महादेवजी कहते हैं— सुरश्रेष्ठ कार्तिकेय ! अब प्रबोधिनी एकादशीका माहात्म्य सुनो। यह पापका नाशक, पुण्यकी वृद्धि करनेवाला तथा तत्त्वचिन्तनपरायण पुरुषोंको मोक्ष देनेवाला है। समुद्रसे लेकर सरोवरोंतक जितने तीर्थ हैं, वे भी तभीतक गरजते हैं जबतक कि कार्तिकमें श्रीहरिकी प्रबोधिनी तिथि नहीं आती। प्रबोधिनीको एक ही उपवाससे सहस्र अश्वमेध और सौ राजसूय यज्ञोंका फल मिल जाता है। इस चराचर त्रिलोकीमें जो वस्तु अत्यन्त दुर्लभ मानी गयी है, उसे भी माँगनेपर हरिबोधिनी एकादशी प्रदान करती है। यदि हरिबोधिनी एकादशीको उपवास किया जाय तो वह अनायास ही ऐश्वर्य, सन्तान, ज्ञान, राज्य और सुख-सम्पत्ति प्रदान करती है। मनुष्यके किये हुए मेरुपर्वतके समान बड़े-बड़े पापोंको भी हरिबोधिनी एकादशी एक ही उपवाससे भस्म कर डालती है। जो प्रबोधिनी एकादशीको स्वभावसे ही विधिपूर्वक उपवास करता है, वह शास्त्रोक्त फलका भागी होता है। प्रबोधिनी एकादशीको रात्रिमें जागरण करनेसे पहलेके हजारों जन्मोंकी की हुई पापराशि रूईके ढेरकी भाँति भस्म हो जाती है।
रात्रिमें जागरण करते समय भगवत्सम्बन्धी गीत, वाद्य, नृत्य और पुराणोंके पाठकी भी व्यवस्था करनी चाहिये। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन, फल और अर्घ्य आदिसे भगवान्की पूजा करनी चाहिये। मनमें श्रद्धा रखकर दान देना और इन्द्रियोंको संयममें रखना चाहिये। सत्यभाषण, निद्राका अभाव, प्रसन्नता, शुभ कर्ममें प्रवृत्ति, मनमें आश्चर्य और उत्साह, आलस्य आदिका त्याग, भगवान्की परिक्रमा तथा नमस्कार - इन बातोंका यत्नपूर्वक पालन करना चाहिये। महाभाग ! प्रत्येक पहरमें उत्साह और उमंगके साथ भक्तिपूर्वक भगवान्की आरती उतारनी चाहिये। जो पुरुष भगवान् के समीप एकाग्रचित्त होकर उपर्युक्त गुणोंसे युक्त जागरण करता है, वह पुन: इस पृथ्वीपर जन्म नहीं लेता। जो धनकी कृपणता छोड़कर इस प्रकार भक्तिभावसे एकादशीको जागरण करता है, वह परमात्मामें लीन हो जाता है। जो कार्तिकमें पुरुषसूक्तके द्वारा प्रतिदिन श्रीहरिका पूजन करता है, उसके द्वारा करोड़ों वर्षोंतक भगवान्की पूजा सम्पन्न हो जाती
है। जो मनुष्य पांचरात्रमें बतायी हुई यथार्थ विधिके अनुसार कार्तिकमें भगवान्का पूजन करता है, वह मोक्षका भागी होता है। जो कार्तिकमें 'ॐ नमो नारायणाय' इस मन्त्रके द्वारा श्रीहरिकी अर्चना करता है, वह नरकके दुःखोंसे छुटकारा पाकर अनामय पदको प्राप्त होता है। जो कार्तिकमें श्रीविष्णुसहस्रनाम तथा गजेन्द्रमोक्षका पाठ करता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। उसके कुलमें जो सैकड़ों, हजारों पुरुष उत्पन्न हो चुके हैं, वे सभी श्रीविष्णुधामको प्राप्त होते हैं। अतः एकादशीको जागरण अवश्य करना चाहिये। जो कार्तिकमें रात्रिके पिछले पहर में भगवान् के सामने स्तोत्रगान करता है, वह अपने पितरोंके साथ श्वेतद्वीपमें निवास करता है। जो मनुष्य कार्तिकशुक्लपक्ष में एकादशीका व्रत पूर्ण करके प्रातः काल सुन्दर कलश दान करता है, वह श्रीहरिके परमधामको प्राप्त होता है।
