर्वत यहीं उत्पन्न हुए थे। उसके बाद श्याम नामक अत्यन्त विशाल पर्वत है, जहाँ पूर्वकालमें ये सारी प्रजाएँ श्यामलताको प्राप्त हो गयी थीं। श्यामपर्वतके सदृश काले रंगवाला वहीं दुन्दुभि पर्वत भी है, जिसपर प्राचीनकालमें देवताओंद्वारा दुन्दुभिके बजाये जानेपर उसके शब्दसे ही (शत्रुओंको मृत्यु हो जाती थी इसके अन्त: प्रदेशमें रखोंके समूह भरे पड़े हैं और यह सेमलके वृक्षोंसे सुशोभित है उसके बाद महान् अस्ताचल है, जो रजतमय है। उसे सोमक भी कहते हैं। इसी पर्वतपर पूर्वकालमें गरुड़ने अपनी माताके हितार्थ देवताओंद्वारा संचित किये गये अमृतका अपहरण किया था। उसके बाद आम्बिकेय नामक महापर्वत है, जिसे सुमना भी कहते हैं। इसी पर्वतपर वराहभगवान्ने हिरण्याक्षका वध किया था। आम्बिकेय पर्वतके बाद सम्पूर्ण ओषधियोंसे परिपूर्ण एवं स्फटिककी शिलाओंसे व्यास परम रमणीय महान् पर्वत है, जो विभ्राज नामसे विख्यात है। इससे अनि विशेष उद्दीप्त होती है, इसीकारण इसे विभ्राज कहते हैं। इसीको 'केशव' भी कहते हैं यहाँसे वायुकी गति प्रारम्भ होती है। 11 - 184 द्विजवरो! अब मैं उन पर्वतोंके वर्षोंका यथार्थरूपसे नामनिर्देशानुसार आनुपूर्वी वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये। जिस प्रकार वहाँके पर्वत दो नामवाले हैं, उसी तरह वर्षोंके भी दो-दो नाम हैं। उदयपर्वतके वर्ष उदय और जलधार नामसे प्रसिद्ध है। उनमें जो पहला उदय वर्ष है, वह गतभय नामसे अभिहित होता है। दूसरे जलधार पर्वतके वर्षको सुकुमार कहते हैं वही शैशिर वर्षक नामसे भी विख्यात है। नारदपर्वतके वर्षका नाम कौमार है उसीको सुखोदय भी कहते हैं। श्यामपर्वतका वर्ष अनीचक्र नामसे कहा जाता है। उसी मङ्गलमय वर्षको मुनिगण आनन्दक नामसे पुकारते हैं। सोमक पर्वतके कल्याणमय वर्षको कुसुमोत्कर नामसे जानना चाहिये। उसी सोमक नामवाले वर्षको असित भी कहा जाता है। आम्बिकेय पर्वतके वर्ष मैनाक और क्षेमक नामसे प्रसिद्ध हैं। (सातवें केसर पर्वतके वर्षका नाम) विभ्राज है। वही ध्रुव नामसे भी कहा जाता है ॥ 19-25 ॥
शाकद्वीपका विस्तार तथा लम्बाई-चौड़ाई जम्बूद्वीपके परिमाणसे अधिक है। (यह ऊपर बतला चुके हैं।) इस द्वीपके मध्यभागमें शाक नामका एक महान् वनस्पति है। इस द्वीपकी प्रजाएँ महापुरुषोंका अनुगमन करनेवाली हैं। इन वर्षोंमें देवता गन्धर्व, सिद्ध और चारण विहार करते हैं और उनकी रमणीयता देखते हुए प्रजाओंके साथ क्रीडा करते हैं। इस द्वीपमें चारों वर्णोंकी प्रजाओंसे सम्पन्न सुन्दर जनपद हैं। इनमें प्रत्येक वर्ष में समुद्रगामिनी सात नदियाँ भी हैं और वे सभी दो नामोंवाली हैं। केवल गङ्गा सात प्रकारकी बतलायी जाती हैं। मङ्गलमयी एवं पुण्यसलिला प्रथमा गङ्गा सुकुमारी नामसे कही जाती हैं। यही नदी अनुतप्ता नामसे भी प्रसिद्ध है। दूसरी गङ्गा तपः सिद्धा सुकुमारी है ये ही सती नामसे भी प्रसिद्ध हैं। तीसरी गङ्गा नन्दा और पावनी नामसे विख्यात हैं। चौथी गङ्गा शिबिका हैं, इन्हींको द्विविधा भी कहा जाता है। इक्षुको पाँचवीं गङ्गा समझना चाहिये। उसी प्रकार पुनः इन्हें कुछ भी कहते हैं।