सत्यभामाने कहा - प्रभो ! कार्तिकमास सब मासोंमें श्रेष्ठ माना गया है। मैंने उसके माहात्म्यको विस्तारपूर्वक नहीं सुना। कृपया उसीका वर्णन कीजिये ।
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- सत्यभामे! तुमने बड़ी उत्तम बात पूछी है। पूर्वकालमें महात्मा सूतने शौनक मुनिसे आदरपूर्वक कार्तिक-व्रतका वर्णन किया था। वही प्रसंग मैं तुम्हें सुनाता हूँ। सूतजीने कहा – मुनिश्रेष्ठ शौनकजी ! पूर्वकालमें कार्तिकेयजी के पूछनेपर महादेवजीने जिसका वर्णन किया था, उसको आप श्रवण कीजिये।
कार्तिकेयजी बोले- पिताजी! आप वक्ताओंमें श्रेष्ठ हैं। मुझे कार्तिकमासके स्नानकी विधि बताइये, जिससे मनुष्य दुःखरूपी समुद्रसे पार हो जाते हैं। साथ ही तीर्थके जलका माहात्म्य और माघस्नानका फल भी बताइये।
महादेवजीने कहा – एक ओर सम्पूर्ण तीर्थ, समस्त दान, दक्षिणाओंसहित यज्ञ, पुष्कर, कुरुक्षेत्र, हिमालय, अक्रूरतीर्थ, काशी और शूकरक्षेत्र में निवास तथा दूसरी ओर केवल कार्तिकमास हो तो वही भगवान् केशवको सर्वदा प्रिय है। जिसके हाथ, पैर, वाणी और मन वशमें हों तथा जिसमें विद्या, तप और कीर्ति विद्यमान हों, वही तीर्थके पूर्ण फलको प्राप्त करता है। श्रद्धारहित, नास्तिक, संशयालु और कोरी तर्कबुद्धिका सहारा लेनेवाले मनुष्य तीर्थसेवनके फलभागी नहीं होते। जो ब्राह्मण सबेरे उठकर सदा प्रातः स्नान करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो परमात्माको प्राप्त होता है। षडानन! स्नानका महत्त्व जाननेवाले पुरुषोंने चार प्रकारके स्नान बतलाये हैं-वायव्य, वारुण, ब्राह्म और दिव्य ।
यह सुनकर सत्यभामा बोलीं- प्रभो ! मुझे चारों स्नानोंके लक्षण बतलाइये भगवान् श्रीकृष्णने कहा – प्रिये ! गोधूलिद्वारा किया हुआ स्नान वायव्य कहलाता है, सागर आदि जलाशयोंमें किये हुए स्नानको वारुण कहते हैं, 'आपो हि ष्ठा मयो' आदि ब्राह्मण मन्त्रोंके उच्चारणपूर्वक जो मार्जन किया जाता है उसका नाम ब्राह्म है तथा बरसते हुए मेघके जल और सूर्यकी किरणोंसे शरीरकी शुद्धि करना दिव्य स्नान माना गया है। सब प्रकारके स्नानोंमें वारुणस्नान श्रेष्ठ है। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मन्त्रोच्चारणपूर्वक स्नान करें। परन्तु शूद्र और स्त्रियोंके लिये बिना मन्त्रके ही स्नानका विधान है। बालक, युवा, वृद्ध, पुरुष, स्त्री और नपुंसक सब लोग कार्तिक और माघमें प्रातः स्नानकी प्रशंसा करते हैं। कार्तिकमें प्रातः काल स्नान करनेवाले लोग मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं।
कार्तिकेयजी बोले- पिताजी! अन्य धर्मोंका भी वर्णन कीजिये, जिनका अनुष्ठान करनेसे मनुष्य अपने समस्त पाप धोकर देवता बन जाता है।
महादेवजीने कहा- बेटा! कार्तिकमासको उपस्थित देख जो मनुष्य दूसरेका अन्न त्याग देता है, वह प्रतिदिन कृच्छ्रव्रतका फल प्राप्त करता है। कार्तिकमें तेल, मधु, काँसेके बर्तनमें भोजन और मैथुनका विशेषरूपसे परित्याग करना चाहिये। एक बार भी मांस भक्षण करनेसे मनुष्य राक्षसकी योनिमें जन्म पाता है और साठ हजार वर्षोंतक विष्ठामें डालकर सड़ाया जाता है। उससे छुटकारा पानेपर वह पापी विष्ठा खानेवाला ग्राम-शूकर होता है। कार्तिकमासमें शास्त्रविहित भोजनका नियम करनेपर अवश्य ही मोक्ष प्राप्त होता है। भगवान् विष्णुका परमधाम ही मोक्ष है। कार्तिकके समान कोई मास नहीं है, श्रीविष्णुसे बढ़कर कोई देवता नहीं है, वेदके तुल्य कोई शास्त्र नहीं है, गंगाके समान कोई तीर्थ नहीं है, सत्यके समान सदाचार, सत्ययुगके समान युग, रसनाके तुल्य तृप्तिका साधन, दानके सदृश सुख, धर्मके