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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य (मास माहातम्य)

Kartik,Vaishakh and Magh Mahatamya (Maas Mahatamya)

कथा 20 - Katha 20

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वैशाखमासकी अन्तिम तीन तिथियोंकी महत्ता तथा ग्रन्थका उपसंहार



श्रुतदेवजी कहते हैं- राजेन्द्र ! वैशाखके शुक्लपक्षमें जो अन्तिम तीन त्रयोदशीसे लेकर पूर्णिमातककी तिथियाँ हैं, वे बड़ी पवित्र और शुभकारक हैं। उनका नाम 'पुष्करिणी' है, वे सब पापोंका क्षय करनेवाली हैं। जो सम्पूर्ण वैशाखमासमें स्नान करनेमें असमर्थ हो, वह यदि इन तीन तिथियोंमें भी स्नान करे, तो वैशाखमासका पूरा फल पा लेता है। पूर्वकालमें वैशाखमासकी एकादशी तिथिको शुभ अमृत प्रकट हुआ। द्वादशीको भगवान् विष्णुने उसकी रक्षा की। त्रयोदशीको उन श्रीहरिने देवताओंको सुधा - पान कराया। चतुर्दशीको देवविरोधी दैत्योंका संहार किया और पूर्णिमाके दिन समस्त देवताओंको उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया। इसलिये देवताओंने सन्तुष्ट होकर इन तीन तिथियोंको वर दिया- 'वैशाखमासकी ये तीन शुभ तिथियाँ मनुष्योंके पापोंका नाश करनेवाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देनेवाली हों। जो मनुष्य इस सम्पूर्ण मासमें स्नान न कर सका हो, वह इन तिथियोंमें स्नान कर लेनेपर पूर्ण फलको ही पाता है। वैशाखमासमें लौकिक कामनाओंका नियमन करनेपर मनुष्य निश्चय ही भगवान् विष्णुका सायुज्य प्राप्त कर लेता है। महीनेभर नियम निभानेमें असमर्थ मानव यदि उक्त तीन दिन भी कामनाओं का संयम कर सके तो उतनेसे ही पूर्ण फलको पाकर भगवान् विष्णुके धाममें आनन्दका अनुभव करता है।'

इस प्रकार वर देकर देवता अपने धामको चले गये। अतः पुष्करिणी नामसे प्रसिद्ध अन्तिम तीन तिथियाँ पुण्यदायिनी, समस्त पापराशिका नाश करनेवाली तथा पुत्र-पौत्रको बढ़ानेवाली हैं। जो वैशाखमासमें अन्तिम तीन दिन गीताका पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेध-यज्ञका फल मिलता है। जो उक्त तीनों दिन विष्णुसहस्रनामका पाठ करता है, उसके पुण्यफलका वर्णन करनेमें इस भूलोक तथा स्वर्गलोकमें कौन समर्थ है? पूर्णिमाको सहस्रनामोंके द्वारा भगवान् मधुसूदनको दूधसे नहलाकर मनुष्य पापहीन वैकुण्ठधाममें जाता है। वैशाखमासमें प्रतिदिन भागवतके आधे या चौथाई श्लोकका पाठ करनेवाला मनुष्य ब्रह्मभावको प्राप्त होता है। जो वैशाखके अन्तिम तीन दिनोंमें भागवतशास्त्रका श्रवण करता है, वह जलसे कमलके पत्तेकी भाँति कभी पापोंसे लिप्त नहीं होता। उक्त तीनों दिनोंके सेवनसे कितने ही मनुष्योंने देवत्व प्राप्त कर लिया, कितने ही सिद्ध हो गये और कितनोंने ब्रह्मत्व पा लिया। ब्रह्मज्ञानसे मुक्ति होती है। अथवा प्रयागमें मृत्यु होनेसे या वैशाखमासमें नियमपूर्वक प्रातः काल जलमें स्नान करनेसे मोक्षकी प्राप्ति होती है। इसलिये वैशाखके अन्तिम तीन दिनोंमें स्नान, दान और भगवत्पूजन आदि अवश्य करना चाहिये। वैशाखमासके उत्तम माहात्म्यका पूरा-पूरा वर्णन रोग-शोकसे रहित जगदीश्वर भगवान् नारायणके सिवा दूसरा कौन कर सकता है। तुम भी वैशाखमासमें दान आदि उत्तम कर्मका अनुष्ठान करो। इससे निश्चय ही तुम्हें भोग और मोक्षकी प्राप्ति होगी ।

