ईश्वरने कहा- नारद! अब मैं पापहारी एवं श्रेष्ठ सुवर्णाचलका वर्णन कर रहा हूँ, जिसका दान करनेसे मनुष्य ब्रह्मलोकको प्राप्त करता है। एक हजार पलका सुवर्णाचल उत्तम, पाँच सौ पलका मध्यम और ढाई सौ | पलका अधम (साधारण) माना गया है। अल्प वित्तवाला भी अपनी शक्तिके अनुसार गर्वरहित होकर एक पलसे कुछ अधिक सोनेका पर्वत बनवा सकता है। मुनिश्रेष्ठ! शेष सारे कार्योंका विधान भान्यपर्वतकी भाँति ही करना चाहिये। उसी प्रकार विष्कम्भपर्वतोंकी भी स्थापना कर उन्हें ऋत्विजोंको दान करनेका विधान है। (प्रार्थना - मन्त्र इस प्रकार है-) 'शिलोच्चय तुम ब्रह्मके बीजरूप हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम्हारे गर्भमें ब्रह्मा स्थित रहते हैं, अतः तुम्हें प्रणाम है। तुम अनन्त फलके दाता हो, इसलिये मेरी रक्षा करो। जगत्पति पर्वतोत्तम। तुम अग्रिको संतन और जगदीश्वर शिवके तेज स्वरूप हो, अतः सुवर्णाचल के रूपसे मेरा पालन करो।' जो मनुष्य उपर्युक्त विधिसे सुवर्णाचलका दान करता है, वह परम आनन्ददायक ब्रह्मलोकमें जाता है और वहाँ सौ कल्पोंतक निवास करनेके पश्चात् परमगतिको प्राप्त होता है ॥ 1-6॥