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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य (मास माहातम्य)

Kartik,Vaishakh and Magh Mahatamya (Maas Mahatamya)

कथा 9 - Katha 9

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वैशाखमासमें विविध वस्तुओंके दानका महत्त्व तथा वैशाखस्नानके नियम

नारदजी कहते हैं - वैशाखमासमें धूपसे तपे और थके-माँदे ब्राह्मणोंको श्रमनाशक सुखद पलंग देकर मनुष्य कभी जन्म-मृत्यु आदिके क्लेशोंसे कष्ट नहीं पाता। जो वैशाखमासमें पहननेके लिये कपड़े और बिछावन देता है, वह उसी जन्ममें सब भोगों से सम्पन्न हो जाता है और समस्त पापोंसे रहित हो ब्रह्मनिर्वाण (मोक्ष) - को प्राप्त होता है। जो तिनकेकी बनी हुई या अन्य खजूर आदिके पत्तोंकी बनी हुई चटाई दान करता है, उसकी उस चटाईपर साक्षात् भगवान् विष्णु शयन करते हैं। चटाई देनेवाला बैठने और बिछाने आदिमें सब ओरसे सुखी रहता है। जो सोने के लिये चटाई और कम्बल देता है, वह उतने ही मात्रसे मुक्त हो जाता है। निद्रासे दुःखका नाश होता है, निद्रासे थकावट दूर होती है और वह निद्रा चटाईपर सोनेवालेको सुखपूर्वक आ जाती है। धूपसे कष्ट पाये हुए श्रेष्ठ ब्राह्मणको जो सूक्ष्मतर वस्त्र दान करता है, वह पूर्ण आयु और परलोकमें उत्तम गतिको पाता है। जो पुरुष ब्राह्मणको फूल और रोली देता है, वह लौकिक भोगोंका भोग करके मोक्षको प्राप्त होता है। जो खस, कुश और जलसे वासित चन्दन देता है, वह सब भोगोंमें देवताओंकी सहायता पाता है तथा उसके पाप और दुःखकी हानि होकर परमानन्दकी प्राप्ति होती है। वैशाखके धर्मको जाननेवाला जो पुरुष गोरोचन और कस्तूरीका दान करता है, वह तीनों तापोंसे मुक्त होकर परम शान्तिको प्राप्त होता है। जो विश्रामशाला बनवाकर प्याऊसहित ब्राह्मणको दान करता है, वह लोकोंका अधिपति होता है। जो सड़क के किनारे बगीचा, पोखरा, कुआँ और मण्डप बनवाता है, वह धर्मात्मा है, उसे पुत्रोंकी क्या आवश्यकता है। उत्तम शास्त्रका श्रवण, तीर्थयात्रा, सत्संग, जलदान, अन्नदान, पीपलका वृक्ष लगाना तथा पुत्र - इन सातको विज्ञ पुरुष सन्तान मानते हैं। जो वैशाखमासमें तापनाशक तक्र दान करता है, वह इस पृथ्वीपर विद्वान् और धनवान् होता है। धूपके समय मट्ठेके समान कोई दान नहीं, इसलिये रास्तेके थके-माँदे ब्राह्मणको मट्ठा देना चाहिये। जो वैशाखमासमें धूपकी शान्तिके लिये दही और खाँड़ दान करता है तथा विष्णुप्रिय वैशाखमासमें जो स्वच्छ चावल देता है, वह पूर्ण आयु और सम्पूर्ण यज्ञोंका फल पाता है। जो पुरुष ब्राह्मणके लिये गोघृत अर्पण करता है, वह अश्वमेध यज्ञका फल पाकर विष्णुलोक में आनन्दका अनुभव करता है। जो दिनके तापकी शान्तिके लिये सायंकालमें ब्राह्मणको ऊख दान करता है, उसको अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जो वैशाखमासमें शामको ब्राह्मणके लिये फल और शर्बत देता है, उससे उसके पितरोंको निश्चय ही अमृतपानका अवसर मिलता है। जो वैशाखके महीनेमें पके हुए आमके फलके साथ शर्बत देता है, उसके सारे पाप निश्चय ही नष्ट हो जाते हैं। जो वैशाखकी अमावास्याको पितरोंके उद्देश्यसे कस्तूरी, कपूर, बेला और खसकी सुगन्धसे वासित शर्बतसे भरा हुआ घड़ा दान करता है, वह छियानबे घड़ा दान करनेका पुण्य पाता है। वैशाखमें तेल लगाना, दिनमें सोना, कांस्यके पात्रमें भोजन करना, खाटपर सोना, घरमें नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना, दुबारा भोजन करना तथा रातमें खाना - ये आठ बातें त्याग देनी चाहिये । जो वैशाखमें व्रतका पालन करनेवाला पुरुष पद्म-पत्तेमें भोजन करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो विष्णुलोकमें जाता है। जो विष्णुभक्त पुरुष वैशाखमासमें नदी स्नान करता है, वह तीन जन्मोंके पापसे निश्चय ही मुक्त हो जाता है। जो प्रातः काल सूर्योदयके समय किसी समुद्रगामिनी नदीमें वैशाख - स्नान करता है, वह सात जन्मोंके पापसे तत्काल छूट जाता है। जो मनुष्य सात गंगाओंमेंसे किसीमें भी उषःकालमें स्नान करता है, वह करोड़ों जन्मोंमें उपार्जित किये हुए पापसे निस्सन्देह मुक्त हो जाता है। जाह्नवी (गंगा), वृद्ध गंगा (गोदावरी), कालिन्दी (यमुना), सरस्वती, कावेरी, नर्मदा और वेणी- ये सात गंगाएँ कही गयी हैं। 2 वैशाखमास आनेपर जो प्रातःकाल बावलियोंमें स्नान करता है, उसके महापातकोंका नाश हो जाता है। कन्द, मूल, फल, शाक, नमक, गुड़, बेर, पत्र, जल और तक्र- जो भी वैशाखमें दिया जाय, वह सब अक्षय होता है। ब्रह्मा आदि देवता भी बिना दिये हुए कोई वस्तु नहीं पाते। जो दानसे हीन है, वह निर्धन होता है। अतः सुखकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको वैशाख मासमें अवश्य दान करना चाहिये। सूर्यदेवके मेषराशिमें स्थित होनेपर भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे अवश्य प्रातः काल स्नान करके भगवान् विष्णुकी पूजा करनी चाहिये । कोई महीरथ नामक एक राजा था, जो कामनाओंमें आसक्त और अजितेन्द्रिय था। वह केवल वैशाख स्नानके सुयोगसे स्वतः वैकुण्ठधामको चला गया। वैशाखमासके देवता भगवान् मधुसूदन हैं। अतएव वह सफल मास है। वैशाखमासमें भगवान्‌की प्रार्थनाका मन्त्र इस प्रकार है

मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ । प्रातः स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव ॥

'हे मधुसूदन! हे देवेश्वर माधव ! मैं मेषराशिमें सूर्यके स्थित होनेपर वैशाखमासमें प्रातः स्नान करूँगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिये।'

तत्पश्चात् निम्नांकित मन्त्रसे अर्घ्य प्रदान करे वैशाखे मेषगे भानौ प्रातः स्नानपरायणः ।
अर्घ्यं तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन ॥


'सूर्यके मेषराशिपर स्थित रहते हुए वैशाखमासमें प्रातः स्नानके नियममें संलग्न होकर मैं आपको अर्घ्य देता हूँ। मधुसूदन ! इसे ग्रहण कीजिये।'

इस प्रकार अर्घ्य समर्पण करके स्नान करे। फिर वस्त्रोंको पहनकर सन्ध्या-तर्पण आदि सब कर्मोंको पूरा करके वैशाखमासमें विकसित होनेवाले पुष्पोंसे भगवान् विष्णुकी पूजा करे। उसके बाद वैशाखमासके माहात्म्यको सूचित करनेवाली भगवान् विष्णुकी कथा सुने। ऐसा करनेसे कोटि जन्मोंके पापोंसे मुक्त होकर मनुष्य मोक्षको प्राप्त होता है। यह शरीर अपने अधीन है, जल भी अपने अधीन ही है, साथ ही अपनी जिह्वा भी अपने वशमें है । अतः इस स्वाधीन शरीरसे स्वाधीन जलमें स्नान करके स्वाधीन जिह्वासे 'हरि' इन दो अक्षरोंका उच्चारण करे। जो वैशाखमासमें तुलसीदलसे भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह विष्णुकी सायुज्य मुक्तिको पाता है। अतः अनेक प्रकारके भक्तिमार्गसे तथा भाँति-भाँतिके व्रतोंद्वारा भगवान् विष्णुकी सेवा तथा उनके सगुण या निर्गुण स्वरूपका अनन्य चित्तसे ध्यान करना चाहिये।