इस प्रकार मिथिलापति जनकको उपदेश देकर श्रुतदेवजीने उनकी अनुमति ले वहाँसे जानेका विचार किया। तब राजर्षि जनकने अपने अभ्युदयके लिये उत्तम उत्सव कराया और श्रुतदेवजीको पालकीपर बिठाकर विदा किया। वस्त्र, आभूषण, गौ, भूमि, तिल और सुवर्ण आदिसे उनकी पूजा और वन्दना करके राजाने उनकी परिक्रमा की। तत्पश्चात् उनसे विदा हो महातेजस्वी एवं परम यशस्वी श्रुतदेवजी सन्तुष्ट हो प्रसन्नतापूर्वक वहाँसे अपने स्थानको गये। राजाने वैशाख-धर्मका पालन करके मोक्ष प्राप्त किया।

नारदजी कहते हैं - अम्बरीष ! यह उत्तम उपाख्यान मैंने तुम्हें सुनाया है, जो कि सब पापोंका नाशक तथा सम्पूर्ण सम्पत्तियोंको देनेवाला है। इससे मनुष्य भुक्ति, मुक्ति, ज्ञान एवं मोक्ष पाता है। नारदजीका यह वचन सुनकर महायशस्वी राजा अम्बरीष मन-ही-मन बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने बाह्य जगत्के व्यापारोंसे निवृत्त होकर मुनिको साष्टांग प्रणाम किया और अपने सम्पूर्ण वैभवोंसे उनकी पूजा की। तत्पश्चात् उनसे विदा लेकर देवर्षि नारदजी दूसरे लोकमें चले गये; क्योंकि दक्ष प्रजापतिके शापसे वे एक स्थानपर नहीं ठहर सकते। राजर्षि अम्बरीष भी नारदजीके बताये हुए सब धर्मोका अनुष्ठान करके निर्गुण परब्रह्म परमात्मामें विलीन हो गये। जो इस पापनाशक एवं पुण्यवर्द्धक उपाख्यानको सुनता अथवा पढ़ता है, वह परम गतिको प्राप्त होता है। जिनके घरमें यह लिखी हुई पुस्तक रहती है, उनके हाथमें मुक्ति आ जाती है। फिर जो सदा इसके श्रवणमें मन लगाते हैं, उनके लिये तो कहना ही क्या है।


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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य
Index


