ऋषियोंने पूछा- प्रभो! धौम्यके बड़े भाई उपमन्यु जब छोटे बालक थे, तब उन्होंने दूधके लिये तपस्या की थी और भगवान् शिवने प्रसन्न होकर उन्हें क्षीरसागर प्रदान किया था। परंतु शैशवावस्था में उन्हें शिवशास्त्रके प्रवचनकी शक्ति कैसे प्राप्त हुई अथवा वे कैसे शिवके सत्स्वरूपको जानकर तपस्यामें निरत हुए? तपश्चरणके पर्वमें उन्हें भस्मकेविज्ञानकी प्राप्ति कैसे हुई, जिससे जो रुद्राग्निका उत्तम वीर्य है, उस आत्मरक्षक भस्मको उन्होंने प्राप्त किया ? ।। 1-3 ॥
वायुदेवने कहा- महर्षियो ! जिन्होंने वह तप किया था, वे उपमन्यु कोई साधारण बालक नहीं थे, परम बुद्धिमान् मुनिवर व्याघ्रपादके पुत्र थे। उन्हें जन्मान्तरमें ही सिद्धि प्राप्त हो चुकी थी। परंतु किसी कारणवश वे अपने पदसे च्युत हो गये योगभ्रष्ट हो गये। अतः भाग्यवश जन्म लेकर वे मुनिकुमार हुए ॥ 4-5 ॥
दुग्धको कामनासे उपमन्युकी जो तपस्यामें प्रवृत्ति हुई, वह भविष्य में प्राप्त होनेवाले महादेवजीके अनुग्रहमें मानो द्वार अर्थात् माध्यम बन गयी ॥ 6 ॥
उसके फलस्वरूप भगवान् शंकरने उपमन्युको दुग्धका समुद्र देनेके साथ-साथ अपने भक्तोंमें वरिष्ठता और शाश्वत कुमारभाव भी प्रदान किया ॥ 7 ॥
विद्वज्जन जिस शक्तिमय उत्कृष्ट ज्ञानको स्कन्दके द्वारा उपदिष्ट बतलाते हैं, उस ज्ञानको उपमन्युने साक्षात् भगवान् शिवके अनुग्रहसे प्राप्त किया था ॥ 8 ॥
जिस प्रकार महासागरके सदृश ज्ञानराशिसे सम्पन्न कुमार कार्तिकेयके मुखसे नन्दीने शिवशास्त्रके प्रवचनका अधिकार प्राप्त किया था, वैसे ही उपमन्युने भी [भगवान् शिवसे] शिवशास्त्रके प्रवचनका अधिकार प्राप्त कर लिया ।। 9 ।।
उपमन्युके द्वारा दुग्धके लिये हठ करनेपर उनकी माताने शोकवश जो बात कही थी, वही उनकी शिवज्ञानप्राप्तिमें कारण प्रतीत होती है ॥ 10 ॥
एक समयकी बात है, अपने मामाके आश्रम में उन्हें पीनेके लिये बहुत थोड़ा दूध मिला। उनके | मामाका बेटा अपनी इच्छाके अनुसार गरम-गरम उत्तम दूध पीकर उनके सामने खड़ा था। मातुलपुत्रको इस अवस्थामें देखकर व्याघ्रपादकुमार उपमन्युके मनमें ईर्ष्या हुई और वे अपनी माँके पास जाकर बड़े प्रेमसे बोले- ॥ 11-12 ।।उपमन्युने कहा- ' मातः । महाभागे । तपस्विनि! मुझे अत्यन्त स्वादिष्ट गरम-गरम गायका दूध दो। मैं घोड़ा-सा नहीं पीऊँगा। ॥ 13 ॥
वायुदेवने कहा- [हे ऋषियों] बेटेकी यह बात सुनकर व्याघ्रपादकी पत्नी तपस्विनी माताके मनमें उस समय बड़ा दुःख हुआ। उसने पुत्रको बड़े | आदरके साथ छातीसे लगा लिया और प्रेमपूर्वक लाड़-प्यार करके अपनी निर्धनताका स्मरण हो आने से वह दुखी हो विलाप करने लगी ।। 14-15 ।।
महातेजस्वी बालक उपमन्यु बारंबार दूधको याद करके रोते हुए मातासे कहने लगे-'माँ! दूध दो, दूध दो।' बालकके उस हठको जानकर उस तपस्विनी ब्राह्मण पत्नीने उसके हठके निवारणके लिये एक सुन्दर उपाय किया ॥ 16-17 ॥
उसने स्वयं उच्छ-वृत्तिसे कुछ बीजोंका संग्रह किया था उन बीजोंको देखकर उस मधुरभाषिणीने तत्काल उठा लिया और पीसकर पानीमें घोल दिया। फिर मीठी वाणीमें बोली- आओ आओ मेरे लाल ।' यों कह बालकको शान्त करके हृदयसे लगा लिया और दुःखसे पीड़ित हो उसने कृत्रिम दूध उसके हाथमें दे दिया ।। 18-19 ll