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वैशाख,कार्तिक और माघ मास माहातम्य
Index


  1. [कथा 1]भगवद्भक्तिके लक्षण तथा वैशाख स्नानकी महिमा
  2. [कथा 2]वैशाख माहात्म्य
  3. [कथा 3]वैशाख स्नानसे पाँच प्रेतोंका उद्धार तथा 'पाप-प्रशमन' नामक स्तोत्रका वर्णन
  4. [कथा 4]वैशाखमासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव पूजनकी विधि एवं महिमा
  5. [कथा 5]यम- ब्राह्मण-संवाद - नरक तथा स्वर्गमें ले जानेवाले कर्मोंका वर्णन
  6. [कथा 6]तुलसीदल और अश्वत्थकी महिमा तथा वैशाख माहात्म्यके सम्बन्धमें तीन प्रेतोंके उद्धारकी कथा
  7. [कथा 7]वैशाख माहात्म्यके प्रसंगमें राजा महीरथकी कथा और यम- ब्राह्मण-संवादका उपसंहार
  8. [कथा 8]वैशाखमासकी श्रेष्ठता; उसमें जल, व्यजन, छत्र, पादुका और अन्न आदि दानोंकी महिमा
  9. [कथा 9]वैशाखमासमें विविध वस्तुओंके दानका महत्त्व तथा वैशाखस्नानके नियम
  10. [कथा 10]वैशाखमासमें छत्रदानसे हेमकान्तका उद्धार
  11. [कथा 11]महर्षि वसिष्ठके उपदेशसे राजा कीर्तिमान्‌का अपने राज्यमें वैशाखमासके धर्मका पालन कराना और यमराजका ब्रह्माजीसे राजाके लिये शिकायत करना
  12. [कथा 12]ब्रह्माजीका यमराजको समझाना और भगवान् विष्णुका उन्हें वैशाखमासमें भाग दिलाना
  13. [कथा 13]भगवत्कथाके श्रवण और कीर्तनका महत्त्व तथा वैशाखमासके धर्मोके अनुष्ठानसे राजा पुरुयशाका संकटसे उद्धार
  14. [कथा 14]राजा पुरुयशाको भगवान्‌का दर्शन, उनके द्वारा भगवत्स्तुति और भगवान्‌के वरदानसे राजाकी सायुज्य मुक्ति
  15. [कथा 15]शंख-व्याध-संवाद, व्याधके पूर्वजन्मका वृत्तान्त
  16. [कथा 16]भगवान् विष्णुके स्वरूपका विवेचन, प्राणकी श्रेष्ठता, जीवोंके
  17. [कथा 17]वैशाखमासके माहात्म्य-श्रवणसे एक सर्पका उद्धार और वैशाख धर्मके पालन तथा रामनाम-जपसे व्याधका वाल्मीकि होना
  18. [कथा 18]धर्मवर्णकी कथा, कलिकी अवस्थाका वर्णन, धर्मवर्ण और पितरोंका संवाद एवं वैशाखकी अमावास्याकी श्रेष्ठता
  19. [कथा 19]वैशाखकी अक्षय तृतीया और द्वादशीकी महत्ता, द्वादशीके पुण्यदानसे एक कुतियाका उद्धार
  20. [कथा 20]वैशाखमासकी अन्तिम तीन तिथियोंकी महत्ता तथा ग्रन्थका उपसंहार
  21. [कथा 21]कार्तिकमासकी श्रेष्ठता तथा उसमें करनेयोग्य स्नान, दान, भगवत्पूजन आदि धर्माका महत्त्व
  22. [कथा 22]विभिन्न देवताओंके संतोषके लिये कार्तिकस्नानकी विधि तथा स्नानके लिये श्रेष्ठ तीर्थोंका वर्णन
  23. [कथा 23]कार्तिकव्रत करनेवाले मनुष्यके लिये पालनीय नियम
  24. [कथा 24]कार्तिकव्रतसे एक पतित ब्राह्मणीका उद्धार तथा दीपदान एवं आकाशदीपकी महिमा
  25. [कथा 25]कार्तिकमें तुलसी-वृक्षके आरोपण और पूजन आदिकी महिमा
