मनुजीने पूछा-देव यात्राके समय स्वप्नका वृत्तान्त कैसा है? विविध प्रकारके वैसे यों भी स्वप्न अनेक दिखायी पड़ते हैं, उनका फल कैसा होता है (बतलायें) ॥ 1 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा-मनो अब मैं स्वप्नोंके शुभाशुभ लक्षणों को बतला रहा हूँ। नाभिके अतिरिक्त अन्य अङ्गमें तृण एवं वृक्षका उगना, मस्तकपर कांसेका कूटा जाना, मुण्डन, नग्नता, मलिन वस्त्रोंका धारण करना, तेल लगाना, कीचमें धँसना, लेप, ऊँचे स्थान से गिरना, झूलेपर चढ़ना, कीचड़ और लोहेको इकट्ठा करना, घोड़ोंको मारना, लाल पुष्पवाले वृक्षों, मण्डल, शूकर, रीछ, गधे और ऊँटॉपर चढ़ना, पक्षी, मछली, तेल और खिचड़ीका भोजन, नाचना, हँसना, विवाह, गायन, वीणाको छोड़कर अन्य वाद्योंका स्वागत करना, जलके सोतेमें स्नान करनेके लिये जाना, गोबर लगाकर जलमें स्नान करना, इसी प्रकार कीचड़युक्त जलमें तथा पृथ्वीके थोड़े जलमें नहाना, माताके उदरमें प्रवेश करना, चितापर चढ़ना, इन्द्रध्वजका गिरना, चन्द्रमा और सूर्यका पतन, दिव्य, अन्तरिक्ष तथा भौम उत्पातोंका दर्शन, देवता, द्विजाति, राजा और गुरुका क्रोध, कुमारी कन्याओंका आलिङ्गन, पुरुषोंके साथ सम्भोग, अपने ही शरीरका नाश, विरेचन, वमन, दक्षिण दिशाकी यात्रा, किसी व्याधसे पीड़ित होना, फलों तथा पुष्पोंकी हानि, घरोंका गिरना, घरोंकी सफाई होना, पिशाच, मांसभक्षी जीव, वानर, रीछ और मनुष्यके साथ क्रीडा करना, शत्रुसे पराजित होना या उसकी ओरसे किसी प्रकारकी आपत्तिका प्रकट होना, कापाय वस्त्रको धारण करना अथवा वैसे वस्त्रवाली स्त्रीके साथ क्रीडा करना, तेल-पान या उसीमें स्नान करना, लाल पुष्प और लाल चन्दनको धारण करना तथा इनके अतिरिक्त अन्य भी बहुत | से दुःस्वप्न कहे गये हैं। इन्हें देखनेके बाद दूसरेसे कह देना तथा पुनः सो जाना कल्याणकारक है ॥ 215 ॥(ऐसे स्वप्न देखनेपर) खली लगाकर स्नान, तिलसे हवन और ब्राह्मणोंका पूजन करे। भगवान् वासुदेवकी स्तुति उनकी पूजा और गजेन्द्रमोक्षकी कथाका श्रवण आदिका दुःस्वप्नका नाशक समझना चाहिये। रात्रिके पहले पहरमें देखे गये स्वप्न देखनेवालेको निःसंदेह एक वर्षमें, दूसरे पहरमें देखे गये छः महीनेमें तीसरे पहर में देखे गये तीन महीनेमें तथा चतुर्थ पहरमें देखे गये एक महीनेमें फल देते हैं। सूर्योदयके समय देखे जानेपर दस दिनमें ही फल प्राप्त होता है। यदि एक ही रातमें शुभ और अशुभ दोनों प्रकारके स्वप्न दिखायी पड़े तो उनमें जो पीछे दीख पड़ा हो, उसीका फल कहना चाहिये। इसलिये शुभ स्वप्नके देखनेपर मनुष्यको पुनः नहीं सोना चाहिये ॥ 16-20 ॥
द्विज] पर्वत, राजमहल, हाथी, घोड़ा, वृषभ इनपर आरोहण करना हितकारक है तथा श्वेत पुष्पोंवाले वृक्षोंपर चढ़ना शुभप्रद है। नाभिमें वृक्ष और तृणका उत्पन्न होना, अनेक बाहुओंका होना, अनेक सिरोंका होना, फलदान, उद्भिज्जोंका दर्शन, सुन्दर श्वेत माला धारण करना, श्वेत वस्त्र पहनना, चन्द्रमा सूर्य और ताराओंको हाथसे पकड़ना या उन्हें स्वच्छ करना, इन्द्रधनुषका | आलिङ्गन करना या उसे ऊपर उठाना, पृथ्वी और समुद्रोंको निगलना, शत्रुओंका संहार करना, संग्राम, विवाद और जूएमें जीतना, कच्चा मांस, मछली और खोरका खाना, रक्तका दर्शन या रक्तसे स्नान, मदिरा, रक्त, मद्य अथवा दुग्धका पीना, अपनी आँतोंसे पृथ्वीको बाँधना, निर्मल आकाशको देखना, भैंस, गाय, सिंहिनी, हथिनी तथा घोड़ियोंको मुखसे दुहना, देवता, गुरु और ब्राह्मणोंकी प्रसन्नता—ये स्वप्न शुभदायक होते हैं । ll 21- 28 ॥
राजन् ! गौओंके सींगसे चूनेवाले अथवा चन्द्रमासे गिरे हुए जलसे अभिषेक होना राज्यप्रद समझना चाहिये। राज्याभिषेक, सिरका कटना, मृत्यु, अग्निका प्रज्वलित होना या घरमें आग लगना, राज्यचिह्नोंकी प्राप्ति, वीणाका स्वर सुनायी पड़ना, जलमें तैरना, दुर्गम स्थानोंको पार करना,घरमें हथिनी, घोड़ी तथा गायोंका बच्चा देना, घोड़ेपर सवार होना तथा रोना—ये स्वप्न शुभदायक होते हैं। सुन्दरी स्त्रियोंकी प्राप्ति तथा उनका आलिङ्गन, जंजीरोंद्वारा बन्धन, मलका लेपन, जीवित राजाओं तथा मित्रोंका दर्शन, देवताओं तथा निर्मल जलका दर्शन ये स्वप्न शुभ कहे गये हैं। धर्मधारियोंमें श्रेष्ठ राजन् ! मनुष्य इन शुभदायक स्वप्नोंको देखकर बिना प्रयासके ही निश्चितरूपमें धन प्राप्त कर लेता है तथा रोगग्रस्त व्यक्ति भी रोगसे मुक्त हो जाता है॥ 29-35॥