  1. [कथा 1]भगवद्भक्तिके लक्षण तथा वैशाख स्नानकी महिमा
  2. [कथा 2]वैशाख माहात्म्य
  3. [कथा 3]वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप-प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन
  4. [कथा 4]वैशाखमासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव पूजनकी विधि एवं महिमा
  5. [कथा 5]यम- ब्राह्मण-संवाद - नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोंका वर्णन
  6. [कथा 6]तुलसीदल और अश्वत्थकी महिमा तथा वैशाख माहात्म्यके सम्बन्धमें तीन प्रेतोंके उद्धारकी कथा
  7. [कथा 7]वैशाख माहात्म्यके प्रसंगमें राजा महीरथकी कथा और यम- ब्राह्मण-संवादका उपसंहार
  8. [कथा 8]वैशाखमासकी श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानोंकी महिमा
  9. [कथा 9]वैशाखमासमें विविध वस्तुओंके दानका महत्त्व तथा वैशाखस्नानके नियम
  10. [कथा 10]वैशाखमासमें छत्रदानसे हेमकान्तका उद्धार
  11. [कथा 11]महर्षि वसिष्ठके उपदेशसे राजा कीर्तिमान्‌का अपने राज्यमें वैशाखमासके धर्मका पालन कराना और यमराजका ब्रह्माजीसे राजाके लिये शिकायत करना
  12. [कथा 12]ब्रह्माजीका यमराजको समझाना और भगवान् विष्णुका उन्हें वैशाखमासमें भाग दिलाना
  13. [कथा 13]भगवत्कथाके श्रवण और कीर्तनका महत्त्व तथा वैशाखमासके धर्मोके अनुष्ठानसे राजा पुरुयशाका संकटसे उद्धार
  14. [कथा 14]राजा पुरुयशाको भगवान्‌का दर्शन, उनके द्वारा भगवत्स्तुति और भगवान्‌के वरदानसे राजाकी सायुज्य मुक्ति
  15. [कथा 15]शंख-व्याध-संवाद, व्याधके पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  16. [कथा 16]भगवान् विष्णुके स्वरूपका विवेचन, प्राणकी श्रेष्ठता, जीवोंके
  17. [कथा 17]वैशाखमासके माहात्म्य-श्रवणसे एक सर्पका उद्धार और वैशाख धर्मके पालन तथा रामनाम-जपसे व्याधका वाल्मीकि होना
  18. [कथा 18]धर्मवर्णकी कथा, कलिकी अवस्थाका वर्णन, धर्मवर्ण और पितरोंका संवाद एवं वैशाखकी अमावास्याकी श्रेष्ठता
  19. [कथा 19]वैशाखकी अक्षय तृतीया और द्वादशीकी महत्ता, द्वादशीके पुण्यदानसे एक कुतियाका उद्धार
  20. [कथा 20]वैशाखमासकी अन्तिम तीन तिथियोंकी महत्ता तथा ग्रन्थका उपसंहार
  21. [कथा 21]कार्तिकमासकी श्रेष्ठता तथा उसमें करनेयोग्य स्नान, दान, भगवत्पूजन आदि धर्माका महत्त्व
  22. [कथा 22]विभिन्न देवताओंके संतोषके लिये कार्तिकस्नानकी विधि तथा स्नानके लिये श्रेष्ठ तीर्थोंका वर्णन
  23. [कथा 23]कार्तिकव्रत करनेवाले मनुष्यके लिये पालनीय नियम
  24. [कथा 24]कार्तिकव्रतसे एक पतित ब्राह्मणीका उद्धार तथा दीपदान एवं आकाशदीपकी महिमा
  25. [कथा 25]कार्तिकमें तुलसी-वृक्षके आरोपण और पूजन आदिकी महिमा
  26. [कथा 26]त्रयोदशीसे लेकर दीपावलीतकके उत्सवकृत्यका वर्णन
  27. [कथा 27]कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा और यमद्वितीयाके कृत्य तथा बहिनके घरमें भोजनका महत्त्व
  28. [कथा 28]आँवलेके वृक्षकी उत्पत्ति और उसका माहात्म्य सूतजी कहते हैं-कार्तिकके शुक्लपक्षकी चतुर्दशीको आँवलेका
  29. [कथा 29]गुणवतीका कार्तिकव्रतके पुण्यसे सत्यभामाके रूपमें अवतार तथा भगवान्‌के द्वारा शंखासुरका वध और वेदोंका उद्धार
  30. [कथा 30]कार्तिकव्रतके पुण्यदानसे एक राक्षसीका उद्धार
  31. [कथा 31]भक्तिके प्रभावसे विष्णुदास और राजा चोलका भगवान्‌के पार्षद होना
  32. [कथा 32]जय-विजयका चरित्र
  33. [कथा 33]सांसर्गिक पुण्यसे धनेश्वरका उद्धार, दूसरोंके पुण्य और पापकी आंशिक प्राप्तिके कारण तथा मासोपवास- व्रतकी संक्षिप्त विधि
  34. [कथा 34]तुलसीविवाह और भीष्मपंचक-व्रतकी विधि एवं महिमा
  35. [कथा 35]एकादशीको भगवान्‌के जगानेकी विधि, कार्तिकव्रतका उद्यापन और अन्तिम तीन तिथियोंकी महिमाके साथ ग्रन्थका उपसंहार
  36. [कथा 36]कार्तिक-व्रतका माहात्म्य – गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  37. [कथा 37]कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंगमें शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  38. [कथा 38]कार्तिकमासमें स्नान और पूजनकी विधि
  39. [कथा 39]कार्तिक- व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  40. [कथा 40]कार्तिक-व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  41. [कथा 41]कार्तिक माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदासकी कथा
  42. [कथा 42]पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  43. [कथा 43]अशक्तावस्थामें कार्तिक-व्रतके निर्वाहका उपाय
  44. [कथा 44]कार्तिकमासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  45. [कथा 45]शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास-व्रतकी विधि का वर्णन
  46. [कथा 46]शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  47. [कथा 47]भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली गोवर्धनपूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  48. [कथा 48]प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  49. [कथा 49]माघ माहात्म्य
  50. [कथा 50]मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  51. [कथा 51]मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  52. [कथा 52]यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  53. [कथा 53]महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  54. [कथा 54]माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  55. [कथा 55]माघमासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति