मनुने पूछा- मधुसूदन! किस व्रतका अनुष्ठान करनेसे मनुष्योंको मधुर वाणी, जनतामें उत्कृष्ट सौभाग्य, उत्तम बुद्धि, विद्याओंमें निपुणता, पति-पत्नीमें अभेद, बन्धुजनोंके साथ प्रेम और दीर्घायुकी प्राप्ति हो सकती है ? माधव वह व्रत मुझे बतलाइये ॥ 1-2 ॥
मत्स्यभगवान्ने कहा- राजन्। तुमने तो बड़ा उत्तम प्रश्न किया है। अच्छा सुनो! अब मैं उस सारस्वत व्रतका वर्णन कर रहा हूँ, जिसकी चर्चामात्र करनेसे इस लोकमें सरस्वतीदेवी प्रसन्न हो जाती हैं जो पुरुष मेरा भक्त हो, उसे पञ्चमीके दिन इस श्रेष्ठ व्रतका अनुष्ठान | प्रारम्भ करना चाहिये। आरम्भ-कालमें ब्राह्मणोंके पूजनका | विधान है। अथवा रविवारको जब ग्रह और तारा आदि अनुकूल हों, ब्राह्मणोंद्वारा स्वस्तिवाचन कराकर उन ब्राह्मणोंको खोरका भोजन करावे और अपनी शक्तिके अनुसार सुवर्णसहित श्वेत वस्त्र दान करे। फिर श्वेत | पुष्पमाला और चन्दन आदि उपकरणोंद्वारा भक्तिपूर्वकगायत्रीदेवीकी पूजा करके यों प्रार्थना करे- 'देवि । जैसे ब्रह्मलोकमें भगवान् पितामह आपको छोड़कर कहीं अन्यत्र नहीं रुकते, उसी प्रकारका वर मुझे भी प्रदान करें। देवि! जैसे वेद, सम्पूर्ण शास्त्र तथा गीत-नृत्य | आदि जितनी कलाएँ हैं, वे सभी आपके बिना नहीं रह सकतीं, उसी प्रकारकी सिद्धियाँ मुझे भी प्राप्त हों। सरस्वति! आप अपनी लक्ष्मी, मेधा, धरा, पुष्टि, गौरी, तुष्टि, प्रभा और मति- इन आठ मूर्तियोंद्वारा मेरी रक्षा करें। इस प्रकार धर्मज्ञ पुरुष वीणा, रुद्राक्ष माला, कमण्डलु और पुस्तक धारण करनेवाली गायत्रीकी श्वेत पुष्प, अक्षत आदिसे भक्तिपूर्वक पूजा कर प्रातः एवं सायंकाल मौन धारण करके भोजन करें तथा प्रत्येक पक्षकी पञ्चमी तिथिको ब्रह्मवासिनी (वेद-विद्याकी अधिष्ठात्री) का पूजन कर घृतपूर्ण पात्रसहित एक सेर चावल, दूध और सुवर्णका दान करे और कहे 'गायत्रीदेवी मुझपर प्रसन्न हों।' यह कर्म सायंकालमें मौन धारण करके करना चाहिये। तेरह महीनेतक प्रातः और सायंकालके बीच भोजन न करनेका विधान है। व्रत समाप्त हो जानेपर पहले ब्राह्मणको दो वस्त्रोंसहित भोजन-पदार्थका दान करके तत्पश्चात् स्वयं श्वेत चावलोंका भोजन करे। पुनः देवीके निमित्त वितान (चंदोवा या चाँदनी), घण्टा, दो श्वेत (चाँदीके बने हुए) नेत्र, दुधारू गौ, चन्दन, दो वस्त्र और सिरका कोई आभूषण दान करना चाहिये। तदनन्तर उपदेश करनेवाले अर्थात् कर्म करानेवाले गुरुका भी कृपणतारहित होकर वस्त्र, पुष्पमाला, चन्दन आदिसे भलीभाँति पूजन करे ll 3-15 ll
जो मनुष्य इस ( उपर्युक्त) विधिके अनुसार सारस्वतव्रतका अनुष्ठान करता है, वह विद्या-सम्पन्न, धनवान् और मधुरभाषी हो जाता है; साथ ही सरस्वतीकी कृपासे ब्रह्मलोकमें प्रतिष्ठित होता है। अथवा राजन् ! यदि कोई स्त्री इस व्रतका अनुष्ठान करती है तो वह भी उस फलको प्राप्त करती है और तीस कल्पोंतक ब्रह्मलोकमें निवास करती है। जो मनुष्य इस सारस्वत- व्रतका पाठ अथवा श्रवण करता है वह भी विद्याधर- लोकमें तीस कल्पोंतक निवास करता है ll 16-18 ll