माताके दिये हुए उस बनावटी दूधको पीकर बालक अत्यन्त व्याकुल हो उठा और बोला 'माँ यह दूध नहीं है।' तब वह बहुत दुखी हो गयी और बेटेका मस्तक सूपकर अपने दोनों हाथोंसे उसके कमलसदृश नेत्रोंको पोंछती हुई कहने लगी ।। 20-21 ॥
माता बोली- जो लोग भाग्यहीन तथा शिवजीके प्रति भक्तिरहित हैं, वे स्वर्ग पातालमें गोचर होनेवाली रत्नोंसे परिपूर्ण नदियोंको नहीं देख पाते हैं शिवजी जबतक लोगों पर प्रसन्न नहीं होते हैं, वे तबतक राज्य, स्वर्ग, मोक्ष तथा दुग्धसे बना हुआ भोजन-इन प्रिय वस्तुओंको प्राप्त नहीं कर पाते हैं। सब कुछ शिवजीकी कृपासे प्राप्त होता है, वह किसी दूसरे देवताकी कृपासे प्राप्त नहीं होता है। अन्य देवताओं में आसक लोग दुःखसे पीड़ित होकर भटकते रहते हैं ।। 22-24 ॥सदा वनमें निवास करनेवाले हमलोगोंको दूध कहाँ मिलेगा? हे वत्स! कहाँ दुग्धकी उपलब्धि और कहाँ हम वनवासी ! ॥ 25 ॥
जननी बोली- 'बेटा! अपने पास सभी वस्तुओंका अभाव होनेके कारण दरिद्रतावश मुझ अभागिनीने पीसे हुए बीजको पानीमें घोलकर यह तुम्हें कृत्रिम दूध दिया था ॥ 26 ॥
तुमने मामा घरमें पकाये हुए स्वादिष्ट थोडेसे दूधको पीकर [कृत्रिम दूधको भी] उसीके समान स्मरण करके स्वादिष्ट जानकर इसे भी पी लिया ll 27 ॥
तुम 'दूध नहीं दिया' ऐसा कहकर रोते हुए मुझे बारंबार दुखी करते हो। किंतु भगवान् शिवकी कृपाके बिना तुम्हारे लिये कहीं दूध नहीं है ll 28 ll
भक्तिपूर्वक माता पार्वती और अनुचरोंसहित भगवान् शिवके चरणारविन्दोंमें जो कुछ समर्पित किया गया हो, वही सम्पूर्ण सम्पत्तियोंका कारण होता है। महादेवजी ही धन देनेवाले हैं। इस समय हम लोगोंने उनकी आराधना नहीं की है। वे भगवान् ही सकाम पुरुषोंको उनकी इच्छाके अनुसार फल देनेवाले हैं ।। 29-30 ॥
हम लोगोंने आजसे पहले कभी भी धनकी |कामनासे भगवान् शिवकी पूजा नहीं की है। इसीलिये हम दरिद्र हो गये और यही कारण है कि तुम्हारे लिये दूध नहीं मिल रहा है। बेटा! पूर्वजन्ममें भगवान् | शिव अथवा विष्णुके उद्देश्यसे जो कुछ दिया जाता है, वही वर्तमान जन्ममें मिलता है, दूसरा कुछ नहीं' ।। 31-32 ।।
वायुदेव बोले- वह बालक इस प्रकार माताके शोकसूचक यथार्थ कथनको सुनकर मनमें सन्ताप करता हुआ यह गम्भीर वचन कहने लगा ॥ 33 ॥
उपमन्यु बोले- माँ! यदि माता पार्वतीसहित भगवान् शिव विद्यमान हैं, तब आजसे शोक करना व्यर्थ है। महाभागे। अब शोक छोड़ो, सब मंगलमयही होगा। माँ! आज मेरी बात सुन लो । यदि कहीं महादेवजी हैं तो मैं देरसे या जल्दी ही उनसे क्षीरसागर माँग लाऊँगा ।। 34-35 ।।
वायुदेवता कहते हैं-उस महाबुद्धिमान् बालककी वह बात सुनकर उसकी मनस्विनी माता उस समय बहुत प्रसन्न हुई और यों बोली- ॥ 36 ॥ माताने कहा- बेटा! तुमने बहुत अच्छा विचार किया है। तुम्हारा यह विचार मेरी प्रसन्नताको बढ़ाने वाला है। अब तुम देर न लगाओ। साम्ब सदाशिवका भजन करो ॥ 37 ॥
परम कारण शिव सबसे बढ़कर हैं, सम्पूर्ण जगत् उन्हींका बनाया हुआ है और ब्रह्मा आदि [देवता] उन्हीं प्रभुके किंकर तथा उनसे प्राप्त ऐश्वर्यवाले हैं। हमलोग भी उन्हींके अनुचर हैं संसारका कल्याण करनेवाले शंकरके अतिरिक्त अन्य किसीको हम नहीं जानते ॥ 38-39 ॥
