मनुने पूछा- महान् द्युतिशील भगवन्! अब आप साम आदि उपायोंका वर्णन कीजिये। देवश्रेष्ठ ! साथ ही उनका लक्षण और प्रयोग भी बतलाइये ॥ 1 ॥ मत्स्यभगवान्ने कहा- मनुजेश्वर ! (राजनीतिमें) साम (स्तुति प्रशंसा), भेद, दान, दण्ड, उपेक्षा, माया तथा इन्द्रजाल-ये सात प्रयोग बतलाये गये हैं। राजन्! उन्हें मैं बतला रहा हूँ, सुनिये ! साम तथ्य और अतथ्यभेदसे दो प्रकारका कहा गया है। उनमें भी अतथ्य (झूठी प्रशंसा) साधु पुरुषोंकी अप्रसन्नताका ही कारण बन जाती है। नरोत्तम। इसलिये सज्जन व्यक्तिको प्रयत्नपूर्वक तथ्य साम (सच्ची प्रशंसा) से वशमें करना चाहिये। जो उन्नत कुलमें उत्पन्न, सरलप्रकृति, धर्मपरायण और जितेन्द्रिय हैं, वे (तथ्य) सामसे ही साध्य होते हैं, अतः उनके प्रति अतथ्य सामका प्रयोग नहीं करना चाहिये। उनके प्रति तथ्य सामका प्रयोग, उनके कुल और शील-स्वभावका वर्णन किये गये उपकारोंकी चर्चा तथा अपनी कृतज्ञताका कथन करना चाहिये। इसी युक्ति तथा इस प्रकारके सामसे धर्ममें तत्पर रहनेवालोंको अपने वशमें करना चाहिये। यद्यपि राक्षस भी साम-नीतिके द्वारा वशमें किये जाते हैं-ऐसी पराश्रुति है, तथापि असत्पुरुषोंके प्रति इसका प्रयोग उपकारी नहीं होता। दुर्जन पुरुष सामकी बातें करनेवालेको अतिशय डरा हुआ समझते हैं, इसलिये उनके प्रति इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये। राजन्। जो पुरुष शुद्ध वंशमें उत्पन्न, सरलप्रकृतिवाले, विनम्र, धर्मिष्ठ, सत्यवादी, विनयी एवं सम्मानी है, वे ही निरन्तर सामद्वारा साध्य बतलाये गये हैं॥ 2-10 ॥