सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! पुनः पार्वती देवीकी बाप कोखको फाड़कर दूसरा शिशु पुत्ररूपमें बाहर निकला। सर्वप्रथम अग्निके मुखमें वीर्यका क्षरण होनेके कारण वह बालक सुन्दर मुखवाला और शत्रुओंका विनाशक हुआ। उसके छः मुख हुए। चूँकि छहों मुखोंमें विस्तृत शाखा नामसे प्रसिद्ध कृतिकाओंकी शाखाओंका विशेषरूपसे मेल हुआ था, इसलिये वह बालक लोकों में 'विशाख' नामसे विख्यात हुआ। इस प्रकार वह स्कन्द, विशाख, पड्वक्त्र और कार्तिकेयके नामसे प्रख्यात हुआ। चैत्रमासके कृष्णपक्षकी पंद्रहवीं तिथि (अमावास्या) को विशाल सरपतके वनमें सूर्यके समान तेजस्वी एवं महाबली ये दोनों शिशु उत्पन्न हुए थे। पुनः चैत्रमासके शुक्लपक्षको पञ्चमी तिथिको पाकशासन इन्द्रने देवताओंके लिये कल्याणकारी मानकर दोनों बालकोंको सम्मिलित करके एकीभूत कर दिया। उसी मासकी षष्ठी तिथिको ब्रह्मा इन्द्र विष्णु सूर्य आदि सभी देवसमूहद्वारा सामर्थ्यशाली गुह (देव-सेनापतिके पदपर) अभिषिक्त किये गये। उस समय चन्दन, पुष्पमाला, माङ्गलिक धूप, खिलौना, छत्र, चँवरसमूह, आभूषण और अङ्गरागद्वारा भगवान् षण्मुखका विधिपूर्वक यथावत् अभिषेक किया गया था। इन्द्रने 'देवसेना' नामसे विख्यात कन्याको उन्हें पत्नीरूपमें प्रदान किया। भगवान् विष्णुने देवाधिदेव गुहको अनेकों आयुध समर्पित किया। कुबेर उन्हें दस लाख यक्ष प्रदान किये। अग्निने तेज दिया। वायुने वाहन समर्पित किया। त्वष्यने खिलौना तथा स्वेच्छानुसार रूप धारण करनेवाला एक मुर्गा प्रदान किया। इस प्रकार उन सभी देवताओंने प्रसन्न मनसे सूर्यके समान तेजस्वी स्कन्दको सर्वश्रेष्ठ परिवार प्रदान किया। तत्पश्चात् प्रधान प्रधान देवताओंक समूह पृथ्वीपर घुटने टेककर उन वरदायक घण्मुखकी निम्नाङ्कित स्तोत्रद्वारा स्तुति करने लगे ॥1-12 ॥देवताओंने कहा- कामरूप षण्मुख! आप कुमार, महान् तेजस्वी, शिवतेजसे उत्पन्न और दानवोंका कचूमर निकालनेवाले हैं। आपकी शरीर कान्ति उदयकालीन सूर्य एवं बिजलीकी-सी है। आपको हमारा बारंबार नमस्कार प्राप्त हो। आप नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषित, जगत्के पालनकर्ता और रणभूमिमें भीषण दानवोंके लिये अत्यन्त भयंकर हैं, आपको प्रणाम है। सूर्य सरीखे प्रतिभाशाली आपको अभिवादन है गुहा रूपवाले आप गुहको हमारा नमस्कार है। त्रिलोकीके भयको दूर करनेवाले आपको प्रणाम है। कृपा करने में तत्पर रहनेवाले बालरूप आपको अभिवादन है। विशाल एवं निर्मल नेत्रोंवाले आपको नमस्कार है। महान् व्रतका पालन करनेवाले आप विशाखको प्रणाम है। सामान्यतया मनोहर रूपधारी तथा रणभूमिमें भयानक रूपसे युक्त आपको बारंबार अभिवादन है। उज्वल मयूरपर सवार होनेवाले आपको नमस्कार है। आप केयूरधारीको प्रणाम है। अत्यन्त ऊँचाईपर