अन्य देवताओंको छोड़कर मन, वाणी और क्रियाद्वारा भक्तिभावके साथ पार्षदगणोंसहित उन्हीं साम्ब सदाशिवका भजन करो। 'नमः शिवाय' यह मन्त्र उन देवाधिदेव वरदायक शिवका साक्षात् वाचक माना गया है। प्रणवसहित जो दूसरे सात करोड़ महामन्त्र हैं, वे सब इसीमें लीन होते हैं और फिर इसीसे प्रकट होते हैं । ll 40-42 ॥
वे सभी मन्त्र अपने-अपने अधिकारके अनुरूप ही फल प्रदान करनेमें समर्थ हैं, अर्थात् जो मन्त्र जिस कामनाकी सिद्धिके लिये अधिकृत हैं, वे उसीको फलीभूत कर पाने में समर्थ होते हैं, परंतु यह एकमात्र मन्त्र भगवान् शिवकी आज्ञासे सर्वाधिकारसम्पन्न होनेके कारण सभी कामनाओंको फलीभूत करनेमें समर्थ है। जिस प्रकार भगवान् शिव पापी या पुण्यात्मा - किसीकी भी रक्षा या उद्धार करनेमें सक्षम हैं, उसी प्रकार यह मन्त्र भी प्रत्येक समय प्रत्येक व्यक्तिकी रक्षामें समर्थ है ॥ 43-44 ॥यह मन्त्र दूसरे सभी मन्त्रोंसे प्रबल है। यही सबकी रक्षा करनेमें समर्थ है। अतः दूसरेकी इच्छा नहीं करनी चाहिये। इसलिये तुम दूसरे मन्त्रोंको त्यागकर केवल पंचाक्षरके जपमें लग जाओ। इस मन्त्रके जिह्वापर आते ही यहाँ कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है ।। 45-46 ॥
यह शिवभक्तोंकी रक्षाका हेतुभूत सर्वश्रेष्ठ अघोरास्त्र ही है, इस [अस्त्र] को उसी मन्त्रसे | उत्पन्न हुआ मानकर तुम उस मन्त्रमें निरत हो जाओ, इसके विपरीत मत होओ ॥ 47 ॥
यह उत्तम भस्म जिसे मैंने तुम्हारे पिताजीसे ही प्राप्त किया है, यह विरजा होमकी अग्निसे सिद्ध हुआ है, अतः बड़ी से बड़ी आपत्तियोंका निवारण करनेवाला है। मैंने तुम्हें जो पंचाक्षरमन्त्र बताया है, उसको मेरी आज्ञासे ग्रहण करो। इसके जपसे ही शीघ्र तुम्हारी रक्षा होगी ।। 48-49 ।।
वायुदेवता कहते हैं—इस प्रकार आज्ञा देकर और 'तुम्हारा कल्याण हो' ऐसा कहकर माताने पुत्रको बिदा किया। मुनि उपमन्युने उस आज्ञाको शिरोधार्य करके उसके चरणोंमें प्रणाम किया और ऐसा ही करूंगा-यह कहकर तपस्याके लिये जानेकी तैयारी की। उस समय माताने आशीर्वाद देते हुए कहा-'सब देवता तुम्हारा मंगल करें ॥ 50-51 ॥
माताकी आज्ञा पाकर उस बालकने दुष्कर तपस्या आरम्भ की हिमालयपर्वतके एक शिखरपर | जाकर उपमन्यु एकाग्रचित्त हो केवल वायु पीकर रहने लगे। उन्होंने आठ ईंटोंका एक मन्दिर बनाकर उसमें | मिट्टी के शिवलिंगकी स्थापना की। उसमें माता पार्वती तथा गणोंसहित अविनाशी महादेवजीका आवाहन करके भक्तिभावसे पंचाक्षरमन्त्रद्वारा ही वनके पत्र पुष्प आदि उपचारोंसे उनकी पूजा करते हुए वे चिर कालतक उत्तम तपस्यामें लगे रहे ।। 52-54 ॥ उन एकाकी कृशकाय बालक द्विजवर उपमन्युको शिवमें मन लगाकर तपस्या करते देख पूर्वकालमेंमरीचिके शापसे पिशाचभावको प्राप्त हुए कुछ मुनियोंने अपने राक्षसस्वभावसे उन्हें सताना और उनके तपमें विघ्न डालना आरम्भ किया ॥ 55-56 ॥
उनके द्वारा सताये जानेपर भी उपमन्यु किसी प्रकार तपमें लगे रहे और सदा 'नमः शिवाय' का आर्तनादकी भाँति जोर-जोरसे उच्चारण करते रहे। उस शब्दको सुनते ही उनकी तपस्यामें विघ्न डालनेवाले वे मुनि उस बालकको सताना छोड़कर उसकी सेवा करने लगे हे मुनियो ! ब्राह्मणबालक महात्मा उपमन्युकी उस तपस्यासे सम्पूर्ण चराचर जगत् संतप्त हो उठा ॥ 57–59॥