ब्रह्माजी बोले- हे मुने। इसी बीच बाण नामके राक्षससे पीड़ित होकर क्रौंच नामका एक पर्वत कुमार कार्तिकेयकी शरणमें वहाँपर आया। वह बाण नामक राक्षस तारक-संग्रामके समय कुमारका ऐश्वर्यशाली तेज सहन न कर पानेके फलस्वरूप दस हजार सैनिकोंके साथ भाग गया था, वही क्राँचको अतिशय दुःख देने लगा ॥ 1-2 ॥
वह क्रौंच पर्वत भक्तिपूर्वक कुमारके चरण कमलोंमें प्रणाम करके प्रेममयी वाणीसे आदरपूर्वक कार्तिकेयकी स्तुति करने लगा ॥ 3 ॥
क्रौंच बोला हे कुमार हे स्कन्द । हे देवेश! हे तारकासुरका नाश करनेवाले! बाण नामक दैत्यसे पीड़ित मुझ शरणागतकी रक्षा कीजिये ॥ 4 ॥
हे महासेन । वह बाण [तारकासुरके संग्राममें] आपसे भयभीत होकर भाग गया था। हे नाथ! हे करुणाकर! वह आकर अब मुझे पीड़ित कर रहा है ॥ 5 ॥
हे देवेश ! उसी बाणसे पीड़ित होकर अत्यन्त दुःखित मैं भागता हुआ आपकी शरणमें आया हूँ। हे शरजन्मन् दया कीजिये हे विभो ! उस बाण नामक राक्षसका नाश कीजिये और मुझे सुखी कीजिये आप विशेष रूपसे दैत्योंको मारनेवाले, देवरक्षक तथा स्वराट् हैं ॥ 6-7 ॥
ब्रह्माजी बोले- जब क्रौंचने इस प्रकार कुमारकी स्तुति की, तब भक्तपालक वे कार्तिकेय प्रसन्न हुए और उन्होंने हाथमें अपनी अनुपम शक्ति लेकर मनमें शिवजीका स्मरण किया। इसके बाद उन शिवपुत्रने बाणको लक्ष्य करके उसे छोड़ दिया। उससे महान् शब्द हुआ आकाश एवं दसों दिशाएँ प्रज्वलित हो उठीं ॥ 8-9 ॥हे मुने! क्षणमात्रमें ही सेनासहित उस असुरको जलाकर वह परम शक्ति पुनः कुमारके पास लौट आयी। उसके बाद प्रभु कार्तिकेयने उस क्रौंच नामक पर्वत श्रेष्ठसे कहा- अब तुम निडर होकर अपने घर जाओ, सेनासहित उस असुरका अब नाश हो गया ।। 10-11 ll
तब स्वामी कार्तिकेयका वह वचन सुनकर पर्वतराज प्रसन्न हो गया और कुमारकी स्तुतिकर अपने स्थानको चला गया। हे मुने! उसके बाद कार्तिकेयने प्रसन्न होकर उस स्थानपर महेश्वरके पापनाशक तीन लिंग विधिपूर्वक आदरके साथ स्थापित किये, उन तीनों लिंगोंमें प्रथमका नाम प्रतिज्ञेश्वर, दूसरेका नाम कपालेश्वर और तीसरेका नाम कुमारेश्वर है ये तीनों सभी सिद्धियाँ देनेवाले हैं। इसके बाद उन सर्वेश्वरने वहींपर जय स्तम्भके सन्निकट स्तम्भेश्वर नामक लिंगको प्रसन्नतापूर्वक स्थापित किया ।ll 12-15 ॥
इसके बाद वहाँपर विष्णु आदि सभी देवगन भी प्रसन्नतापूर्वक देवाधिदेव शिव लिंगको स्थापना की ॥ 16 ll
[ वहाँपर स्थापित ] उन सभी लिंगोंकी बड़ी विचित्र महिमा है, जो सम्पूर्ण कामनाओंको प्रदान करनेवाली तथा भक्ति करनेवालोंको मोक्ष प्रदान करनेवाली है ॥ 17 ॥
तब प्रसन्नचितवाले विष्णु आदि समस्त देवगण कार्तिकेयको आगेकर कैलास पर्वतपर जानेका विचार करने लगे। उसी समय शेषका कुमुद नामक पुत्र दैत्योंसे पीड़ित होकर कुमारकी शरणमें आया ॥ 18-19 ।।
प्रलम्ब नामक प्रबल असुर, जो इसी युद्धसे भाग गया था, वह तारकासुरका अनुगामी वहाँ उपद्रव करने लगा। नागराज शेषका वह कुमुद नामक पुत्र अत्यन्त महान् था, जो कुमारकी शरणमें प्राप्त होकर उन गिरिजापतिपुत्रकी स्तुति करने लगा । ll 20-21 ।।
कुमुद बोला- हे देवदेव ! हे महादेवके श्रेष्ठ पुत्र हे तात! हे महाप्रभो। मैं प्रलम्बासुरसे पीड़ित होकर आपकी शरणमें आया हूँ। हे कुमार!हे स्कन्द ! हे देवेश ! हे तारकशत्रो! हे महाप्रभो! आप प्रलम्बासुरसे पीड़ित हुए मुझ शरणागतको रक्षा कीजिये। आप दीनबन्धु करुणासागर, भक्तवत्सल, | दुष्टोंको दण्डित करनेवाले, शरणदाता तथा सज्जनोंकी गति हैं ।। 22-24 ॥
जब कुमुदने इस प्रकार स्तुति की तथा दैत्यके वधके लिये निवेदन किया, तब उन्होंने शंकरके चरणकमलोंका ध्यानकर अपनी शक्ति हाथमें ली ॥ 25 ॥
गिरिजापुत्रने प्रलम्बको लक्ष्य करके शक्ति छोड़ी। उस समय महान् शब्द हुआ और सभी दिशाएँ तथा आकाश जलने लगे। अद्भुत कर्म करनेवाली वह शक्ति दस हजार सेनाओंसहित उस प्रलम्बको शीघ्र जलाकर कार्तिकेयके पास सहसा आ गयी। तदनन्तर कुमारने शेषपुत्र कुमुदसे कहा- वह असुर अपने अनुचरोंके सहित मार डाला गया, अब तुम निडर होकर अपने घर जाओ ॥ 26-28 ॥
तब नागराजका पुत्र कुमुद कुमारका वह वचन सुनकर उनकी स्तुतिकर उन्हें प्रणाम करके प्रसन्न होकर पाताललोकको चला गया ॥ 29 ॥
हे मुनीश्वर। इस प्रकार मैंने आपसे कुमारकी विजय उनके चरित्र तथा परमाश्चर्यकारक तारकवधका वर्णन कर दिया। यह [आख्यान] सम्पूर्ण पापों को दूर | करनेवाला दिव्य तथा मनुष्योंकी समस्त कामनाको पूर्ण करनेवाला, धन्य, यशस्वी बनानेवाला, आयुको बढ़ानेवाला और सज्जनोंको भोग तथा मुक्ति प्रदान करनेवाला है जो मनुष्य कुमारके इस दिव्य चरित्रका कीर्तन करते हैं, वे महान् यशवाले तथा महाभाग्यसे युक्त होते हैं और [ अन्तमें] शिवलोकको जाते हैं। जो मनुष्य श्रद्धा और भक्तिके साथ उनकी इस कीर्तिको सुनेंगे, वे इस लोकमें परम सुख भोगकर अन्तमें दिव्य मुक्ति प्राप्त करेंगे ॥ 30-33 ॥