शौनकजी बोले- हे सूतजी ! हे व्यासशिष्य ! अब आचार्यपूजनकी विधिको कहिये और पुराण सुननेके बाद क्या करना चाहिये, यह भी बताइये? ॥ 1 ॥ सूतजी बोले- इस सर्वोत्तम कथाको सुनकर भक्तिपूर्वक सविधि आचार्यका पूजन करना चाहिये | और प्रसन्नतापूर्वक उन्हें दक्षिणा देनी चाहिये ॥ 2 ॥उसके अनन्तर बुद्धिमान्को चाहिये कि पुराण वक्ताको नमस्कारकर विधिपूर्वक हाथ एवं कानोंके आभूषण और रेशमी तथा सूती वस्त्रोंसे उनका पूजन करे । शिवपूजा समाप्त हो जानेपर सवत्सा गौका दान करे । उसके बाद वह सुधी एक पल सुवर्णसे आसन [[सिंहासन] बनवाकर उसपर वस्त्र बिछाये और उस आसनपर सुन्दर अक्षरोंसे लिखे हुए शुभ ग्रन्थको स्थापितकर आचार्यको प्रदान करे, ऐसा करनेसे वह संसारके बन्धनोंसे मुक्त हो जाता है ॥ 3-5 ॥
हे महामुने! महात्मा कथावाचकको यथाशक्ति ग्राम, गज, घोड़ा एवं अन्य सभी वस्तुएँ भी देनी चाहिये। हे शौनक! विधिपूर्वक भलीभाँति सुना हुआ यह पुराण फलदायी कहा गया है। यह मैं सत्य कह रहा हूँ ॥ 6-7 ॥
अतः हे मुने! वेदार्थसे युक्त, पुण्यप्रद तथा श्रुतिके हृदयरूप पुराणको भक्तिपूर्वक विधानके साथ सुनना चाहिये ॥ 8 ॥