ब्रह्माजी बोले- शत्रुपक्षके वीरोंका नाश करनेवाले कुमार कार्तिकेयने इस प्रकार वीरभद्रको [तारकासुर के वधसे] रोककर शिवजीके चरणकमलोका ध्यानकर स्वयं तारकासुरके वधकी इच्छा को विशाल सेनासे घिरे हुए महातेजस्वी एवं महाबली कार्तिकेय गरजने लगे और क्रुद्ध होकर तारकासुरके वधके लिये उद्यत हो गये ॥ 1-2 ॥
उस समय देवताओं, गणों एवं ऋषियोंने कार्तिकेयका जय जयकार किया और उत्तम वाणी से उनकी स्तुति की। उसके बाद तारकासुर तथा कुमारका अत्यन्त दुःसह, समस्त प्राणियोंको भय देनेवाला एवं महाघोर संग्राम होने लगा। हे मुने! दोनों वीर हाथमें शक्ति नामक अस्त्र लेकर परस्पर युद्ध करने लगे, उस समय सभी देखनेवालोंको महान् आश्चर्य हो रहा था ॥ 3-5 ॥
शक्ति अस्त्रसे छिन्न-भिन्न अंगोंवाले तथा महान् साधनोंसे युक्त वे दोनों महाबली एक-दूसरेकी वंचना करते हुए दो सिंहोंके समान आपसमें प्रहार कर रहे थे। दोनों वैतालिक, खेचर तथा प्राप्त नामक युद्ध विधियोंका आश्रय लेकर शक्तिसे शक्तिपर प्रहार करने लगे ।। 6-7 ॥
महावीर, महाबली एवं पराक्रमी वे दोनों ही एक-दूसरे को जीतने की इच्छासे इन बुद्धकलाओ अद्भुत युद्ध कर रहे थे। रणविद्यामें प्रवीण, वे एक दूसरेके वधकी इच्छासे अपना पराक्रम प्रदर्शित करते हुए शक्तिकी धाराओंसे युद्ध करने लगे। वे दोनों परस्पर एक दूसरेके सिर, कण्ठ, ऊरु, जानु, कटिप्रदेश, | वक्षःस्थल, हृदयदेश तथा पृष्ठपर आघात कर रहे थे ॥ 8-10 ॥
उस समय अनेक युद्धों में कुशल एवं महाबली वे दोनों एक दूसरेको मारनेको इच्छासे वीरध्वनिसे ललकारते हुए युद्ध कर रहे थे। उससमय सभी देवता, गन्धर्व, किन्नर उस युद्धको देखने लगे और परस्पर कहने लगे-इस युद्धमें कौन जीतेगा ? ।। 11-12 ॥
तब देवताओंको सान्त्वना देते हुए आकाशवाणी हुई कि इस युद्धमें यह कुमार तारकासुरका वध करेगा। हे देवगणो! आपलोग चिन्ता न करें, सुखपूर्वक रहें. आपलोगोंके लिये शिवजी पुत्ररूपसे स्थित हुए हैं ।। 13-14 ।।
उस समय आकाशमार्गसे आयी हुई उस शुभ वाणीको सुनकर प्रमथगणोंसे घिरे हुए कुमार अत्यन्त प्रसन्न हुए और दैत्यराज तारकासुरको मारनेहेतु तत्पर हुए ।। 15 ।।
उसके बाद उन महाबाहुने क्रोधित होकर तारकासुरकी छाती में उस शक्ति नामक अबसे बलपूर्वक आघात किया। तब दैत्य श्रेष्ठ उस तारकासुरने भी उस शक्तिका तिरस्कारकर अत्यन्त कुपित होकर कुमारपर अपनी शक्तिसे प्रहार किया ।। 16-17 ।।
उस शक्तिके प्रहारसे कार्तिकेय मूर्च्छित हो गये, पुनः थोड़ी देरके पश्चात् चेतनायुक्त हो गये और महर्षिगण उनकी स्तुति करने लगे ll 18 ॥
मदोन्मत्त सिंहकी भाँति उन प्रतापी कुमारने तारकासुरका वध करनेकी इच्छासे शक्तिसे उसपर प्रहार किया ।। 19 ।।
इस प्रकार शक्तियुद्धमें निपुण कुमार तथा तारकासुर क्रोधमें भरकर युद्ध करने लगे। [ युद्धमें ] | परम अभ्यस्त वे दोनों ही एक-दूसरेपर विजय प्राप्त करनेकी इच्छासे पैदल ही पैंतरा देकर बड़ी तेजीसे युद्ध कर रहे थे ll 20-21 ॥
दोनों ही अनेक प्रकारके पातोंसे एक दूसरेपर प्रहार कर रहे थे, एक-दूसरेका छिद्र देख रहे थे, वे दोनों ही पराक्रमी गर्जना कर रहे थे। सभी देवता, गन्धर्व तथा किन्नर युद्ध देख रहे थे, सभी आश्चर्यसे चकित थे और कोई भी किसीसे कुछ भी नहीं कह रहा था ।। 22-23 ॥
उस समय पवनका चलना भी बन्द हो गया, सूर्यकी कान्ति फीकी पड़ गयी और पर्वत एवं वन काननोंसहित सारी पृथ्वी काँप उठी ॥ 24 ॥इसी बीच हिमालय आदि सभी प्रमुख पर्वत स्नेहाभिभूत होकर कुमारकी रक्षा के लिये यहाँ पहुँचे ।। 25 ।।