फहरानेवाली पताकाको धारण करनेवाले आपको अभिवादन है प्रगतजनोंपर प्रभाव डालनेवाले आपको नमस्कार है। आप सर्वश्रेष्ठ पराक्रमसे सम्पन्न हैं। आपको बारंबार प्रणाम है। मनोहर रूपधारिन् ! हमलोगोंपर कृपा कीजिये। इस प्रकार देवराज इन्द्र आदि सभी क्रियापरायण देवगण जब हर्षपूर्वक यज्ञपति षडाननकी स्तुति करके चुप हो गये, तब परम प्रसन्न हुए गुह अपने निर्मल नेत्रोंसे उन सुरेश्वरोंकी ओर निहारकर बोले— 'देवगण! मैं आपलोगोंके शत्रुओंका संहार करूँगा, अब आपलोग शोकरहित हो जायँ ॥ 13-18 ॥
कुमारने पूछा- देवगण! आपलोग निःसंकोच बतलायें कि मैं आपलोगोंकी कौन-सी अभिलाषा पूर्ण करूँ? यह उत्तम अभिलाषा, जिसे आपलोगोंने अपने हृदयमें चिरकालसे सोच रखा है, यदि दुःसाध्य भी होगी तो भी मैं उसे अवश्य पूर्ण करूंगा। कुमारद्वारा इस प्रकार पूछे जानेपर सभी देवता उनके मनोऽनुकूल हो सिर झुकाकर महात्मा गुहसे बोले- 'भय विनाशक गुह! तारक नामवाले दैत्येन्द्रने सभी देवकुलोंका विनाश कर दिया है। वह बलवान्, दुर्जय, अत्यन्त दुष्ट, दुराचारी और अतिशय क्रोधी है, आप उसीका वध | कीजिये। यही हमलोगोंकी हार्दिक अभिलाषा है।'देवताओंद्वारा ऐसा निवेदन किये जानेपर गुहने 'तथैति' कहकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। तत्पश्चात् वे जगन्नाथ गुह देवेश्वरोंद्वारा स्तुति किये जाते हुए सम्पूर्ण देवगणोंके साथ जगत्के कण्टकस्वरूप तारकका वध करनेके लिये प्रस्थित हुए। तदुपरान्त सहायक उपलब्ध हो जानेपर इन्द्रने एक कठोर वचन बोलनेवाले दूतको दैत्यसिंह तारकके पास भेजा। वह भयंकर रूपधारी दूत दैत्यराजके पास जाकर निर्भय होकर बोला ॥19 - 24 ॥
दूतने कहा- दैत्यकेतु तारकासुर स्वर्गके अधीश्वर देवराज इन्द्रने तुम्हें कुछ संदेश कहला भेजा है, उसे सुनकर तुम शक्तिपूर्वक स्वेच्छानुसार प्रयत्न करो। (उन्होंने कहलाया है कि) 'दानव जगत्का विनाश करके तुमने जो पाप कमाया है, तुम्हारे उस पापका शासन करनेके लिये मैं प्रस्तुत हूँ। इस समय में त्रिभुवनका राजा हूँ।' दूतकी ऐसी बात सुनकर तारकके नेत्र क्रोधसे लाल हो गये उसकी विभूति प्रायः नष्ट हो चुकी थी तब उस दुष्टात्माने दूतसे कहा ॥ 25-27 ॥
तारक बोला- इन्द्र ! मैंने रणभूमिमें सैकड़ों बार तुम्हारे पुरुषार्थको देख लिया है। दुर्बुद्धि इन्द्र ! निर्लज्ज होनेके कारण तुम्हें ऐसा कहते हुए लज्जा नहीं आती। ऐसा उत्तर पाकर दूतके चले जानेपर दानवराज तारक विचार करने लगा कि किसी विशिष्टकी सहायता प्राप्त हुए बिना इन्द्र इस तरहकी बातें नहीं कह सकते; क्योंकि वे हमसे पराजित हो चुके हैं। पता नहीं, अकस्मात् उन्हें कहाँसे सहायता उपलब्ध हो गयी है। इसी बीच उस दुष्ट चेष्टावाले दानवको अनर्थसूचक निमित्त दीख पड़े। उसी समय आकाशसे भूतलपर धूलकी वर्षा होने लगी