ऋषिगण बोले- हे महाभाग हे सूतजी शिवजीमें आसक्त चित्तवाले आप धन्य हैं, जो कि आपने महाबलेश्वर लिंगकी यह अद्भुत कथा हमें सुनायी। अब उत्तर दिशामें स्थित जो शिवलिंग हैं, उनका पापनाशक निर्मल माहात्म्य आप सुनायें ॥ 1-2 ॥
सूतजी बोले- हे ब्राह्मणो! मैं उत्तर दिशामें विराजमान मुख्य-मुख्य शिवलिंगांकि माहात्म्यका संक्षेपमें वर्णन कर रहा हूँ; आपलोग आदरपूर्वक सुनिये ॥ 3 ॥
गोकर्ण नामक एक दूसरा भी पापनाशक क्षेत्र है; वहाँपर एक पवित्र तथा अति विस्तृत महावन है ॥ 4 ॥
वहाँपर चन्द्रभाल नामक उत्तम तथा सर्वसिद्धि दायक शिवलिंग है, जिसे रावण सद्भक्तिपूर्वक लाया था। हे मुनीश्वरो वहाँपर उस करुणासागर शिवलिंगकी स्थिति सारे संसारके हितके लिये वैद्यनाथ नामक ज्योतिलिंगके तुल्य है ॥ 5-6 ॥
गोकर्णमें स्नानकर तथा चन्द्रभालका पूजनकर मनुष्य अवश्य ही शिवलोकको प्राप्त करता है, इसमें संशय नहीं है ll 7 ll
भक्तोंके ऊपर स्नेह करनेवाले उन चन्द्रभाल नामक शिवकी महिमा बड़ी अद्भुत है; विस्तारसे उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। चन्द्रभाल नामक महादेवके लिंगकी महती महिमाका वर्णन मैंने जिस किसी प्रकार कर दिया; अब दूसरे लिंगका माहात्म्य सुनिये ॥ 8-9 ॥
मिश्रर्षि (मिसरिख) नामक उत्तम तीर्थमें दाधीच नामक शिवलिंग है, जिसे दधीचिमुनिने परम प्रीतिपूर्वक स्थापित किया था। वहाँ जाकर उस तीर्थमें विधिपूर्वक स्नानकर दाधीचेश्वर शिवलिंगका आदर पूर्वक पूजन अवश्य ही करना चाहिये ॥ 10-11 ॥
तीर्थयात्राका फल शीघ्र प्राप्त करनेकी इच्छावालोंको शिवजीको प्रसन्न करनेके लिये वहाँपर विधिपूर्वक दधीचिकी मूर्तिका पूजन करना चाहिये ।। 12 ।।हे मुनिश्रेष्ठो! ऐसा करनेसे मनुष्य कृतकृत्य हो जाता है और इस लोकमें सभी सुख भोगकर परलोकमें सद्गति प्राप्त करता है ॥ 13 ॥
नैमिषारण्यमें सभी ऋषियोंद्वारा स्थापित ऋषीश्वर नामक सुखदायक शिवलिंग है। हे मुनीश्वरो! उसके दर्शन एवं पूजनसे पापी लोगोंको भी इस लोकमें भोग तथा परलोकमें मोक्ष प्राप्त होता है ।। 14- 15 ।।
हत्याहरण तीर्थमें पापको दूर करनेवाला तथा करोड़ों हत्याओंका नाश करनेवाला शिवलिंग है, उसकी विशेष रूपसे पूजा करनी चाहिये ll 16 ll
देवप्रयागतीर्थमें ललितेश्वर नामक शिवलिंग है, उस लिंगकी हमेशा पूजा करनी चाहिये, जिससे सभी प्रकारके पाप दूर हो जाते हैं ॥ 17 ॥
पृथिवीपर प्रसिद्ध नेपाल नामक पुरीमें पशुपतीश्वर नामक शिवलिंग है, जो सम्पूर्ण कामनाओंका फल प्रदान करता है। वह शिवलिंग शिरोभागमात्रसे वहाँ स्थित है, उसकी कथा केदारेश्वरवर्णनके प्रसंग कहूँगा ।। 18-19 ॥
उसके समीप मुक्तिनाथ नामक अत्यन्त अद्भुत शिवलिंग है, उसके दर्शन एवं अर्चनसे भोग तथा मोक्ष प्राप्त होते हैं ॥ 20 ॥
हे मुनीश्वरो इस प्रकार मैंने आपलोगोंसे चारों दिशाओंमें स्थित शिवलिंगोंका उत्तम वर्णन किया; अब आपलोग और क्या सुनना चाहते हैं ? ॥ 21 ॥