तब शंकर एवं पार्वतीके पुत्र कार्तिकेयने उन सभी पर्वतोंको भयभीत देखकर समझाते हुए कहा- ॥ 26 ॥ बोले- हे महाभाग पर्वतो! आपलोग कुमार खेद मत करें और चिन्ता मत करें। मैं आप सभीके देखते-देखते इस पापीका वध करूँगा ॥ 27 ॥
इस प्रकार उन्होंने पर्वतों, गणों तथा देवताओंको ढाढस देकर गिरिजा एवं शम्भुको प्रणाम करके अत्यन्त देदीप्यमान शक्तिको हाथमें लिया। उस तारकको मारनेकी इच्छावाले शम्भुपुत्र महावीर महाप्रभु कुमार हाथमें शक्ति लिये हुए उस समय अद्भुत शोभा पा रहे थे ।। 28-29 ॥
इस प्रकार शंकरजीके तेजसे सम्पन्न कुमार कार्तिकेयने लोकको क्लेश देनेवाले उस तारकासुरपर उस शक्तिसे प्रहार किया। तब सभी असुरगणोंका अधिपति महावीर तारक नामक असुर सहसा छिन्न भिन्न अंगोंवाला होकर उसी क्षण पृथ्वीपर गिर पड़ा। हे मुने! कार्तिकेयने इस प्रकार उस असुरका वध किया और वह भी सबके देखते-देखते वहीं पर लयको प्राप्त हो गया ॥ 30-32 ॥
महाबलवान् तारकको रणभूमिमें गिरा हुआ देखकर वीर कार्तिकेयने पुनः उस प्राणविहीनपर प्रहार नहीं किया। तब उस तारक नामक महाबली महादैत्यकी मृत्यु हो जानेपर देवगणोंने अमुरोको विनष्ट कर दिया ।। 33-34 ॥
कुछ युद्धमें भयभीत होकर हाथ जोड़ने लगे, कुछ छिन्न-भिन्न अंगोंवाले हुए और हजारों दैत्य मृत्युको प्राप्त हो गये। शरणकी इच्छावाले कुछ दैत्य हाथ जोड़कर 'रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये- ऐसा | कहते हुए कुमारकी शरणमें चले गये ।। 35-36 ॥
कुछ मारे गये, कुछ भाग खड़े हुए और कुछ भागते समय देवताओंके द्वारा मारे जानेसे पीड़ित हो गये ॥ 37 ॥ जीनेकी इच्छावाले हजारों दैत्य पाताललोकमें प्रविष्ट हो गये और कुछ दीनतापूर्वक निराश होकर भाग गये ॥ 38 ॥हे मुनीश्वर । इस प्रकार सम्पूर्ण दैत्यसेना विनष्ट हो गयी। उस समय देवताओं तथा गणोंके भयसे कोई भी असुर वहाँ रुक न सका ।। 39 ।।
उस दुरात्माके मारे जानेपर सभी लोग निष्कण्टक हो गये और इन्द्रादि वे सभी देवता आनन्दमग्न हो गये ।। 40 ।। इस प्रकार विजयको प्राप्त करनेवाले कुमार कार्तिकेयको देखकर सभी देवता एक साथ प्रसन्न हो उठे एवं सारा त्रैलोक्य महासुखी हो गया । 41 ।। उस समय [भगवान्] शंकर भी कार्तिकेयकी विजयका समाचार सुनकर अपने गणों तथा पार्वतीके साथ प्रसन्नतापूर्वक वहाँ आ पहुँचे ll 42 ll
स्नेहसे भरी हुई पार्वतीजी सूर्यके समान तेजस्वी अपने पुत्र कुमारको अपनी गोदीमें लेकर अत्यन्त प्रीतिपूर्वक लाड़-प्यार करने लगीं ॥ 43 ll
उसी समय अपने बन्धुओं, अनुचरों और पुत्रसहित हिमालय भी वहाँ आकर शंकर, पार्वती तथा कुमारकी स्तुति करने लगे ।। 44 ।।
तदनन्तर सभी देवता, मुनि, सिद्ध एवं चारण शिव, शिवा एवं कुमारकी स्तुति करने लगे ।। 45 ।। देवादिकोंने [आकाशमण्डलसे] पुष्पोंकी वर्षा की, गन्धर्वपति गान करने लगे तथा अप्सराएँ नृत्य करने लगीं ll 46 ll
उस समय विशेष रूपसे बाजे बजने लगे और ऊँचे स्वरसे जयशब्द तथा नमः शब्दका उच्चारण बारंबार होने लगा। तब मेरे साथ भगवान् विष्णु विशेष रूपसे प्रसन्न हुए और उन्होंने आदरपूर्वक शिव, शिवा एवं कुमारकी स्तुति की। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र आदि देवता, मुनि तथा अन्यलोग कुमारको आगेकर प्रेमपूर्वक उनकी आरती उतारने लगे ।। 47- 49 ।।
उस समय गीत-बाजेके शब्दसे तथा वेदध्वनिके उद्घोषसे महान उत्सव होने लगा और विशेष रूपसे स्थान-स्थानपर कीर्तन होने लगा ॥ 50 ॥
हे मुने! उस समय प्रसन्न समस्त देवगणोंने हाथ जोड़कर गीत वाद्योंसे भगवान् शंकरकी स्तुति की ॥51॥उसके बाद सबके द्वारा स्तुत तथा अपने गणोंसे घिरे हुए भगवान् रुद्र जगज्जननी भवानीके साथ अपने [निवासस्थान] कैलासपर्वतपर चले गये ॥ 52 ॥