तथा रक्तपात होने लगा। उसकी भुजाएँ और नेत्र काँपने लगे। उसका मुख सूख गया और उसके मनमें घबराहट उत्पन्न हो गयी। उसे अपनी पत्नियोंके मुखकमल मलिन | दीख पड़ने लगे तथा अनर्थकी सूचना देनेवाले भयंकर दुष्ट प्राणियोंके दर्शन हुए, किंतु इन सबका कुछ भी विचार न कर दैत्य तारक क्षणभरमें ही चिन्तारहित हो गया। इतनेमें ही अट्टालिकापर बैठे हुए दैत्यने आती हुई देवताओंकी सेनाको देखा जिसमें गजयूथोंके बजते हुए घंटोंका उत्कट शब्द हो रहा था उसी प्रकार जो घोड़ोंकी टापोंसे पिसी हुई धूलसे आच्छादित होनेके कारण पीली दीख रही थी तथा चलते हुए रथोंके ऊपर फहराते हुए ध्वजसमूहों,दुलाये जाते हुए देवताओंके चैवरों और अद्भुत आकारवाले विमानोंसे सुशोभित थी। जो आभूषणोंसे विभूषित, किन्नरोंके गानसे निनादित, नाना प्रकारके स्वर्गीय वृक्षोंके खिले हुए पुष्पोंको मस्तकपर धारण करनेवाले सैनिकोंसे युक्त, म्यानरहित शस्त्रास्त्रोंसे परिष्कृत और निर्मल कवचोंसे युक्त थी, जिसमें वन्दियोंद्वारा गायी जाती हुई स्तुतियोंके शब्द सुनायी पड़ रहे थे और जो नाना प्रकारके बाजोंसे निनादित हो रही थी ॥ 28-37 ॥
उसे देखकर तारकका मन कुछ उद्भ्रान्त हो उठा। तब वह विचार करने लगा कि यह कौन अपूर्व योद्धा हो सकता है, जिसे मैंने पराजित नहीं किया है। इस प्रकार वह दैत्य जब चिन्तासे व्याकुल हो रहा था, उसी समय उसने सिद्ध-वन्दियोंद्वारा गायी जाती हुई यह कठोर अक्षरोंवाली एवं हृदयविदारिणी गाथा सुनी ॥ 38-39 ॥ कुमार अप्रमेय शक्तिकी किरणोंसे आपका वर्ण पीला हो गया है। आप अपने भुजदण्डोंसे प्रचण्ड युद्धका दृश्य उत्पन्न कर देनेवाले भक्तोंके लिये सुखदायक, कुमुदिनीके वनको विकसित करनेके लिये चन्द्रमा और | दैत्यकुलरूप महासागरके लिये बडवानलके समान हैं, आपकी जय हो, जय हो षण्मुख! मधुर शब्द करनेवाला मयूर आपका वाहन है, आपका सिंहासन देवताओंके मुकुटोंकी कोरसे संघट्टित चरणनखोंके अङ्कुरसे सुशोभित होता है, आपका रुचिर चूडासमूह नूतन एवं निर्मल | कमलदलके सम्मेलनसे सुशोभित होता है, आप दैत्यवंशके लिये दुःसह दावानलके समान हैं, आपकी जय हो ऐश्वर्यशाली विशाख! आपकी जय हो आप सम्पूर्ण | लोकोंका उद्धार करनेवाले हैं, आपकी जय हो। देवसेनाके नायककी जय हो। स्कन्द! आप गौरीनन्दन और घंटाके प्रेमी हैं। ऐश्वर्यशाली प्रिय विशख! आप हाथमें पताकासमूह धारण करनेवाले हैं और आपकी छवि स्वर्णमय आभूषण धारण करनेसे सूर्यके समान चमकीली है, आपकी जय हो। आप भय उत्पन्न करनेवाले और लीलापूर्वक सम्पूर्ण शत्रुओंके विनाशकर्ता हैं, आपकी जय हो। आप सम्पूर्ण लोकोंके उद्धारक तथा असुरवर दैत्य तारकके विनाशकारक हैं, आपकी जय हो। सप्तदिवसीय बालक स्कन्द आप समस्त भुवनोंके शोकका विनाश करनेवाले हैं, आपकी जय हो, जय हो ll 40 - 43 ॥