समान मित्र और नेत्रके समान कोई ज्योति नहीं है। * स्नान करनेवाले पुरुषोंके लिये समुद्रगामिनी पवित्र नदी प्रायः दुर्लभ होती है। कुलके अनुरूप उत्तम शीलवाली कन्या, कुलीन और शीलवान् दम्पति, जन्मदायिनी माता, विशेषतः पिता, साधु पुरुषोंके सम्मानका अवसर, धार्मिक पुत्र, द्वारकाका निवास, भगवान् श्रीकृष्णका दर्शन, गोमतीका स्नान और कार्तिकका व्रत—ये सब मनुष्यके लिये प्रायः दुर्लभ हैं। चन्द्रमा और सूर्यके ग्रहणकालमें ब्राह्मणोंको पृथ्वी दान करनेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वह कार्तिकमें भूमिपर शयन करनेवाले पुरुषको स्वतः प्राप्त हो जाता है। ब्राह्मण-दम्पतिको भोजन कराये, चन्दन आदिसे उनकी पूजा करे। कम्बल, नाना प्रकारके रत्न और वस्त्र दान करे। ओढ़नेके साथ ही बिछौना भी दे। तुम्हें कार्तिकमासमें जूते और छातेका भी दान करना चाहिये। कार्तिकमासमें जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तलमें भोजन करता है, वह चौदह इन्द्रोंकी आयुपर्यन्त कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता। उसे सम्पूर्ण कामनाओं तथा समस्त तीर्थोंका फल प्राप्त होता है। पलाशके पत्तेपर भोजन करनेसे मनुष्य कभी नरक नहीं देखता; किन्तु वह पलाशके बिचले पत्रका अवश्य त्याग कर दे।
कार्तिकमें तिलका दान, नदीका स्नान, सदा साधुपुरुषोंका सेवन और पलाशके पत्तोंमें भोजन सदा मोक्ष देनेवाला है। कार्तिकके महीनेमें मौन व्रतका पालन, पलाशके पत्तेमें भोजन, तिलमिश्रित जलसे स्नान, निरन्तर क्षमाका आश्रय और पृथ्वीपर शयन करनेवाला पुरुष युग-युगके उपार्जित पापोंका नाश कर डालता है। जो कार्तिकमासमें भगवान् विष्णुके सामने उषाकालतक जागरण करता है, उसे सहस्र गोदानोंका फल मिलता है। पितृपक्ष में अन्नदान करनेसे तथा ज्येष्ठ और आषाढमासमें जल देने से मनुष्योंको जो फल मिलता है, वह कार्तिकमें दूसरोंका दीपक जलानेमात्रसे प्राप्त हो जाता है। जो बुद्धिमान् कार्तिकमें मन, | वाणी और क्रियाद्वारा पुष्कर तीर्थका स्मरण करता है, उसे लाखों-करोड़ोंगुना पुण्य होता है । माघमासमें प्रयाग, कार्तिक में पुष्कर ● और वैशाखमासमें अवन्तीपुरी (उज्जैन) – ये एक युगतक उपार्जित किये हुए पापोंका नाश कर डालते हैं। कार्तिकेय ! संसारमें विशेषतः कलियुगमें वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरोंके उद्धारके लिये श्रीहरिका सेवन करते हैं। बेटा! बहुत से पिण्ड देने और गयामें श्राद्ध आदि करनेकी क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो हरिभजनके ही प्रभावसे पितरोंका नरकसे उद्धार कर देते हैं। यदि पितरोंके उद्देश्यसे दूध आदिके द्वारा भगवान् विष्णुको स्नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्गमें पहुँचकर कोटि कल्पोंतक देवताओंके साथ निवास करते हैं। जो कमलके एक फूलसे भी देवेश्वर भगवान् लक्ष्मीपतिका पूजन करता है, वह एक करोड़ वर्षतकके पापोंका नाश कर देता है। देवताओंके स्वामी भगवान् विष्णु कमलके एक पुष्पसे भी पूजित और अभिवन्दित होनेपर एक हजार सात सौ अपराध क्षमा कर देते हैं। षडानन! जो मुखमें, मस्तकपर तथा शरीरमें भगवान्की प्रसादभूता तुलसीको प्रसन्नतापूर्वक धारण करता है, उसे कलियुग नहीं छूता। भगवान् विष्णुको निवेदन किये हुए प्रसादसे जिसके शरीरका स्पर्श होता है, उसके पाप और व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। शंखका जल, श्रीहरिको भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ नैवेद्य, चरणोदक, चन्दन तथा प्रसादस्वरूप धूप- ये ब्रह्महत्याका भी पाप दूर करनेवाले हैं।