मनुजीने पूछा-भगवन्! राजाओंके लिये यात्राके अवसरपर सम्मुख देखने या न देखने योग्य कौन कौन-सी वस्तुएँ प्रशस्त मानी गयी हैं, उन सबका वर्णन कीजिये ॥ 1 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन् ! अनुपयुक्त ओषधियाँ, काला अन्न, कपास, तृण, सूखा गोबर, ईंधन, अङ्गार, गुड़, तेल— ये सब अशुभ वस्तुएँ हैं। तेल लगाया हुआ, मलिन, मुण्डन कराया हुआ, नंगा, खुले बालोंवाला, रोगपीड़ित, काषाय वस्त्रधारी, पागल, दीन तथा नपुंसक व्यक्ति, लोहा, कीचड़, चमड़ा, केशका बन्धन, खली आदि सभी सारहीन वस्तुएँ, चाण्डाल, श्वपच, बन्धनमें डालनेवाले राजाके कर्मचारी, जल्लाद, पापी, गर्भिणी स्त्री, भूसी, राख, खोपड़ी, हड्डी, टूटे हुए सभी पात्र, खाली पात्र, लाश, सींगोंवाले पशुये तथा इनके अतिरिक्त और भी वस्तुएँ देखनेमें अशुभ मानी गयी हैं। वाद्योंके भयानक तथा बिना तालके रूखे स्वर भी अशुभ कहे गये हैं। धर्मज्ञ सामनेसे 'आओ' ऐसा शब्द कहना शुभ है, किंतु पीछेसे नहीं। इसी तरह पीछेसे 'जाओ' यह कहना शुभ है, किंतु वही आगेसे कहना अशुभ है। 'कहाँ जा रहे हो, रुको, मत जाओ तुम्हारे वहाँ | जानेसे क्या लाभ ?'- इस प्रकारके जो दूसरे अनिष्ट शब्द हैं, वे सभी विपत्तिकारक हैं। ध्वजा, पताका आदिपर मांसभक्षी पक्षियोंका बैठना, वाहनोंका फिसलना तथा वस्त्रका अटक जाना निन्दित माना गया है। द्वारसे निकलते समय सिरमें चोट लगना तथा छत्र, ध्वजा और वस्त्रादिका गिरना अशुभकारक है। प्रथम बार अपशकुन दीखनेपर विद्वान् राजाको चाहिये कि वह अशुभविनाशक एवं मधुहन्ता भगवान् केशवकी स्तोत्रोंद्वारा पूजा करे। दूसरी बार पुनः अपशकुन दिखायी पड़नेपर उसे घरमें लौट जाना चाहिये ॥ 2-133 ॥
अनघ! अब मैं शुभ सूचक अभीष्ट शकुनोंका वर्णन कर रहा हूँ। राजन्! श्वेत फूल, भरा हुआ घट, जलजन्तु, पक्षी, मांस, मछलियाँ, गौएँ, घोड़े, हाथी, अकेला बँधा हुआ पशु, बकरा, देवता, मित्र, ब्राह्मण, जलती हुई अग्नि, वेश्या, दूर्वा, गीला गोबर, सुवर्ण, चाँदी, ताँबा, सभी प्रकारके रत्न, ओषधियाँ, जौ, पीली सरसों, मनुष्योंको ढोता हुआ वाहन, सुन्दर सिंहासन, तलवार, छत्र, पताका, मिट्टी, हथियार, सभी प्रकारके राजचिह्न, रुदनरहित मुर्दा, घी, दही, दूध, विविध प्रकारके फल, स्वस्तिक', वर्धमान नन्द्यावर्त, कौस्तुभमणि, बाद्योंके सुखदायक, मनोहर एवं गम्भीर शब्द, गान्धार, षड्ज तथा ऋषभ आदि स्वर शुभदायक माने गये हैं। द्विज! यदि बालूके कणोंसे युक्त रूखी वायु सर्वत्र प्रतिकूल दिशामें पृथ्वीका स्पर्श करके बह रही हो तो उसे भयकारी जानना चाहिये। अनुकूल दिशामें बहनेवाली मृदु, शीतल एवं सुखस्पर्शी वायु सुखदायिनी होती है। निष्ठुर एवं रूखे स्वरमें बोलनेवाले मांसभक्षी जीव यात्रियोंके लिये कल्याणकारक होते हैं।हाथियोंकी चिग्घाड़के समान गम्भीर शब्द करनेवाले चिकने घने मेघ शुभदायी होते हैं। पीछेसे चमकनेवाली बिजलीका | प्रकाश तथा इन्द्रधनुष प्रशंसनीय हैं। यात्रामें सूर्य एवं चन्द्रमाके मण्डल तथा घनघोर वृष्टिको अशुभ समझना चाहिये। | अनुकूल दिशामें उदित हुए ग्रहोंको, विशेषकर बृहस्पतिको शुभसूचक कहा गया है। धर्मज्ञ ! (यात्राकालमें) आस्तिकता, श्रद्धा, पूज्योंके प्रति पूज्यभाव और मनकी प्रसन्नता - ये सभी प्रशंसनीय हैं। यात्राकालमें मनका संतोष विजयका परम लक्षण है। तुलनामें एक ओर सभी शुभ शकुन और एक ओर अपने मनकी प्रसन्नताको मानना चाहिये। राजन् वाहनोंकी उत्सुकता, मनका आनन्दातिरेक, शुभ शकुनोंकी प्राप्ति, विजयसूचक प्रवाद, माङ्गलिक वस्तुओंकी उपलब्धि तथा श्रवण-इन्हें नित्य विजयप्रद जानना चाहिये ll 14-28 ॥