छठी गङ्गा वेणुका और अमृता नामसे प्रसिद्ध हैं। सातवाँ गङ्गाको सुकृता और गभस्ती कहा जाता है। कल्याणमय जलसे परिपूर्ण एवं महान् भाग्यशालिनी के सातों गङ्गाएँ शाकद्वीपके प्रत्येक वर्षके सभी प्राणियोंको पवित्र करती हैं। दूसरे बड़े-बड़े नद नदियाँ और सरोवर भी इन्हीं गङ्गाकी धाराओंमें आकर मिलते हैं, जिसके कारण ये सभी अथाह जल बहानेवाली हैं। इन्हींसे जल ग्रहण कर इन्द्र वर्षा करते हैं । ll26-35 ॥
उन सहायक नदियोंके नाम और परिमाणकी गणना नहीं की जा सकती। ये सभी श्रेष्ठ नदियाँ पुण्यतोया हैं। इनके तटपर निवास करनेवाले जनपदवासी सदा हर्षपूर्वक इनका जल पीते हैं। उनके तटपर स्थित शान्तमय, प्रमोद, शिव, आनन्द, सुख, क्षेमक और नव-ये सात विश्व-विख्यात देश हैं। यहाँ वर्ण और आश्रमके धर्मोका सुचारुरूपसे पालन होता है। यहाँके सभी निवासी नीरोग, बलवान् और मृत्यु रहित होते हैं उनमें अवसर्पिणी |(अधोगामिनी) तथा उत्सर्पिणी (ऊर्ध्वगामिनी) क्रिया नहीं होती है। वहाँ कहीं भी चारों युगोंद्वारा की गयी युगव्यवस्था नहीं है। वहाँ सदा त्रेतायुगके समान ही समय वर्तमान रहता है। शाकद्वीप आदि इन पाँचों द्वीपोंमें ऐसी ही दशा जाननी चाहिये; क्योंकि देशके विचारसे ही कालकी स्वाभाविक गति जानी जाती है। उन द्वीपोंमें कहीं भी वर्ण एवं आश्रमजन्य संकर नहीं पाया जाता। इस प्रकार धर्मका परित्याग न करनेके कारण वहाँकी प्रजा एकान्त सुखका अनुभव करती है। उनमें न तो माया (छल-कपट) है, न लोभ, तब भला ईर्ष्या, असूया और भय कैसे हो सकते हैं? उनमें धर्मका विपर्यय भी नहीं देखा जाता। धर्म तो उनके लिये स्वाभाविक कर्म माना गया है। उनपर कालका कोई प्रभाव नहीं पड़ता, वहाँ न तो दण्डका विधान है, न कोई दण्ड देनेवाला ही है। वहाँके निवासी धर्मके ज्ञाता हैं, अतः वे स्वधर्मानुसार परस्पर एक-दूसरेकी रक्षा करते रहते हैं ।। 36-44 ॥
कुश नामक द्वीप अत्यन्त विशाल मण्डलवाला है। उसके चारों ओर नदियोंका जल प्रवाहित होता रहता है वह बादल सदृश रंगवाले, सम्पूर्ण धातुओंसे युक्त होनेके कारण रंगे-बिरंगे तथा मणियों और मूँगोंसे विभूषित पर्वतोंद्वारा घिरा हुआ है उसमें चारों ओर विभिन्न | आकारवाले रमणीय जनपद तथा फूल-फलोंसे लदे हुएवृक्षोंके समूह शोभायमान हो रहे हैं। वह धन-धान्यसे