जो विश्वकी उत्पत्ति-स्थिति और लय आदिके एकमात्र कारण हैं, गिरिराजकुमारी उमाके पति हैं, तत्त्वज्ञ हैं, जिनकी कीर्तिका कहीं अन्त नहीं है, जो मायाके आश्रय होकर भी उससे अत्यन्त दूर हैं, जिनका स्वरूप अचिन्त्य है, जो बोधस्वरूप हैं तथा निर्विकार हैं, उन भगवान् शिवको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ 1 ॥
मैं स्वभावसे ही उन अनादि, शान्तस्वरूप, पुरुषोत्तम शिवकी वन्दना करता हूँ, जो अपनी मायासे इस सम्पूर्ण विश्वकी सृष्टि करके आकाशकी भाँति इसके भीतर और बाहर भी स्थित हैं ॥ 2 ॥
जैसे लोहा चुम्बकसे आकृष्ट होकर उसके पास ही लटका रहता है, उसी प्रकार ये सारे जगत् सदा। सब ओर जिसके आस-पास ही भ्रमण करते हैं, जिन्होंने अपनेसे ही इस प्रपंचको रचनेकी विधि बतायी थी, जो सबके भीतर अन्तर्यामीरूपसे विराजमान हैं तथा जिनका अपना स्वरूप अत्यन्त गूढ़ हैं, उन भगवान् शिवकी मैं सादर वन्दना करता हूँ ॥ 3 ॥
व्यासजी बोले- जगत्के पिता भगवान् शिव, जगन्माता कल्याणमयी पार्वती तथा उनके पुत्र गणेशजीको नमस्कार करके हम इस पुराणका वर्णन करते हैं ॥ 4 ॥
एक समयकी बात हैं, नैमिषारण्य में निवास | करनेवाले शौनक आदि सभी मुनियोंने उत्तम भक्तिभावके साथ सूतजीसे पूछा- ॥5॥
ऋषिगण बोले [हे] सूतजी!] विद्येश्वर संहिताकी जो साध्य साधन-खण्ड नामवाली शुभ तथा उत्तम कथा है, उसे हमलोगोंने सुन लिया। उसका आदिभाग बहुत ही रमणीय है तथा वह शिवभक्तोंपर भगवान् शिवका वात्सल्य स्नेह प्रकट करनेवाली है ॥ 6 ॥हे महाभाग ! हे सूतजी! हे तात! आप हमलोगों सदाशिव भगवान् शंकरकी उत्तम कथाका श्रवण करा रहे हैं, अतएव आप चिरकालतक जीवित रहे और सदा सुखी रहें। आपके मुखकमलसे निकल रहे | ज्ञानामृतका पूर्ण रूपसे पान करते हुए भी हमलोग तृप्त नहीं हो पा रहे हैं, इसलिये हे अनघ (पुण्यात्मा)। हम सब पुनः कुछ पूछना चाहते हैं ।। 7-8 ॥ भगवान् व्यासकी कृपासे आप सर्वज्ञ एवं कृतकृत्य हैं। आपके लिये भूत-भविष्य और वर्तमानका कुछ भी अज्ञात नहीं है अर्थात् सब कुछ आपको ज्ञात है ॥ 9 ॥ अपनी सद्धतिके द्वारा गुरु व्यासजी से परमकृपाको प्राप्तकर आप विशेष रूपसे सब कुछ जान गये हैं और अपने सम्पूर्ण जीवनको भी कृतार्थ कर लिया है। ll 103 ll
हे विद्वन्! अब आप भगवान् शिवके परम उत्तम स्वरूपका वर्णन कीजिये। साथ ही शिव और पार्वतीके दिव्य चरित्रोंका पूर्णरूपसे श्रवण कराइये ॥ 11 ॥
निर्गुण महेश्वर लोकमें सगुणरूप कैसे धारण करते हैं? हम सबलोग विचार करनेपर भी शिवके तत्त्वको नहीं समझ पाते ll 12 ॥
सृष्टिके पूर्वमें भगवान् शिव किस प्रकार अपने स्वरूपसे स्थित होते हैं, पुनः सृष्टिके मध्यकालमें वे भगवान् किस तरह क्रीड़ा करते हुए सम्यक् व्यवहार करते हैं। सृष्टिकल्पका अन्त होनेपर वे महेश्वरदेव किस रूपमें स्थित रहते हैं? लोककल्याणकारी शंकर कैसे प्रसन्न होते हैं ।। 13-14 ll
