सूतजी बोले- अदिति, दिति, सुरसा, अरिष्टा, इला, दनु, सुरभि, विनता, ताम्रा, क्रोधवशा, खशा, कद्रू एवं मुनि - [ ये कश्यपकी पत्नियोंके नाम हैं] अब उनकी सन्तानोंके विषयमें मुझसे सुनिये। पूर्वके मन्वन्तरमें तुषित नामक जो बारह उत्तम देवता थे, वे सुकीर्तिसम्पन्न चाक्षुष मन्वन्तरके समापन तथा वैवस्वत मन्वन्तरके आगमन के अवसरपर सभी लोकोंके हितकेलिये परस्पर एकत्रित होकर कहने लगे कि हमलोग इस वैवस्वत मन्वन्तरमें अदिति के गर्भमें प्रविष्ट होकर जन्म लें, ऐसा करनेसे सज्जन लोगोंका कल्याण होगा। ऐसा कहे जानेपर चाक्षुष मन्वन्तरके अन्तमें वे तुषित देवगण मरीचिके पुत्र कश्यपके द्वारा दक्षपुत्री अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए ।। 1-51/2 ॥
उनमें विष्णु तथा शक्रने पहले जन्म लिया, आदितिमें जन्म लेनेवाले अर्यमा, धाता, त्वष्टा, पूषा, विवस्वान्, सविता, मित्र, वरुण, अंश तथा भग-ये अतितेजस्वी द्वादश आदित्यके नामसे विख्यात हुए। जो चाक्षुष मन्वन्तरमें तुषित नामके देवता थे, वे ही अगले (वैवस्वत मन्वन्तरमें द्वादश आदित्य कहे गये। हे शौनक ! इस प्रकार मैंने अदितिके द्वादश अपत्योंका वर्णन आपसे किया ।। 6-9 ॥ दक्षकी सत्ताईस कन्याएँ जो उत्तम व्रतवाली सोमकी स्त्रियाँ थीं, उनसे अत्यन्त तेजस्वी सन्तानें हुईं 10 ॥ दक्षको विद्युत् नामवाली चार कन्याएँ जो अनेक पुत्रोंवाले विद्वान् अरिष्टनेमिकी पत्नियाँ थीं, उनमें सोलह पुत्र उत्पन्न हुए, देवर्षि कृशाश्वके पुत्र देवप्रहरण (देवताओंके अस्त्र-शस्त्र) नामसे अभिहित हुए। हे मुने! उनकी अर्चि नामक पत्नीसे धूम्रकेश उत्पन्न हुए ।। 11-12 ॥
उनकी स्वधा और सती नामक दो पत्नियाँ थीं, उनमें बड़ीका नाम स्वधा था तथा कनिष्ठा सती थी। स्वधाने पितरोंको और सतीने वेद और अथवगिराको उत्पन्न किया ॥ 13 ॥
ये सभी तैंतीस देवता कामज कहे गये हैं और सहस्रयुगों के अन्तमें पुनः पुनः नित्य उत्पन्न होते रहते हैं। जिस प्रकार जगत्में सूर्यका उदय और अस्त होता है, उसी प्रकार ये देवनिकाय भी युग-युगमें उत्पन्न होते रहते हैं । ll 14 - 15 ll
कश्यपसे दितिके गर्भसे हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु नामक महाबलवान् दो पुत्र उत्पन्न हुए- ऐसा हमने सुना है। सिंहिका नामकी एक कन्या भी हुई, जो विप्रचित्तिकी पत्नी बनी। हिरण्यकशिपुके महातेजस्वी चार पुत्र हुए। उनके नाम अनुहाद, हाद, संहाद तथा प्रह्लाद थे। सबसे छोटा प्रह्लाद विष्णुका अत्यन्त भक्त था ॥ 16-18 ॥अनुहादकी स्त्री सूर्याके गर्भ से प्रलोमा एवं महिष हुए। हादकी धमनि नामक पत्नीने वातापी एवं इल्वलको जन्म दिया। संहादकी कृति नामक भार्याने पंचजनको उत्पन्न किया। प्रहादकी देवी नामक भार्यासे पुत्र विरोचन और विरोचनका पुत्र बलि हुआ । ll 19-20 ।।
हे मुनीश्वर ! बलिके अशना नामक पत्नीके गर्भ से सौ पुत्र उत्पन्न हुए। बलि शिवभक्तिपरायण महाशैव था। वह दानशील, उदार, पुण्यकीर्ति एवं तपस्वी कहा गया है। उसके पुत्रका नाम बाण था, वह भी शिवभक्त और महाबुद्धिमान् था, जिसने शिवजीको भलीभाँति सन्तुष्टकर गाणपत्यपद प्राप्त किया था। महात्मा बाणकी | उस कथाको तो आप पहले ही सुन चुके हैं, जिसमें उस वीरने संग्राममें श्रीकृष्णको अत्यन्त प्रसन्न किया था ॥ 21 - 23 ॥