परिपूर्ण है। वह सदा पुष्पों और फलोंसे युक्त रहता है। उसमें सभी प्रकारके रत्न पाये जाते हैं। वह सर्वत्र ग्रामीण एवं जंगली पशुओंसे भरा हुआ है। उस कुशद्वीपका संक्षेपमें आनुपूर्वी वर्णन सुनिये। अब मैं तीसरे कुशद्वीपका समग्ररूपसे वर्णन कर रहा हूँ। कुशद्वीपसे क्षीरसागर चारों ओरसे घिरा हुआ हैं। यह शाकद्वीपके दुगुने विस्तारसे युक्त है। यहाँ भी रत्नोंकी खानोंसे युक्त सात पर्वत जानना चाहिये। यहाँकी नदियाँ भी रत्नोंकी भण्डार हैं। अब मुझसे उनका नाम सुनिये जैसे शाकद्वीपमें सभी पर्वतों और नदियोंके दो नाम थे, वैसे ही यहाँके भी पर्वत एवं नदी दो नामवाली हैं। पहला सूर्यके समान चमकीला कुमुद नामक पर्वत है। वह पर्वत विदुमोच्चय नामसे भी कहा जाता है। वहाँ दूसरा पर्वत उन्नत नामसे विख्यात है। वह सम्पूर्ण धातुओंसे परिपूर्ण एवं शिला-समूहोंसे समन्वित शिखरोंसे युक्त है। वही पर्वत हेमपर्वत नामसे अभिहित होता है ll 45-533॥
तीसरा बलाहक पर्वत है, जो अञ्जनके समान काला है यह अपने हरितालमय शिखरोंसे सर्वत्र द्वीपको आवृत किये हुए है। यही पर्वत द्युतिमान् नामसे भी पुकारा जाता है। चौथा पर्वत द्रोण है। इस महान् गिरिपर विशल्यकरणी और मृतसंजीवनी आदि महाबलवती ओषधियाँ पायी जाती हैं। वही महान् समृद्धिशाली पर्वत पुष्पवान् नामसे विख्यात है। उनमें पाँचवाँ कङ्क पर्वत है, जो सारयुक्त पदार्थोंसे सम्पन्न है। इस पर्वतको कुशेशय भी कहते हैं। वहाँ छठा महिष पर्वत है, जो मेघ-सदृश काला है। वह दिव्य पुष्पों एवं फलोंसे युक्त तथा दिव्य वृक्षोंसे सम्पन है। वही पुनः हरि नामसे विख्यात है। उस पर्वतपर महिष नामक अग्नि, जो जलसे उत्पन्न | हुआ है, निवास करता है। वहाँ सातवें पर्वतको ककुद्यान् | कहा जाता है। उसीको मन्दर जानना चाहिये। वहसम्पूर्ण धातुओंसे युक्त और अत्यन्त सुन्दर है जो यह मंद धातु है, वह जलरूप अर्थको प्रकट करनेवाली है, अतः जलका विदारण करके निकलनेके कारण इस पर्वतको मन्दर कहा जाता है। उस पर्वतपर अनेकों प्रकारके रख पाये जाते हैं, जिनकी रक्षा प्रजापतिको साथ लेकर स्वयं इन्द्र करते हैं। साथ ही स्वयं इन्द्र यहाँकी प्रजाओंकी भी देख-भाल करते हैं। इनके अन्तर- विष्कम्भ पर्वत परिमाणमें दुगुने बतलाये जाते हैं। कुशद्वीपमें ये सात पर्वत कहे गये हैं। अब मैं इनके सात वर्षोंका विभागपूर्वक वर्णन कर रहा हूँ। कुमुद पर्वतके वर्षका नाम श्वेत है। इसे उन्नत नामसे भी पुकारते हैं। उन्नत पर्वतका लोहित नामक वर्ष जानना चाहिये। इसे वेणुमण्डलक भी कहते हैं। बलाहक पर्वतका वर्ष जीमूत है, इसीका नाम स्वैरथाकार भी है ।। 54-66 ॥