व्रतधारियोंमें श्रेष्ठ कार्तिकेय ! अब मैं तुम्हें महान् पुण्यदायक व्रत बताता हूँ। यह व्रत कार्तिकके अन्तिम पाँच दिनोंमें किया जाता है। इसे भीष्मजीने भगवान् वासुदेवसे प्राप्त किया था, इसलिये यह व्रत भीष्मपंचक नामसे प्रसिद्ध है। भगवान् केशवके सिवा दूसरा कौन ऐसा है, जो इस व्रतके गुणोंका यथावत् वर्णन कर सके। वसिष्ठ, भृगु और गर्ग आदि मुनीश्वरोंने सत्ययुगके आदिमें कार्तिकके शुक्लपक्षमें इस पुरातन धर्मका अनुष्ठान किया था। राजा अम्बरीषने भी त्रेता आदि युगोंमें इस व्रतका पालन किया था। ब्राह्मणोंने ब्रह्मचर्यपालन, जप तथा हवन-कर्म आदिके द्वारा और क्षत्रियों एवं वैश्योंने सत्य-शौच आदिके पालनपूर्वक इस व्रतका अनुष्ठान किया है। सत्यहीन मूढ़ मनुष्योंके लिये इस व्रतका अनुष्ठान असम्भव है। जो इस व्रतको पूर्ण कर लेता है, उसने मानो सब कुछ कर लिया। कार्तिक शुक्लपक्षमें एकादशीको विधिपूर्वक स्नान करके पाँच दिनोंका व्रत ग्रहण करे। व्रती पुरुष प्रातः स्नानके बाद मध्याह्नके समय भी नदी, झरने या पोखरेपर जाकर शरीर में गोबर लगाकर विशेषरूपसे स्नान करे। फिर चावल, जौ और तिलोंके द्वारा क्रमशः देवताओं, ऋषियों और पितरोंका तर्पण करे। मौनभावसे स्नान करके धुले हुए वस्त्र पहन दृढ़तापूर्वक व्रतका पालन करे। ब्राह्मणको पंचरत्न दान दे। लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णुका प्रतिदिन पूजन करे। इस पंचकव्रतके अनुष्ठानसे मनुष्य वर्षभरके सम्पूर्ण व्रतोंका फल प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य निम्नांकित मन्त्रोंसे भीष्मको जलदान देता और अर्घ्य के द्वारा उनका पूजन (सत्कार) करता है, वह मोक्षका भागी होता है । मन्त्र इस प्रकार है
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृत्यप्रवराय च।
अनपत्याय भीष्माय उदकं भीष्मवर्मणे ॥
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च।
अर्घ्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ॥
(125 43-44)
'जिनका गोत्र वैयाघ्रपद और प्रवर सांकृत्य हैं, उन सन्तानरहित राजर्षि भीष्मके लिये यह जल समर्पित है। जो वसुओंके अवतार तथा राजा शन्तनुके पुत्र हैं, उन आजन्म ब्रह्मचारी भीष्मको मैं अर्घ्य दे रहा हूँ।
तत्पश्चात् सब पापोंका हरण करनेवाले श्रीहरिका पूजन करे। उसके बाद प्रयत्नपूर्वक भीष्मपंचक व्रतका पालन करना चाहिये। भगवान्को भक्तिपूर्वक जलसे स्नान कराये। फिर मधु, दूध, घी, पंचगव्य, गन्ध और चन्दनमिश्रित जलसे उनका अभिषेक करे। तदनन्तर सुगन्धित चन्दन और केशरमें कपूर और खस मिलाकर भगवान्के श्रीविग्रहपर उसका लेप करे। फिर गन्ध और धूपके साथ सुन्दर फूलोंसे श्रीहरिकी पूजा करे तथा उनकी प्रसन्नताके लिये भक्तिपूर्वक घी मिलाया हुआ गूगल जलाये। लगातार पाँच दिनोंतक भगवान्के समीप दिन-रात दीपक जलाये रखे। देवाधिदेव श्रीविष्णुको नैवेद्यके रूपमें उत्तम अन्न निवेदन करे। इस प्रकार भगवान्का स्मरण और उन्हें प्रणाम करके उनकी अर्चना करे। फिर 'ॐ नमो वासुदेवाय' इस मन्त्रका एक सौ आठ बार जप करे तथा उस षडक्षर मन्त्रके अन्तमें 'स्वाहा' पद जोड़कर उसके उच्चारणपूर्वक घृतमिश्रित तिल, चावल और जौ आदिसे अग्निमें हवन करे। सायंकालमें सन्ध्योपासना करके भगवान् गरुडध्वजको प्रणाम करे और पूर्ववत् षडक्षर मन्त्रका जप करके व्रत - पालनपूर्वक पृथ्वीपर शयन करे। इन सब विधियोंका पाँच दिनोंतक पालन करते रहना चाहिये।