  26. [कथा 26]त्रयोदशीसे लेकर दीपावलीतकके उत्सवकृत्यका वर्णन
  27. [कथा 27]कार्तिक शुक्ला प्रतिपदा और यमद्वितीयाके कृत्य तथा बहिनके घरमें भोजनका महत्त्व
  28. [कथा 28]आँवलेके वृक्षकी उत्पत्ति और उसका माहात्म्य सूतजी कहते हैं-कार्तिकके शुक्लपक्षकी चतुर्दशीको आँवलेका
  29. [कथा 29]गुणवतीका कार्तिकव्रतके पुण्यसे सत्यभामाके रूपमें अवतार तथा भगवान्‌के द्वारा शंखासुरका वध और वेदोंका उद्धार
  30. [कथा 30]कार्तिकव्रतके पुण्यदानसे एक राक्षसीका उद्धार
  31. [कथा 31]भक्तिके प्रभावसे विष्णुदास और राजा चोलका भगवान्‌के पार्षद होना
  32. [कथा 32]जय-विजयका चरित्र
  33. [कथा 33]सांसर्गिक पुण्यसे धनेश्वरका उद्धार, दूसरोंके पुण्य और पापकी आंशिक प्राप्तिके कारण तथा मासोपवास- व्रतकी संक्षिप्त विधि
  34. [कथा 34]तुलसीविवाह और भीष्मपंचक-व्रतकी विधि एवं महिमा
  35. [कथा 35]एकादशीको भगवान्‌के जगानेकी विधि, कार्तिकव्रतका उद्यापन और अन्तिम तीन तिथियोंकी महिमाके साथ ग्रन्थका उपसंहार
  36. [कथा 36]कार्तिक-व्रतका माहात्म्य – गुणवतीको कार्तिक व्रतके पुण्यसे भगवान्‌की प्राप्ति
  37. [कथा 37]कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसंगमें शंखासुरके वध, वेदोंके उद्धार तथा 'तीर्थराज' के उत्कर्षकी कथा
  38. [कथा 38]कार्तिकमासमें स्नान और पूजनकी विधि
  39. [कथा 39]कार्तिक- व्रतके नियम और उद्यापनकी विधि
  40. [कथा 40]कार्तिक-व्रतके पुण्य-दानसे एक राक्षसीका उद्धार
  41. [कथा 41]कार्तिक माहात्म्यके प्रसंगमें राजा चोल और विष्णुदासकी कथा
  42. [कथा 42]पुण्यात्माओंके संसर्गसे पुण्यकी प्राप्तिके प्रसंगमें धनेश्वर ब्राह्मणकी कथा
  43. [कथा 43]अशक्तावस्थामें कार्तिक-व्रतके निर्वाहका उपाय
  44. [कथा 44]कार्तिकमासका माहात्म्य और उसमें पालन करनेयोग्य नियम
  45. [कथा 45]शूकरक्षेत्रका माहात्म्य तथा मासोपवास-व्रतकी विधि का वर्णन
  46. [कथा 46]शालग्रामशिलाके पूजनका माहात्म्य
  47. [कथा 47]भगवत्पूजन, दीपदान, यमतर्पण, दीपावली गोवर्धनपूजा और यमद्वितीयाके दिन करनेयोग्य कृत्योंका वर्णन
  48. [कथा 48]प्रबोधिनी एकादशी और उसके जागरणका महत्त्व तथा भीष्मपंचक व्रतकी विधि एवं महिमा
  49. [कथा 49]माघ माहात्म्य
  50. [कथा 50]मृगशृंग मुनिका भगवान्से वरदान प्राप्त करके अपने घर लौटना
  51. [कथा 51]मृगशृंग मुनिके द्वारा माघके पुण्यसे एक हाथीका उद्धार तथा मरी हुई कन्याओंका जीवित होना
  52. [कथा 52]यमलोकसे लौटी हुई कन्याओंके द्वारा वहाँकी अनुभूत बातोंका वर्णन
  53. [कथा 53]महात्मा पुष्करके द्वारा नरकमें पड़े हुए जीवोंका उद्धार
  54. [कथा 54]माघस्नानके लिये मुख्य-मुख्य तीर्थ और नियम
  55. [कथा 55]माघमासके स्नानसे सुव्रतको दिव्यलोककी प्राप्ति