द्रोणपर्वतके वर्षका नाम हरिक है, इसे लवण भी कहते हैं। कडू पर्वतका वर्ष ककुद् है, इसे धृतिमान् भी कहा जाता है। महिष पर्वतके वर्षका नाम महिष है, इसे | प्रभाकर नामसे अभिहित किया जाता है। ककुद्मी पर्वतका जो वर्ष है, वह कपिल नामसे विख्यात है। कुशद्वीपमें ये सातों विशिष्ट वर्ष तथा सात पर्वत पृथक् पृथक् हैं। अब उन वर्षोंको नदियोंको सुनिये। वहाँ प्रत्येक वर्ष में नदियाँ भी सात ही बतलायी जाती हैं। वे सभी दो नामोंवाली तथा पुण्यसलिला हैं। उनमें पहली नदीका नाम धूतपापा है, उसे योनि भी कहते हैं। दूसरी नदीको सीता नामसे जानना चाहिये। वही निशा भी कही जाती है। पवित्राको तीसरी नदी समझना चाहिये। उसीका नाम वितृष्णा भी है। चौथी हादिनी नामसे पुकारी जाती है, यही चन्द्रमा नामसे भी प्रसिद्ध है। पाँचवीं नदीको विद्युत् कहते हैं, यही शुक्ला नामसे भी अभिहित होती है। पुण्ड्राको छठी नदी जानना चाहिये, इसको विभावरी भी कहते हैं। सातवीं नदीका नाम महती है, यही धृति नामसे भी कही जाती है। इनके अतिरिक्त अन्य भी छोटी-बड़ी सैकड़ों-हजारों नदियाँ हैं, जो इन्हीं प्रमुख नदियोंमें जाकर मिली हैं। इन्हींसे जल ग्रहण करके इन्द्र यहाँ वर्षा करते हैं। इस प्रकार मैंने आपलोगोंसे कुशद्वीपकी संस्थितिका वर्णन कर दिया तथा उसके शाकद्वीपसे दुगुने सनातन विस्तारको भी बतला दिया। यह महान् | कुशद्वीप चारों ओरसे चन्द्रमाकी भाँति मृत और मसेभरे हुए सागरसे घिरा हुआ है। यह विस्तार एवं मण्डल (घेराव) में क्षीरसागरसे दुगुना माना गया है । 67–77 ।। इसके बाद अब मैं क्रौञ्चद्वीपका यथार्थरूपसे वर्णन कर रहा हूँ। इसका विस्तार कुशद्वीपके विस्तारसे दुगुना है। चक्केकी भाँति गोलाकार उस क्रौञ्चद्वीपसे घृतसागर चारों ओरसे घिरा हुआ है। श्रेष्ठ ऋषियों! इस क्रौञ्चद्वीपमें देवन नामक पर्वत बतलाया जाता है। देवनके बाद गोविन्द नामक पर्वत है। गोविन्दके बाद क्रौञ्च नामक पहला पर्वत है। क्रौञ्चके बाद पावनक, | पावनकके बाद अन्धकारक और अन्धकारकके बाद देवावृत् नामक पर्वत है। देवावृत्के बाद पुण्डरीक नामक विशाल पर्वत है। क्रौञ्चद्वीपके ये सातों पर्वत रत्नमय हैं। इस द्वीपके वर्ष पर्वतके रूपमें स्थित विष्कम्भ पर्वत परस्पर एक दूसरेसे दुगुने हैं। अब इस द्वीपके वर्षों का नाम बतला रहा हूँ, सुनिये क्रौञ्च पर्वतके प्रदेशका नाम कुशल है। वामन पर्वतका प्रदेश मनोऽनुग कहलाता है। मनोऽनुगके बाद तीसरा उष्ण प्रदेश कहा जाता है। उष्णके बाद पावनक, पावनकके बाद अन्धकारक और अन्धकारकके बाद दूसरा मुनिदेश है। मुनिदेशके बाद दुन्दुभिस्वन नामक देश कहा जाता है। यह द्वीप सिद्धों एवं चारणोंसे व्यास है। यहाँ के निवासी प्राय: गौर वर्णके एवं परम पवित्र होते हैं। इस द्वीपके प्रत्येक वर्ष