प्रसन्न हुए महेश्वर अपने भक्तों तथा दूसरोंको कौन-सा उत्तम फल प्रदान करते हैं? यह सब हमसे कहिये। हमने सुना है कि भगवान् शिव शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। वे महान् दयालु हैं, इसलिये वे अपने भक्तोंका कष्ट नहीं देख सकते ।। 15-16 ॥
ब्रह्मा, विष्णु और महेश- ये तीनों देवता शिवके ही अंगसे उत्पन्न हुए हैं। इनमें महेश तो पूर्णांश हैं, वे स्वयं ही दूसरे शिव हैं। आप उनके प्राकट्यकी कथा तथा उनके विशेष चरित्रोंका वर्णन कीजिये। हे प्रभो! आप उमाके आविर्भाव और उनके विवाहकी भी क कहिये। विशेषतः उनके गार्हस्थ्यधर्मका और अन्य लीलाओंका भी वर्णन कीजिये। हे निष्पाप सूतजी! ये |सब तथा अन्य बातें भी आप बतायें ॥ 17-19 ॥व्यासजी बोले- उनके ऐसा पूछनेपर सूतजी प्रसन्न हो उठे और भगवान् शंकरके चरणकमलोंका स्मरण करके मुनीश्वरोंसे कहने लगे- ॥ 20 ॥
सूतजी बोले- हे मुनीश्वरो! आपलोगोंने बड़ी उत्तम बात पूछी है आपलोग धन्य हैं, जो कि भगवान् सदाशिवकी कथामें आपलोगोंकी आन्तरिक निष्ठा हुई है, सदाशिवसे सम्बन्धित कथा वक्ता, पूछनेवाले और सुननेवाले इन तीनों प्रकारके पुरुषोंको गंगाजीके समान पवित्र करती है ।। 21-22 ॥
हे द्विजो ! पशुओं की हिंसा करनेवाले निष्ठुर कसाईके | सिवा दूसरा कौन पुरुष तीनों प्रकारके लोगोंको सदा आनन्द देनेवाले शिव-गुणानुवादको सुननेसे ऊब सकता हैं। जिनके मनमें कोई तृष्णा नहीं है, ऐसे महात्मा पुरुष भगवान् शिवके उन गुणोंका गान करते हैं; क्योंकि वह संसाररूपी रोगकी दवा है, मन तथा कानोंको प्रिय लगनेवाला है और सम्पूर्ण मनोरथोंको देनेवाला है ।। 23-24 ।।
हे ब्राह्मणो! आपलोगोंके प्रश्नके अनुसार मैं यथाबुद्धि प्रयत्नपूर्वक शिवलीलाका वर्णन करता हूँ, आपलोग आदरपूर्वक सुनें ॥ 25 ll
जैसे आपलोग पूछ रहे हैं, उसी प्रकार नारदजीने शिवरूपी भगवान् विष्णुसे प्रेरित होकर अपने पिता ब्रह्माजी से पूछा था अपने पुत्र नारदका प्रश्न सुनकर शिवभक्त ब्रह्माजीका चित्त प्रसन्न हो गया और वे उन मुनिश्रेष्ठको हर्ष प्रदान करते हुए प्रेमपूर्वक भगवान् शिवके यशका गान करने लगे ।। 26-27 ॥
व्यासजी बोले- सूतजीके द्वारा कथित उस वचनको सुनकर वे सभी श्रेष्ठ ब्राह्मण आश्चर्यचकित हो उठे और उन लोगोंने उस विषयको उनसे पूछा- ॥ 28 ॥ ऋषिगण बोले- हे सूतजी हे महाभाग ! हे शिवभक्तोंमें श्रेष्ठ! हे महामते! आपके सुन्दर वचनको सुनकर हमारे हृदयमें कौतूहल हो रहा है ॥ 29 ॥
ब्रह्मा और नारदका यह महान् सुख देनेवाला संवाद कब हुआ था, जिसमें संसारसे मुक्ति प्रदान करनेवाली शिवलीला वर्णित है ॥ 30 ॥
हे तात! प्रेमपूर्वक नारदके द्वारा पूछे गये उन उन प्रश्नोंकि अनुसार भगवान् शंकरके यशका गुणानुवाद करनेवाले ब्रह्मा और नारदके संवादका वर्णन करें॥ 31 ॥आत्मज्ञानी उन मुनियोंके ऐसे वचनको सुनकर प्रसन्न हुए सूतजी उस ब्रह्मा- नारद-संवादके अनुसार [कही गयी शिवकथाको] कहने लगे ॥ 32 ॥