सावित्रीने कहा- धर्म-अधर्मके विधानको जाननेवाले एवं सभी धर्मोके प्रवर्तक देव! आप ही जगत्के स्वामी तथा प्रजाओंका नियमन करनेवाले यम हैं देव चौक आप कर्मोंके अनुरूप प्रजाओंका नियमन करते हैं, इसलिये 'यम' नामसे पुकारे जाते हैं प्रभो! चूँकि आप धर्मपूर्वक इस सारी प्रजाको आनन्दित करते हैं, इसीलिये सत्पुरुष आपको धर्मराज नामसे पुकारते हैं। लोग मरनेपर अपने सत्-असत्- दोनों प्रकारके कर्मोंको अपने आगे रखकर आपके समीप जाते हैं, इसलिये आप मृत्यु कहलाते हैं। आप सभी प्राणियोंके क्षण, कला आदिसे कालकी गणना करते रहते हैं, इसीलिये तत्त्वदर्शी लोग आपको 'काल' नामसे पुकारते हैं। महादीतिसम्पन्न! चूँकि आप संसारके सभी चराचर जीवोंके महान् अन्तकर्ता हैं, इसीलिये आप सभी देवताओंद्वारा 'अन्तक' कहे जाते हैं।आप विवस्वान के प्रथम पुत्र कहे गये हैं, अतः सम्पूर्ण विश्वमें वैवस्वत नामसे कहे जाते हैं। आयुकर्मके क्षीण हो जानेपर आप लोगोंको हठात् पकड़ लेते हैं, इसी कारण लोकमें सर्वप्राणहर नामसे कहे जाते हैं। देवेश! आपकी कृपासे ऋक्, साम और यजुः- इन तीनों वेदोंद्वारा प्रतिपादित धर्मका विनाश नहीं होता। देवेश। आपकी महिमासे सभी प्राणी अपने-अपने धर्मोमें स्थित रहते हैं। देवेश आपको सत्कृपासे वर्णसंकर संततिकी उत्पत्ति नहीं होती। देव! आप ही सदा सत्पुरुषोंको गति बतलाये गये हैं। जगन्नाथ! आप इस जगत्की मर्यादाका पालन करनेवाले हैं। देवताओंमें श्रेष्ठ! अपनी शरणमें आयी हुई मुझ दुखियाकी रक्षा कीजिये । इस राजपुत्रके माता-पिता भी दुःखी हैं ॥1- 11 ॥
यमराज बोले- धर्मज्ञे तुम्हारी स्तुति तथा भक्तिसे संतुष्ट होकर मैंने तुम्हारे पति इस सत्यवान्को विमुक्त कर दिया है। अबले! अब तुम सफलमनोरथ होकर लौट जाओ। यह सत्यवान् तुम्हारे साथ पाँच सौ वर्षोंतक राज्य-सुख भोगकर अन्तकालमें स्वर्गलोकमें जायगा और देवताओंके साथ विहार करेगा। सत्यवान् तुम्हारे गर्भसे सौ पुत्रोंको भी उत्पन्न करेगा, वे सब-के-सब देवताओंके समान तेजस्वी तथा क्षत्रिय राजा होंगे। वे चिरकालतक जीवित रहते हुए तुम्हारे ही नामसे प्रसिद्ध होंगे। तुम्हारे पिताको भी तुम्हारी माताके गर्भसे सौ पुत्र उत्पन्न होंगे। वे तुम्हारे भाई मालवा (मध्यदेश) -में उत्पन्न होनेके कारण मालव नामसे विख्यात होंगे और चिरकालतक जीवित रहते हुए पुत्र-पौत्रादिसे युक्त होंगे तथा देवताओंके समान ऐश्वर्यसम्पन्न एवं क्षत्रियोचित गुणोंका पालन करेंगे। धर्मज्ञे! जो कोई पुरुष प्रातः काल उठकर इस स्तोत्रद्वारा मेरा स्तवन करेगा, उसकी भी आयु दीर्घ होगी ॥12- 17 ॥
मत्स्यभगवान् ने कहा- राजन्! इतनी बातें कहकर ऐश्वर्यशाली महात्मा यमराज उस राजपुत्र सत्यवान्को छोड़कर काल तथा मृत्युके साथ वहीं अदृश्य हो गये ॥ 18 ॥