एकादशीको सनातन भगवान् हृषीकेशका पूजन करके थोड़ा सा गोबर खाकर उपवास करे। फिर द्वादशीको व्रती पुरुष भूमिपर बैठकर मन्त्रोच्चारणके साथ गोमूत्र पान करे । त्रयोदशीको दूध पीकर रहे। चतुर्दशीको दही भोजन करे। इस प्रकार शरीरकी शुद्धिके लिये चार दिनोंका लंघन करके पाँचवें दिन स्नानके पश्चात् विधिपूर्वक भगवान् केशवकी पूजा करे और भक्तिके साथ ब्राह्मणोंको भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दे । पापबुद्धिका परित्याग करके बुद्धिमान् पुरुष ब्रह्मचर्यका पालन करे। शाकाहारसे अथवा मुनियोंके अन्न (तिन्नीके चावल) से इस प्रकार निर्वाह करते हुए मनुष्य श्रीकृष्णके पूजनमें संलग्न रहे। उसके बाद रात्रिमें पहले पंचगव्य-पान करके पीछे अन्न भोजन करे। इस प्रकार भलीभाँति व्रतकी पूर्ति करनेसे मनुष्य शास्त्रोक्त फलका भागी होता है। इस भीष्म-व्रतका अनुष्ठान करनेसे मनुष्य परमपदको प्राप्त करता है। स्त्रियोंको भी अपने स्वामीकी आज्ञा लेकर इस धर्मवर्धक व्रतका अनुष्ठान करना चाहिये। विधवाएँ भी मोक्ष सुखकी वृद्धि, सम्पूर्ण कामनाओंकी पूर्ति तथा पुण्यकी प्राप्तिके लिये इस व्रतका पालन करें। भगवान् विष्णुके चिन्तनमें लगे रहकर प्रतिदिन बलिवैश्वदेव भी करना चाहिये। यह आरोग्य और पुत्र प्रदान करनेवाला तथा महापातकोंका नाश करनेवाला है। एकादशीसे लेकर पूर्णिमातकका जो व्रत है, वह इस पृथ्वीपर भीष्मपंचकके नामसे विख्यात है। भोजनपरायण पुरुषके लिये इस व्रतका निषेध है। इस व्रतका पालन करनेपर भगवान् विष्णु शुभ फल प्रदान करते हैं।
महादेवजी कहते हैं - यह मोक्षदायक शास्त्र अनधिकारी पुरुषोंके सामने प्रकाशित करनेयोग्य नहीं है। जो मनुष्य इसका श्रवण करता है, वह मोक्षको प्राप्त होता है। कार्तिकेय ! इस व्रतको यत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिये। जो त्यागी मनुष्य हैं, वे भी यदि इस व्रतका अनुष्ठान करें तो उनके पुण्यको बतलाने में मैं असमर्थ हूँ। इस प्रकार कार्तिकमासका जो कुछ भी फल है, वह सब मैंने बतला दिया।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं - देवदेव भगवान् शंकरने पुत्रकी मंगल कामनासे यह व्रत उसे बताया था। पिताके वचन सुनकर कार्तिकेय आनन्दमग्न हो गये। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कार्तिकमाहात्म्यका पाठ करता, सुनता और सुनकर हृदयमें धारण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है। इस माहात्म्यका श्रवण करनेमात्रसे ही धन, धान्य, यश, पुत्र, आयु और आरोग्यकी प्राप्ति हो जाती है।
पद्मपुराणान्तर्गत कार्तिकमास माहात्म्य सम्पूर्ण