हिरण्याक्षके पाँच पुत्र हुए, जो विद्वान् एवं महाबलवान् थे, वे कुकुर, शकुनि, भूतसन्तापन, पराक्रमी महानाद एवं कालनाभ थे। हे मुने! इस प्रकार मैंने दितिके पुत्रोंको बताया, अब दनुपुत्रोंके नामका श्रवण कीजिये ।। 24-25 दनुके महापराक्रमशाली सौ पुत्र हुए, जिनमें.अयोमुख, शम्बर, कपोल, वामन, वैश्वानर, पुलोमा, विद्रावण, महाशिर, स्वर्भानु, वृषपर्वा एवं महाबलवान् विप्रचित्ति मुख्य थे। दनुके ये सभी पुत्र कश्यपसे उत्पन्न हुए थे। हे अनघ ! अब मैं आपसे प्रसंगत: इनकी पुत्रियोंका वर्णन करता हूँ, उसे सुनिये ॥ 26-28 ॥ स्वर्भानुकी प्रभा, पुलोमाकी शची, हयशिराकी उपदानवी तथा वृषपर्वाकी शर्मिष्ठा नामक कन्या थी। वैश्वानरकी पुलोमिका तथा पुलोमा नामक दो कन्याएँ थीं, मारीचि (कश्यप) की ये दो पत्नियाँ बहुत सन्तानवाली तथा महाशक्तिशालिनी थीं। कश्यपने उन दोनोंसे साठ हजार पुत्र उत्पन्न किये, जो दानवकुलको आनन्द देनेवाले तथा परम तपस्यासे युक्त थे । ll 29-31 ॥
दानवोंमें महाबली पौलोम एवं कालखंज पितामहका वरदान प्राप्तकर देवगणोंसे सर्वथा अवध्य तथा हिरण्यपुरवासी थे, जिनका वध अर्जुनने किया था।विप्रचित्तिसे सिंहिकामें जो पुत्र उत्पन्न हुए, वे सभी दैत्य- दानवोंके संयोगसे महापराक्रमी थे। उन सिंहिकाके पुत्रोंमें तेरह महाबली थे। वे राहु, शल्य, सुबलि, बल, महाबल, वातापि, नमुचि, इल्वल, स्वसृप, अजिक, नरक, कालनाभ, शरमाण, शर तथा कल्प नामवाले थे, जो दनुके वंशका विस्तार करनेवाले हुए। दनुवंशको बढ़ानेवाले बहुत से इनके पुत्र और पौत्र उत्पन्न हुए उनका वर्णन यहाँ विस्तारके कारणसे नहीं किया जा रहा है ।। 32-37 ॥
संहादके वंशमें निवातकवच नामक दैत्य हुए। इसी कुलमें तपस्यासे आत्मज्ञान प्राप्त करनेवाले मरुत् भी हुए थे ॥ 38 ॥
ताम्राके महाशक्तिशाली षण्मुख आदि पुत्र उत्पन्न हुए काकी, श्येनी, भारती, सुग्रीवी, शुकी, गृधिका, अश्वी, उलूकीये ताम्राकी कन्याएँ कही गयी हैं। उनमें काकीने काकको, उलूकीने कौओंके शत्रु उलूकोंको पैदा किया। श्येनीने श्येनोंको भासीने भासको, गृध्रीने गृधोंको, शुकीने शुकोंको और सुग्रीवीने शुभ पक्षियोंको उत्पन्न किया। इसी प्रकार कश्यपपत्नी ताम्रने घोड़ों, ऊँटों एवं गधों को भी उत्पन्न किया। इस प्रकार ताम्राके वंशका कथन किया गया ।। 39-42 ॥
विनताके अरुण तथा गरुड़ ये दो पुत्र उत्पन्न हुए, जिनमें गरुड़ पक्षियोंमें श्रेष्ठ हो गये, | वे अपने कर्मसे अत्यन्त दारुण थे। सुरसाके महातेजस्वी अनेक शिरवाले, आकाशचारी हजारों महात्मा सर्प उत्पन्न हुए, जिनमें शेष वासुकि, तक्षक, ऐरावत, महापद्म, कम्बल तथा अश्वतर सर्पोंमें प्रधान राजा हुए ॥ 43-45 ॥
एलापत्र, पद्म, कर्कोटक, धनंजय, महानील, महाकर्ण, धृतराष्ट्र, बलाहक, कुहर, पुष्पदन्त, दुर्मुख, सुमुख, बहुश, खररोमा और पाणि आदि सर्पोंमें प्रधान राजा हुए। क्रोधवशाके सभी पुत्र दंष्ट्रावाले अण्डज, पक्षी और जल जन्तु हैं। वाराहीके पशु कहे गये हैं ।। 46-48 ।।अनायुषाके महाबलवान् पचास पुत्र हुए, जिनमें बल, वृक्ष, विक्षर और बृहत् प्रधान थे। सुरभिने खरगोशों तथा महिषोंको जन्म दिया। इलाने वृक्ष, लताओं तथा समस्त तृण जातियोंको उत्पन्न किया। खशाने यक्षों एवं राक्षसोंको, मुनिने अप्सराओंको, अरिष्टाने सर्पोको और प्रभाने उत्तम मानवोंको जन्म दिया ॥ 49–51॥
हे मुनीश्वर ! इस प्रकार मैंने आपसे कश्यपके दायादोंका वर्णन किया, जिनके सैकड़ों-हजारों पुत्र और पौत्र हुए ॥ 52 ॥