मङ्गलमयी नदियाँ भी प्रवाहित होती हैं, ऐसा सुना गया है। वहाँ गौरी, कुमुद्वती, संध्या, रात्रि, मनोजवा, ख्याति और | पुण्डरीका- ये सात प्रकारकी गङ्गा बतलायी जाती हैं। इनके अगल-बगलमें बहनेवाली अगाध जलसे भरी हुई हजारों अन्य नदियाँ भी हैं, जो इन्हीं प्रमुख नदियोंमें आकर मिली हैं। उन पर्वतीय प्रदेशोंकी सर्वथा आनुपूर्वी स्वाभाविको स्थितिका तथा वहाँकी प्रजाओंकी सृष्टि एवं संहारका विस्तारपूर्वक वर्णन सैकड़ों वर्षोंमें भी नहीं किया जा सकता ।। 78- 906 ॥
इसके बाद मैं शाल्मलद्वीपका वर्णन कर रहा हूँ, सुनिये शाल्मलद्वीप क्रौञ्चद्वीपके विस्तारसे दुगुना है। यह घृतमण्डोदसागरको घेरकर स्थित है। इसमें पुण्यमय | जनपद हैं। वहाँ के निवासी क्षमाशील एवं तेजस्वी होतेहैं तथा दीर्घायुका उपभोग कर मृत्युको प्राप्त होते हैं। वहाँ अकालकी कोई सम्भावना ही नहीं है। वहाँ पहले पर्वतका नाम सुमना है, जो सूर्यके समान चमकीला होनेके कारण पीले रंगका है। उसके बाद दूसरा कुम्भमय नामक पर्वत है। उसका दूसरा नाम सर्वसुख है वह दिव्य औषधियोंसे सम्पन्न है। तीसरा स्वर्णसम्पन्न एवं भ्रमरके पंखके समान रंगवाला रोहित नामक विशाल पर्वत है। यह पर्वतश्रेष्ठ दिव्य है। सुमना पर्वतका देश कुशल एवं दूसरे सर्वसुख पर्वतका देश सुखोदय है, जो सभी सुखोंको उत्पन्न करनेवाला है। तीसरे रोहित पर्वतका प्रदेश रोहिण नामसे विख्यात है। वहाँ अनेकों प्रकारके रखोंकी खानें हैं, जिनकी रक्षा प्रजापतिको साथ लेकर स्वयं इन्द्र करते हैं और वे ही प्रसन्नतापूर्वक वहाँकी प्रथाओंके लिये कार्यका विधान करते हैं। वहाँ न तो मेघ वर्षा करते हैं, न शीत एवं उष्णकी ही अधिकता रहती है। इन तीनों द्वीपोंमें वर्णाश्रमको चर्चा चलती रहती है अर्थात् यहाँ वर्णाश्रमका पूर्णरूपसे प्रचार है। यहाँ न ग्रहगण हैं, न चन्द्रमा हैं और न यहाँके निवासियोंमें ईर्ष्या, असूया और भय ही देखा जाता है। यहाँ पर्वतोंसे झरते हुए जल हो अनके उत्पादक हैं । वहाँके निवासियोंके लिये षट् रसयुक्त भोजन स्वयं ही प्राप्त हो जाता है। उनमें न तो ऊँच नीचका भाव है, न लोभ है और न परिग्रह ( दान लेनेकी प्रवृत्ति) ही है। वे नीरोग एवं बलवान् होते हैं तथा एकान्त सुखका उपभोग करते हैं। वे लोग तीस हजार वर्षतककी मानसी सिद्धिको प्राप्त होकर सुख दीर्घायु, सुन्दर रूप, धर्म और ऐश्वर्यका उपभोग करते हुए जीवन-यापन करते हैं। कुश, क्रोश और शाल्मल- इन तीनों द्वीपोंमें यही स्थिति समझनी चाहिये। इस प्रकार में इन तीनों | द्वीपोंकी शुभमयी विधिका विवरण बतला चुका। इसशाल्मलद्वीपका मण्डल (घेरा) दुगुने परिमाणवाले सुरोदसागरसे चारों ओर चक्रकी भाँति गोलाकार घिरा हुआ है ॥ 91-104 ॥